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अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें

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दीवार घड़ियां और वास्तु: अपने घर की साज-सज्जा और सकारात्मक ऊर्जा को कैसे सुधारें

घड़ी की टिक टिक की आवाज की अपनी अलग धुन होती है और यह लगातार याद दिलाता है कि समय कितनी जल्दी बीत जाता है। आज, दीवार घड़ियां उतनी महत्वपूर्ण नहीं हो सकतीं, जितनी स्मार्टफोन के आगमन से पहले थीं। फिर भी, अधिकांश घरों में घड़ियों को अभी भी एक शांत कोने और साधारण सजावटी टुकड़ों के रूप में उपयोग किया जाता है। जबकि कोई डिजाइनर दीवार घड़ियों के साथ घर की भव्यता को बढ़ा सकता है, वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करना हमेशा महत्वपूर्ण होता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके घर की सकारात्मक ऊर्जा और सद्भाव बरकरार रहे।

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किसान आंदोलन : बात अभी बाकी है…!

31 दिसंबर 2021, भोपाल । किसान आंदोलन : बात अभी बाकी है…! प्रधानमंत्री ने अचानक सुबह नौ बजे जिस नाटकीयता के साथ सरकार द्वारा बनाए गए कृषि संबंधी दो कानूनों और एक संशोधन को वापस लेने की घोषणा की, उससे देखने वालों को लग सकता है कि अब किसानों के संकटों का अंत आ गया है। लेकिन असल में यह किसानों के संघर्ष का एक पड़ाव भर है। प्रधानमंत्री की पहल ने बदहाल खेती-किसानी को केवल जहां-का-तहां वापस खड़ा कर दिया है। सवाल है, किसानी को कारगर बनाने के लिए क्या करना होगा? प्रस्तुत है इसी विषय पर यह लेख-

विवादित तीन कृषि कानूनों को अचानक वापस लेने का निर्णय भारत में कृषि के भविष्य पर दोबारा सोचने और ‘सदाबहार कृषि क्रांति’ के रूप में इसकी पुनर्रचना का ऐतिहासिक अवसर देता है। किसानों की जीत का उत्सव एक बार समाप्त हो जाने के बाद राजनीतिक नेतृत्व के लिए यह लाजिमी है कि वे कृषि को आर्थिक विकास का ‘पावरहॉउस’ बनाने के लिए इसके आर्थिक ताने-बाने पर दोबारा विचार करें।

गैर-टिकाऊ खाद्य प्रणाली

नव-उदारवादी अर्थशास्त्री इस बात पर बुक्का फाडक़र रोएंगे, लेकिन आज समय की जरूरत इस बात की है कि कृषि को मुनाफे का व्यवसाय बनाने के साथ ही इसकी आर्थिक उपादेयता और इसे बदलते पर्यावरण के हिसाब से टिकाऊ बनाया जाए। इस समय, जबकि पूरी दुनिया अस्वास्थ्यकर और गैर-टिकाऊ खाद्य प्रणाली को बदलने के लिए उठ खड़ी हुई है, भारत के पास धरती के लोगों के लिए सुरक्षित और स्वास्थ्यकर खेती का रोडमैप उपलब्ध कराने की क्षमता है। कृषि में प्रस्तावित सुधारों को वापस लेने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देर से उठाया गया, लेकिन साहसिक निर्णय कृषि में सुधार के लिए उठाया गया पहला कदम हो सकता है।

मैं इसे सुधारवादी इसलिए कहता हूं क्योंकि कृषि बाजार में सुधार के तमाम प्रस्ताव सभी देशों अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें में नाकाम रहे हैं। अमरीका से ऑस्ट्रेलिया और चिली से फिलीपींस तक जहां देख लें, बाजार ने कृषि संबंधी मौजूदा परेशानियों में केवल इजाफा ही किया है। अगर अमरीका, कनाडा और बाकी देशों में देखें तो बाजार ने अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें छोटे किसानों के कर्ज को बढ़ाकर उन्हें सफलतापूर्वक खेती से बाहर निकालने और कृषि को ग्रीनहाउस गैसों का बड़ा उत्सर्जक बना दिया है। ऐसे में यह मानना कि यही बाजार भारत में कोई चमत्कार करेगा, एक भ्रांति के सिवा और कुछ नहीं है।

कृषि आमदनी में लगातार गिरावट

उत्तरी अमरीका को देखें तो अत्यधिक निवेश, तकनीकी नवाचारों, बहुत ही उन्नत अंतरराष्ट्रीय मूल्य श्रृंखला के बावजूद पिछले 150 साल से भी अधिक समय से कृषि की आमदनी में लगातार गिरावट आ रही है। अमरीकी कृषि विभाग ने 2018 में जोड़-घटा कर यह निष्कर्ष निकाला था कि उपभोक्ताओं के खर्च किए गए प्रत्येक डॉलर में किसानों का हिस्सा केवल 8 सेंट यानी आठ प्रतिशत भर रह गया है और यह स्थिति किसानों को लगातार विलुप्तता की तरफ धकेल रही है।

किसानों की आय बढ़ाने में नाकाम

यह जानते हुए भी कि दुनिया में सभी जगह बाजार किसानों की आय बढ़ाने में नाकाम रहा है, हमारे यहां बाजार केन्द्रित व्यवस्थाएं बनाई जा रही हैं। किसान कानूनों की वापसी का निर्णय आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए लिया गया हो या आर्थिक कारणों से, लेकिन सच्चाई यह है कि तथाकथित सुधारों ने उन रास्तों को बाधित कर दिया है जो कृषि को पुनर्जीवित कर खेती को दोबारा एक गर्व का व्यवसाय बना सकते थे। आंदोलनकारी किसानों ने सालभर दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहकर जो जीवटता दिखाई है, उसने देश का ध्यान किसान समुदाय की दुर्दशा की तरफ खींचा है। यह समय आंदोलन के कारण उपजी नीति निर्माण की जरूरत को पूरा करने और कृषि प्रणाली को भविष्य के लिए एक स्वास्थ्यकर उद्यम के रूप में फिर से स्थापित करने का है।

राहत की कोई बात नहीं

कृषि कानून को वापस लेने का निर्णय आधी लड़ाई जीतने के समान है। इसका मतलब यथास्थिति की तरफ लौटना है, जिसका मतलब है कि गंभीर कृषि संकट से जूझते किसानों के लिए अभी राहत की कोई बात नहीं है। किसानों के लिए यह निश्चित रूप से जीत का पहला दौर है, लेकिन दौड़ अभी खत्म नहीं हुई है। जब तक किसानों के जीवन-यापन के लिए जरूरी आय, मांग और आपूर्ति के लिहाज से सुनिश्चित नहीं की जाएगी, किसानों का आगे भी शोषण जारी रहेगा। कृषि से आय की गारंटी के बिना खाद्य प्रणाली में बदलाव नहीं किया जा सकता। कृषि में यही वह सुधार है जिसका न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया में बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।

40 प्रतिशत कम दाम

अगर यह मानकर चलें कि किसानों को सरकार द्वारा 23 फसलों के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले बाजार दर से 40 प्रतिशत कम दाम मिलता है तो इसका मतलब है कि किसान अपनी उपज की लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। जब किसान खेती का काम करता है तो उसे यह समझ नहीं आता कि दरअसल वह नुकसान की खेती कर रहा है। केवल उन स्थानों को छोडक़र, जहां गेहूं और चावल की एमएसपी प्रणाली लागू है, देश के बाकी स्थानों पर तो किसानों को यह भी नहीं पता कि उन्हें ‘किससे’ वंचित रखा जा रहा है। इसे 2016 के आर्थिक सर्वेक्षण में यह कहते हुए स्वीकार किया गया था कि देश के 17 राज्यों में, यानी देश के लगभग आधे से अधिक हिस्से में, कृषि से औसत आमदनी केवल 20 हजार रुपए सालाना है। इतना ही नहीं, 2019 के परिस्थितिजन्य सर्वेक्षण का गुणा-भाग बताता है कि खेती से प्रतिदिन की औसत आय केवल 27 रुपए रह गई है।

कृषि को सुधार की जरूरत

किसानों के लिए एमएसपी को वैधानिक अधिकार बनाने का मतलब यह है कि निर्धारित कीमत से कम पर उपज की खरीद की अनुमति नहीं हो। भारतीय कृषि को वास्तव में इसी सुधार की जरूरत है। यह कृषि में दूसरा सुधारात्मक कदम है। जब किसानों के हाथ में ज्यादा पैसा होगा, तब खेती न केवल आर्थिक रूप से कारगर होगी, बल्कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भी लंबी छलांग लगाएंगे। इससे ग्रामीण आजीविका की स्थिति मजबूत होगी और शहरों में रोजगार का दबाव कम होगा। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढऩे से गांवों की अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी। यह समय उस दोषपूर्ण आर्थिक डिजाइन को बदलने का है जिसे उद्योगों को बचाने के लिए कृषि का बलिदान देकर बनाया गया है। इसे उस अर्थशास्त्र में बदला जाए जो लोगों के लिए काम करे और जिसे मानव पूंजी पर निवेश की आवश्यकता हो।

लाभ से वंचित

एमएसपी की गारंटी देने के बाद भी किसानों की एक बड़ी संख्या लाभ से वंचित रहेगी। ये वे छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास बाजार में बेचने के लिए सरप्लस (अतिरिक्त) उपज तो नहीं होती, लेकिन परिवार की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इनके लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत हकदारी में वृद्धि की जानी चाहिए। भारत में किसानों के आंदोलन ने, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे लंबा आंदोलन है, दुनियाभर का ध्यान खींचा है। किसानों ने उस पुरानी आर्थिक सोच को सफलतापूर्वक चुनौती दी है जो कृषि को कंगाल बनाए रखना चाहती है। यह कोई कम उपलब्धि नहीं है और अगर ईमानदारी से इसका मूल्यांकन किया जाए तो इसमें एक सदाबहार क्रांति के बीज बोने की क्षमता मौजूद है। सदाबहार क्रांति कृषि विज्ञानी डॉ. एमएस स्वामीनाथन का लाया हुआ शब्द है, जिसमें एक ऐसी उत्पादन प्रणाली को अपरिहार्य माना गया है जो परंपरागत ज्ञान, उपलब्ध जैव-विविधता और खेती की उस पद्धति की बात करती है जो

पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए।

कृषि प्रणाली को रीडिजाइन करने, बाजार को किसानों के नजदीक लाने और एक ऐसी खाद्य वितरण प्रणाली का विकास करने की आवश्यकता है जो परिवार को पोषण सुरक्षा उपलब्ध कराए। लेकिन इसे हासिल करना उन लोगों के बूते के बाहर है जिन्होंने कृषि को संकट में डाल रखा है। हमें नए सिरे से शुरुआत करनी होगी। इसे संभव बनाने के लिए आइए, सबसे पहले किसानों को उनके जीवनयापन अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें के लायक आय उपलब्ध कराने से शुरुआत करें।
(सप्रेस)

'किसान खेती के साथ पशुपालन और दूध उत्पादन से सुधारें आर्थिक स्थिति'

राजस्थान के श्रम एवं नियोजन मंत्री डॉ. जसवंत सिंह यादव.

राजस्थान के श्रम एवं नियोजन मंत्री डॉ. जसवंत सिंह यादव.

राजस्थान के श्रम एवं नियोजन मंत्री डॉ. जसवंत सिंह यादव ने किसानों से आह्वान किया कि कृषि के साथ पशुपालन अपनाकर दुग्ध उत्पादन के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारें.

  • News18Hindi
  • Last Updated : November 26, 2017, 19:39 IST

राजस्थान के श्रम एवं नियोजन मंत्री डॉ. जसवंत सिंह यादव ने किसानों से आह्वान किया कि कृषि के साथ पशुपालन अपनाकर दुग्ध उत्पादन के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारें.

मंत्री यादव रविवार को अलवर जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ द्वारा रैणी में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस पर आयोजित राष्ट्रीय डेयरी योजना के तहत आहार सन्तुलन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने किसानों से कहा कि कृषि एवं पशुपालन आधुनिक तकनीक का उपयोग कर अधिक उत्पादन प्राप्त करें.

उन्होंने कहा कि दुधारु पशुओं को सन्तुलित आहार दिया जाए, जिससे उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में सुधार होगा और दुग्ध उत्पादकों की शुद्ध आय में बढ़ोतरी होगी. पशुपालकों को अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उनके लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर देश को एक नई पहचान दिलाई है और कौशल विकास को बढ़ावा देकर युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिससे वे अपना स्वयं का रोजगार स्थापित कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकेंगे. जिले में बिजली, पानी व सड़क के विकास कार्यों के लिए धन की कमी नहीं है. जिले में सड़कों के पेचवर्क कार्य 31 दिसम्बर तक करा दिया जाएंगें.

उन्होंने कहा कि रैणी में पेयजल की माकूल व्यवस्था की जा रही है और रैणी, राजगढ़ व लक्ष्मणगढ़ क्षेत्रों में एनसीआर योजना के तहत कार्य कराए जाएंगे. खराब विद्युत ट्रांसफार्मरों को 72 घंटे में बदला जाएगा. इस कार्य में लापरवाही करने वाले सहायक व अधिशाषी अभियन्ताओं के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अलवर सरस डेयरी के अध्यक्ष बन्ना अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें राम मीणा ने बताया कि आज भामाशाह पशु बीमा क्लेम के अन्तर्गत 7 व्यक्तियों को 3 लाख 40 हजार रुपए की राशि के चैक वितरित किए और पांच हजार पशुओं का 25 करोड़ रुपए की राशि का बीमा कराया गया है. उन्होंने बताया कि राजगढ़ ओबीसी बैंक द्वारा 100 किसानों को प्रत्येक किसान एक लाख रुपए का ऋण दिया जा रहा है.

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मार्च भविष्‍यफल 2020: अपनी राशि के अनुसार जानें कैसा बीतेगा यह महीना

sagittarius horoscope march

साल का तीसरा महीना मार्च शुरू हो चुका है। यह महिना किस राशि के लिए शुभ फल लेकर आया है और किन राशि के जातकों को इस माह थोड़ा सर्तक रहने की जरूरत है। यह सब कुछ आप जान सकते हैं एस्‍ट्रोलॉजर रिद्धी बहल से। एस्‍ट्रो एक्‍सपर्ट रिद्धी बहल के मार्च 2020 के भविष्‍यफल को पढ़कर आपको यह पता चल जाएगा कि यह माह आपके लिए कैसा बीतने वाला है। तो चलिए जानते हैं मार्च 2020 का राशिफल क्‍या कहता है।

Horoscope Rashifal March one

मेष राशि के जातकों को इस माह किसी भी प्रकार का तनाव लेने की जरूरत नहीं है। अपनी सेहत पर ध्‍यान दें। अपना खान-पान सुधारें। इस माह आपको ऑफिस में सतर्क रहने की जरूरत है। परिवार के लोगों से अन-बन की स्थिति बन सकती है। खुद को शांत रखने की कोशिश करें।

वृष राशि के जातकों के लिए यह माह अच्‍छा बीतेगा। गहों के शुभ स्‍थानों पर होने से आपको बेहतर परिणाम मिलेंगे। आपको साहस और इच्‍छा शक्ति बढ़ेगी। इससे आप हर कार्य में सफलता हासिल कर पाएंगे। अगर आप पढ़ाई कर रहे हैं तो अपना मन पढ़ाई में लगाने की कोशिश करे। इस माह एकाग्रता की कमी रहगी। Family Life Horoscope 2020: इस वर्ष कैसा रहेगा आपका पारिवारिक जीवन, पंडित जी से जानें

Horoscope Rashifal March images two

इस माह आपका प्रेम संबंध मजबूत होगा। जो आपको प्‍यार करता है उसे दुख न पहुंचाएं। आपके दुश्‍मन आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं। इस माह आपनी सेहत पर ध्‍यान दें। समाज के कुछ प्रभावशाल लोगों से आपकी मुलाकात होगी जो भविष्‍य में आपको लाभ पहुंचाएंगे।

यदि आपकी राशि कर्क है तो इस माह थोड़ा सतर्क रहें । स्‍टूडेंट्स को कुछ पर्वितनों का सामना करना पड़ सकता है। प्रोफेशनल लाइफ में कुछ लोग आपके लिए मुसीबत बन सकते हैं। आपको पूरी सावधानी के साथ अपने फाइनैंशियल फैसले लेने चाहिए। आपके परिवार में शांति का माहौल बना रहेगा। राशिफल 2020: जानें कैसा रहेगा आपका पूरा साल

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इस माह आपका ट्रांसफर हो सकता है। थोड़ा सर्तक रहें। जीवनसानी के साथ आपकी कहासुनी हो सकती है। प्रोफेशनल लाइफ में आपकी तारीफ हो सकती है। ज्‍यादा पैसे खर्च करने से बचें। हो सकता है अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें इस माह आप अपनी फीलिंग को जाहिर करने में परेशानी महसूस करें।

इस माह आप कुछ चीजों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहेंगे। हो सकता है कि जो कामयाबी आपको मिलने वाली है वह आपके हाथों से निकल जाए। परिजनों से किसी बात पर विवाद हो सकता है। जीवनसाथी के साथ संबंधों में किसी भी प्रकार का शक न पैदा होने दें। आपकी सेहत इस माह अच्‍छी रहेगी। Career Horoscope 2020: करियर में किसे मिलेगा प्रमोशन और किसे मिलेगा डिमोशन, पंडित जी से जानें

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आपके लिए यह सप्‍ताह अच्‍छा साबित होगा। आपका भाग्‍य आपको भरपूर साथ देगा। आपको मान सम्‍मान की प्राप्‍ती होगी। अपने जीवनसाथी राय लें आपको हर कार्य में सफलता प्राप्‍त होगी। थोड़ा सयंम से काम लें वरना नुकसान झलना पड़ सकता है आपको इस माह महिलाओं के माध्‍यम से धन की प्राप्ति होगी।

वृश्चिक

यह माह आपके लिए बिलकुल सामान्‍य रहेगा। आपका भाग्‍य आपका साथ देगा। इसके साथ ही आपका अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें सामाजिक दायरा भी बढ़ेगा। आपकी मुलाकात ऐसे लोगों से होगी जो आपको भविष्‍य में लाभ पहुंचाएंगे। संतान की ओर से आप दुखी रह सके हैं। आपकी आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव बना रहेगा। अपने स्‍वास्थ पर ध्‍यान दें। शदीशुदा जीवन अच्‍छा बीतेगा।

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इस माह आमदनी के नए रास्‍ते खुलेंगे इससे आपके पास धन की कोई कमी नहीं होगी। आपके रिश्‍ते किसी ऐसे व्‍यक्ति से बन सकते हैं जिसका सहयोग आपको आगे भी मिलेगा। आपने जो धन उधार दिया है वह आपको वापिस मिल जाएगा। आपकी संतान को नौकरी इस माह मिल सकती है। आपका वैवाहिक जीवन सामान्‍य रहेगा

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आप जितनी सुख-शांति चाहते हैं उतनी इस माह आपको नहीं मिलेगी। खासतौर पर निजी जीवन में उतार-चढ़ाव की स्थिति से मन विचलित रहेगा। इस माह जीवनसाथी और प्रियजनों से आपकी तकरार हो सकती है। अपनी वाणि पर नियंत्रण रखें। यदि नौकरी पेशा है तो आपकी प्रतिष्‍ठा में वृद्धि होगी। प्रेम संबंध के लिए यह महा अच्‍छा है।

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आपको गृहस्‍थ जीवन इस माह सामान्‍य रहेगा। आपको थोड़ी बहुत दिक्‍कतों का सामना करना पड़ सकता है । अपनी सेहत का ध्‍यान रखें। आपकी आर्थिक स्थिति इस माह अच्‍छी रहेगी। नैकरी पेशा लोगों को पदोन्‍नति अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें मिलेगी। प्रेम संबंधों में मधुरता बनी रहेगी।

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अगर आपका व्‍यवहार अच्‍छा है तो आप हर संघर्ष से उभर सकते हैं। आपकी आर्थिक स्थिति सामान्‍य रहेगी। प्रेम संबंधों के मामले में पूरी तरह से सयंम बरतें। सेहत पर ध्‍यान दें। खासतौर पर लीवर और किडनी से जुड़ी समस्‍या है तो तुरंत ही चिकित्‍सक से मिलें।

निर्मला जी, अगर यह “एक्ट ऑफ़ गॉड” है, तो प्रबन्धन ? - Pratidin

इससे ज्यादा बुरे हालात क्या होंगे ? देश में हजारों मनुष्य कोरोना के शिकार हो रहे हैं, जिन्दगी काल के गाल में समा रही है। लाखों लोग बीमार है। 1-2 करोड़ लोगो की नौकरी जा चुकी है। राज्यों के पास कर्मचारियों को देने के लिए वेतन नहीं है। केंद्र के पास जीएसटी का पैसा वापिस लौटने के लिए रकम नहीं है। रेलवे, डेढ़ लाख खाली पदों के साथ निजी हाथों के सौपी जा रही है। देश कहाँ था कहाँ आ गया है उत्पादन गिर रहा है विकास दर में एक चौथाई की कमी दर्ज की गई है। देश की वित्त मंत्री निर्मला जी के शब्दों में यह “एक्ट ऑफ़ गॉड” है। उनकी ही बात मान लें, उन्हें और उनकी तरह उन समस्त लोगों को यह ही मानना चाहिये कि यह कर्मों का नतीजा है और यदि है तो सवाल उठता है कि आपका और आपकी सरकार का सारा प्रबन्धन कौशल कहाँ है ?

समस्त जगत कोरोना से जूझ रहा है, भारत की लड़ाई शायद सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति में है। कोविड से ग्रसित लोगों की संख्या की दृष्टि से हमारा स्थान दुनिया में रोज उपरी पायदान पर आ रहा है और आर्थिकी नीचे जा रही है। पिछले छह महीनों में कोरोना के अलावा बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण आदि के क्षेत्रों में जो हालात बिगड़े हैं उनमें कोई ठोस सुधार होता दिख नहीं रहा।

एक ओर केंद्र और राज्य सरकारें अपनी शुतुरमुर्गी प्रवृत्ति का परिचय दे रही हैं और दूसरी ओर सरकारों को चेताने वाला भी कोई नहीं दिख रहा। जनतांत्रिक व्यवस्था में यह काम विपक्ष और मीडिया का होता है। हमारी त्रासदी यह है कि विपक्ष अपनी भूमिका निभाने लायक नहीं रहा और मीडिया चौकीदारी की अपनी भूमिका को निभाना ही नहीं चाहता। अगर ऐसा है, तो इस स्थिति का एक ही मतलब निकलता है कि या तो इस देश के नागरिक राजनीतिक रूप से नासमझ है कि उसे सही-गलत का पता ही नहीं चल रहा। ये दोनों ही स्थितियां 70 साल के जनतंत्र के उपर धब्बा और राजनीतिक दलों की नाकामी है।

बेरोजगारी, खस्ताहाल आर्थिक स्थिति, युवाओं की निराशा, मजदूरों की त्रासदी, किसानों की बदहाली आदि से जैसे मुद्दे सुर्खी में नहीं है। यह समूची व्यवस्था के लिए चुनौती है और इसका ठीकरा भगवान के मत्थे फोड़ना, किसी प्रकार की समझदारी नहीं है। देश का संविधान हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है और इस अधिकार की रक्षा का दायित्व व्यवस्था पर होता है, जो सरकार कहलाती है। ऐसी स्थिति में सवाल तो उठने ही चाहिए, उत्तर भी मिलने चाहिए पर ऐसा होने नहीं दिया जा रहा है। जब सवाल पूछने वाले कीचड़ में धंसे दिखे और उत्तर देने के लिए जिम्मेदार तत्व देश के नागरिको को सब्जबाग़ दिखाने लगे तो भगवान को कोसने की जगह अपने विवेक को जगाये और अपने दायित्वों का निर्वहन करें।

देश के बाहर चीन और पाकिस्तान अपनी कारगुजारी करने की फिराक में है, आर्थिक मोर्चे पर हम चुनौतियों को समझ ही नहीं पा रहे अथवा समझना ही नहीं चाहते। देश के युवा जो हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं, निराशा-हताशा के दौर से गुजर रहे हैं। मजदूर भूखा है, किसान परेशान। कोरोना के चलते सारा भविष्य अनिश्चित-सा लग रहा है। जिनके कंधों पर बोझ है स्थिति सुधारने का, वे या तो आंख चुरा रहे हैं या फिर राह से भटका रहे हैं। भगवान को दोष देने की बजाय आईने के सामने आँखें खोल कर खड़े हों। खुद से सवाल पूछे हम क्या थे और क्या हो गये और क्या होना शेष है ? मक्कारी से वोट लेकर सरकार बनाई जा सकती है पर उसे चलाने का कौशल भारत के राजनीतिक दलों में नहीं है। ये हो या वो हो किसी की पहली प्राथमिकता देश नहीं है, भ्रष्टाचार है। कोई भी भगवान,गॉड,खुदा अपना ईमान, देश, और निष्ठा बेचने का हुकुम नहीं देता है। उसके नाम का ठीकरा मत फोड़ें, अपने कर्मों को सुधारें।

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