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वायदा अनुबंध क्या है

वायदा अनुबंध क्या है

फ्यूचर्स और ऑप्शंस के बीच अंतर

शेयर बाजार की दुनिया में कई उपकरणों में से दो बहुत महत्वपूर्ण हैं जो निवेशकों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं। ये दो उपकरण वायदा और विकल्प हैं। ये उन अनुबंधों से निकटता से संबंधित हैं जो किसी संपत्ति के खरीदारों और विक्रेताओं के बीच आदान-प्रदान किए जाते हैं। ये दोनों एक जैसे दिखने के बावजूद एक दूसरे से बहुत अलग हैं।

फ्यूचर्स और ऑप्शंस के बीच अंतर

फ्यूचर्स और ऑप्शंस के बीच मुख्य अंतर यह है कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स में, धारक को निश्चित भविष्य की तारीख पर संपत्ति खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है, जबकि एक विकल्प अनुबंध में, खरीदार पर खरीदने के लिए ऐसा कोई दायित्व नहीं होता है। वायदा अनुबंध और विकल्प अनुबंध के बीच कई समानताएं हैं, लेकिन वे कई आधारों पर भी भिन्न हैं।

वायदा अनुबंध निवेशकों के बीच एक बहुत प्रसिद्ध वित्तीय अनुबंध है। यह ज्यादातर सट्टेबाजों और मध्यस्थों द्वारा पसंद किया जाता है। वायदा अनुबंध का खरीदार अनुबंध का सम्मान करने के लिए बाध्य है और उसे सुरक्षा से संबंधित किसी भी परिस्थिति के बावजूद निश्चित भविष्य की तारीख पर खरीदारी करनी होगी।

विकल्प अनुबंध अभी तक एक और वित्तीय अनुबंध है जो निवेशकों के बीच बहुत लोकप्रिय है और ज्यादातर हेजर्स द्वारा पसंद किया जाता है। इस अनुबंध में, एसिड के खरीदार पर खरीदारी करने के लिए कोई आवेदन नहीं है। यदि खरीदार निर्दिष्ट तिथि को नहीं खरीदना चाहता है, तो वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है।

वायदा और विकल्प के बीच तुलना तालिका

तुलना के पैरामीटरफ्यूचर्सविकल्प
अनुबंध दायित्वखरीदार अनुबंध का सम्मान करने के लिए बाध्य है।खरीदार पर कोई दायित्व नहीं है।
विक्रेतायदि खरीदार द्वारा अधिकार का प्रयोग किया जाता है, तो अनुबंध विक्रेता खरीदने/बेचने के लिए बाध्य है।यदि खरीदार खरीदना चुनता है तो विक्रेता अनुबंध को बेचने के लिए बाध्य होता है।
हाशियाएक उच्च मार्जिन भुगतान की आवश्यकता है।कम मार्जिन भुगतान की आवश्यकता है।
द्वारा पसंद किया गयायह ज्यादातर आर्बिट्रेजर्स और सट्टेबाजों द्वारा पसंद किया जाता है।यह ज्यादातर हेजर्स द्वारा पसंद किया जाता है।
लाभ और हानिअसीमित लाभ और असीमित हानि।असीमित लाभ और सीमित हानि।

फ्यूचर्स क्या है?

वायदा अनुबंध शेयर बाजार की दुनिया में एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण है जो वित्तीय निवेश से निकटता से संबंधित है। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में, जो दो पक्ष किसी संपत्ति की खरीद या बिक्री में शामिल होते हैं, उनमें कीमत के साथ संपत्ति खरीदने के बाद उस समय से संबंधित एक समझौता होता है। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार पर भविष्य की सटीक तारीख पर संपत्ति खरीदने की मजबूरी होती है, जिसे समझौते में निर्दिष्ट किया गया था।

वायदा अनुबंध से संबंधित जोखिम भी है। जोखिम यह है कि फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का धारक निर्धारित भविष्य की तारीख पर संपत्ति की खरीद करने के लिए बाध्य है, भले ही उनके खिलाफ सुरक्षा चल रही हो। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में असीमित लाभ की संभावना है लेकिन असीमित नुकसान की भी संभावना है। इसलिए फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में निवेश करना थोड़ा जोखिम भरा हो जाता है। वायदा अनुबंध के बारे में एक अच्छी बात यह है कि इसकी कोई अग्रिम लागत नहीं है। खरीदार अंततः उस निश्चित तिथि पर संपत्ति खरीदने के लिए बाध्य है जिस पर अनुबंध को डिजाइन करते समय सहमति हुई थी। वायदा अनुबंध को आमतौर पर सट्टेबाजों और मध्यस्थों द्वारा पसंद किया जाता है। साथ ही, फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में अधिक मार्जिन भुगतान की आवश्यकता होती है।

विकल्प क्या है?

विकल्प अनुबंध अभी तक एक और वित्तीय निवेश उपकरण है जिसका व्यापक रूप से व्यापार करते समय शेयर बाजार में निवेशकों द्वारा उपयोग किया जाता है। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के बीच स्पष्ट अंतर को जानना सबसे अच्छा है, यह चुनने के लिए कि कौन सा निवेशक के लिए सबसे अच्छा है। वायदा अनुबंध के विपरीत, खरीदार पर किसी निश्चित तिथि पर संपत्ति खरीदने के लिए कोई आवेदन नहीं होता है। पूर्व-सहमत मूल्य पर संपत्ति खरीदने के लिए द्वि पूरी तरह से स्वतंत्र है।

विकल्प अनुबंध के कुछ फायदे हैं और इसलिए यह वायदा अनुबंध की तुलना में थोड़ा अधिक फायदेमंद और सुरक्षित प्रतीत होता है। विकल्प अनुबंध में केवल सीमित हानि के साथ असीमित लाभ की संभावना है। हालांकि, खरीदार को विकल्प अनुबंध में अग्रिम भुगतान करने की आवश्यकता होती है। लेकिन यह अग्रिम भुगतान करने से खरीदार को यह चुनने का विशेषाधिकार मिलता है कि वे सहमत तिथि पर संपत्ति खरीदना चाहते हैं या नहीं। विकल्प अनुबंध ज्यादातर हेजर्स द्वारा पसंद किया जाता है, और इसके लिए बहुत कम मार्जिन भुगतान की भी आवश्यकता होती है। विकल्प अनुबंध में खरीदार भी जब चाहें अनुबंध निष्पादित करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन यह समाप्ति की तारीख से पहले होना चाहिए।

फ्यूचर्स और ऑप्शंस के बीच मुख्य अंतर

  1. फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में, खरीदार अनुबंध का सम्मान करने के लिए बाध्य होता है, जबकि एक विकल्प अनुबंध में, खरीदार पर कोई दायित्व नहीं होता है।
  2. फ्यूचर्स अनुबंध में, यदि खरीदार द्वारा अधिकार का प्रयोग किया जाता है, तो अनुबंध विक्रेता खरीदारी करने के लिए बाध्य होता है। दूसरी ओर, एक विकल्प अनुबंध में, खरीदार चुन सकता है कि खरीद के साथ आगे बढ़ना है या नहीं।
  3. फ्यूचर्स अनुबंध में उच्च भुगतान मार्जिन की आवश्यकता होती है, और विकल्प अनुबंध में कम भुगतान मार्जिन की आवश्यकता होती है।
  4. फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट को ज्यादातर आर्बिट्रेजर्स और सटोरियों द्वारा पसंद किया जाता है, जबकि ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट को ज्यादातर हेजर्स द्वारा पसंद किया जाता है।
  5. फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में असीमित लाभ और असीमित हानि होती है। विकल्प अनुबंध में असीमित लाभ और सीमित हानि होती है।

निष्कर्ष

जो कोई भी शेयर बाजार में निवेश करने का फैसला कर रहा है, उसे स्वस्थ निवेश के सभी पहलुओं का अध्ययन करना चाहिए। वायदा अनुबंध और विकल्प अनुबंध को चुनने से पहले अच्छी तरह से समझा जाना चाहिए। शेयर बाजार में निवेश करते समय कई नियमों और विनियमों का पालन करना होता है, और किसी भी क्षेत्र में निवेश करने से पहले उसी के बारे में पूरी जानकारी वाले व्यक्ति से संपर्क करना बेहतर होता है। किसी संपत्ति को बेचने या खरीदने की शर्तों के साथ-साथ लाभ और हानि के आंकड़ों का एक अच्छा अवलोकन निवेशकों को अपने निवेश के साथ एक लंबा रास्ता तय करने और लंबे समय में फायदेमंद साबित होने में मदद कर सकता है। साथ ही, धोखाधड़ी और फर्जी नीतियों से सावधान रहना चाहिए।

सेबी ने जारी किए जिंस वायदा अनुबंध के नियम

सेबी ने जारी किए जिंस वायदा अनुबंध के नियम

नई दिल्ली: भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) जिसों में वायदा सौदों के संबंध में विस्तृत रूपरेखा लेकर सामने आया है। नियामक ने शुक्रवार को जिंस वायदा बाजार को विस्तार देने के लिए नए दिशानिर्देश जारी कर दिए। ये नियम पहली अप्रैल, 2017 से प्रभावी होंगे। सेबी जिंस वायदा बाजार का भी नियामक है।

बाजार नियामक ने सभी भागीदारों के साथ सलाह-मशविरे और जिंस वायदा सलाहकार समिति (सीडीएसी) की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है। कमोडिटी डेरिवेटिव मार्केट के विकास और प्रभावी नियमन से संबंधित मामलों में सेबी को सलाह देने के लिए सीडीएसी का गठन किया गया था।

नियम की खास बातें: सेबी ने कहा है कि जिस जिंस में कोई कमोडिटी एक्सचेंज डेरिवेटिव कांट्रेक्ट शुरू करना चाहता है, उसे बाजार में सौदों की मात्र, एकरूपता और उसके टिकाऊपन जैसे मानकों को पूरा करना होगा। कमोडिटी डेरिवेटिव मार्केट में कारोबार के लिए उपलब्ध होने वाले जिंसों में सौदों के मामले में पूरी तरलता होनी चाहिए। जिंस को भंडारण करने लायक होना चाहिए, ताकि उसकी बेहतर कीमत मिल सके।

इसके अलावा वही जिंस कारोबार में लगातार बना रह सकता है, जिसमें सभी राष्ट्रीय कमोडिटी एक्सचेंजों में मिलाकर तीन में से कम से कम एक वित्त वर्ष के दौरान 500 करोड़ रुपये से यादा की ट्रेडिंग हो। तीन वर्ष की अवधि की गणना कमोडिटी में वायदा शुरू होने की तारीख से की जाएगी। जिन जिंसों में एक्सचेंजों में पहले से ही कारोबार हो रहा है, उन्हें भी नए मानकों को पूरा करना होगा। एक्सचेंजों को नए मानकों के आधार पर होने वाले कारोबार के नतीजों की जानकारी तीन महीने के भीतर सेबी को देनी होगी।

सौदे के लिए सही जिंस: सेबी ने वायदा कारोबार के लिए उपयुक्त जिंस को निर्धारित करने के लिए भी मानक बनाए हैं। इन मानकों के तहत कीमतों में काफी अधिक उतार-चढ़ाव, मौसम के लिहाज से संवेदनशीलता और विश्व बाजार से अत्यधिक जुड़ाव शामिल हैं।

सेबी का आदेश : पांच जिंसों में एक साल तक वायदा कारोबार पर रोक, महंगाई थामने के लिए पहली बार उठाया कदम

साल की शुरुआत में भी सरकार ने चना और सरसों के बीच में वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। फैसले के बाद नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंज ने कहा कि अगले आदेश तक इन जिंसों में कोई भी नया अनुबंध जारी नहीं किया जाएगा।

सेबी

खाद्य महंगाई के बढ़ते दबाव से निपटने के लिए सरकार ने वायदा कारोबार पर रोक लगा दी है। बाजार नियामक सेबी ने सोमवार को बताया कि पाम, मूंग, गेहू सहित पांच कमोडिटी के वायदा कारोबार को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नोटिफिकेशन के मुताबिक, 2003 में इन खाद्य उत्पादों में वायदा कारोबार शुरू किए जाने के बाद पहली बार इस पर रोक लगाई है।

इसका मकसद खुदरा बाजार में खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर काबू पाना है। आदेश के तहत धान (गैर बासमती), गेहूं, सोयाबीन और इसके डेरिवेटिव, कच्चे पाम तेल व मूंग का वायदा कारोबार एक साल तक प्रतिबंधित रहेगा। नए फैसले के बाद वायदा कारोबार से बाहर रहने वाले कुल नौ उत्पाद हो जाएंगे।

साल की शुरुआत में भी सरकार ने चना और सरसों के बीच में वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। फैसले के बाद नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंज ने कहा कि अगले आदेश तक इन जिंसों में कोई भी नया अनुबंध जारी नहीं किया जाएगा। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर भी कारोबार प्रतिबंधित रहेगा।

फैसले के तीन बड़े असर

  • 20 दिसंबर से नई पोजीशन लेने पर रोक।
  • मौजूदा सौदे को ही खत्म करने की इजाजत।
  • अगले आदेश तक नए अनुबंध नहीं होंगे।

कम हो सकती है खाद्य महंगाई दर
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के खुदरा शोध प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, घरेलू जिंसों के व्यापार में कमी और आयात बढ़ने के बाद आने वाले समय में खाद्य महंगाई नीचे आ सकती है। नवंबर में खुदरा महंगाई दर 4.91% व थोक महंगाई 14.23% पहुंच गई थी।

इसलिए प्रतिबंध की जरूरत
खाद्य तेल व्यापार महासंघ वायदा अनुबंध क्या है के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि बड़े सटोरिए वायदा कारोबार के जरिये जरूरी कमोडिटीज पर नियंत्रण बनाते हैं। बढ़ती खाद्य महंगाई से इनके वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग की थी।

कारोबारियों की राय
प्रतिबंध लगाना सरकार का पिछड़ा हुआ कदम है। इससे एग्री कमोडिटी बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा और बाजार भागीदारों का भरोसा भी कम होगा। -केवी सिंह उपाध्यक्ष, ओरिगो कमोडिटीज

सेबी की रोक के बाद कमोडिटी एक्सचेंज पर सोयाबीन, पाम, सरसों में कारोबार नहीं होगा और ये जिंस बाजार में आएंगी। इससे तिलहन सस्ता होगा। -अतुल चतुर्वेदी, अध्यक्ष भारतीय खाद्य तेल संगठन

विस्तार

खाद्य महंगाई के बढ़ते दबाव से निपटने के लिए सरकार ने वायदा कारोबार पर रोक लगा दी है। बाजार नियामक सेबी ने सोमवार को बताया कि पाम, मूंग, गेहू सहित पांच कमोडिटी के वायदा कारोबार को एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नोटिफिकेशन के मुताबिक, 2003 में इन खाद्य उत्पादों में वायदा कारोबार शुरू किए जाने के बाद पहली बार इस पर रोक लगाई है।

इसका मकसद खुदरा बाजार में खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों पर काबू पाना है। आदेश के तहत धान (गैर बासमती), गेहूं, सोयाबीन और इसके वायदा अनुबंध क्या है डेरिवेटिव, कच्चे पाम तेल व मूंग का वायदा कारोबार एक साल तक प्रतिबंधित रहेगा। नए फैसले के बाद वायदा कारोबार से बाहर रहने वाले कुल नौ उत्पाद हो जाएंगे।

साल की शुरुआत में भी सरकार ने चना और सरसों के बीच में वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। फैसले के बाद नेशनल कमोडिटी डेरिवेटिव एक्सचेंज ने कहा कि अगले आदेश तक इन जिंसों में कोई भी नया अनुबंध जारी नहीं किया जाएगा। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर भी कारोबार प्रतिबंधित रहेगा।

फैसले के तीन बड़े असर

  • 20 दिसंबर से नई पोजीशन लेने पर रोक।
  • मौजूदा सौदे को ही खत्म करने की इजाजत।
  • अगले आदेश तक नए अनुबंध नहीं होंगे।

कम हो सकती है खाद्य महंगाई दर
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के खुदरा शोध प्रमुख दीपक जसानी ने कहा, घरेलू जिंसों के व्यापार में कमी और आयात बढ़ने के बाद आने वाले समय में खाद्य महंगाई नीचे आ सकती है। नवंबर में खुदरा महंगाई दर 4.91% व थोक महंगाई 14.23% पहुंच गई थी।

इसलिए प्रतिबंध की जरूरत
खाद्य तेल वायदा अनुबंध क्या है व्यापार महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया कि बड़े सटोरिए वायदा कारोबार के जरिये जरूरी कमोडिटीज पर नियंत्रण बनाते हैं। बढ़ती खाद्य महंगाई से इनके वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग की थी।

कारोबारियों की राय
प्रतिबंध लगाना सरकार का पिछड़ा हुआ कदम है। इससे एग्री कमोडिटी बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा और बाजार भागीदारों का भरोसा भी कम होगा। -केवी सिंह उपाध्यक्ष, ओरिगो कमोडिटीज


सेबी की रोक के बाद कमोडिटी एक्सचेंज पर सोयाबीन, पाम, सरसों में कारोबार नहीं होगा और ये जिंस बाजार में आएंगी। इससे तिलहन सस्ता होगा। -अतुल चतुर्वेदी, अध्यक्ष भारतीय खाद्य तेल संगठन

रिफाइंड सोया, सोयाबीन में गिरावट, बिनौलातेल खली वायदा कीमतों में तेजी

हाजिर बाजार की कमजोर मांग के बीच सटोरियों द्वारा अपने सौदों का आकार घटाने से वायदा कारोबार में सोमवार को रिफाइंड सोया तेल का दाम 7.7 रुपये की गिरावट के साथ 1,368 रुपये प्रति 10 किग्रा रह गया। वहीं.

रिफाइंड सोया, सोयाबीन में गिरावट, बिनौलातेल खली वायदा कीमतों में तेजी

हाजिर बाजार की कमजोर मांग के बीच सटोरियों द्वारा अपने सौदों का आकार घटाने से वायदा कारोबार में सोमवार को रिफाइंड सोया तेल का दाम 7.7 रुपये की गिरावट के साथ 1,368 रुपये प्रति 10 किग्रा रह गया। वहीं सोयाबीन वायदा कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई, जबकि बिनौला तेल खली में तेजी रही। नेशनल कमोडिटी एण्ड डेरिवेटिव्ज एक्सचेंज में जून माह में डिलीवरी के लिये रिफाइंड सोया तेल वायदा अनुबंध क्या है के वायदा अनुबंध का भाव 7.7 रुपये यानी 0.56 फीसद की गिरावट के साथ 1,368 रुपये प्रति 10 किग्रा रह गया। इस अनुबंध में 30,720 लॉट के लिए सौदे किए गए।

बाजार विश्लेषकों ने कहा कि पर्याप्त स्टॉक के बीच कारोबारियों द्वारा अपने सौदों का आकार घटाने से यहां वायदा कारोबार में रिफाइंड सोया तेल कीमत में गिरावट आई। रिफाइंड सोया तेल के जुलाई माह में डिलीवर वाले वायदा अनुबंध का भाव 7.8 रुपये यानी 0.58 फीसद की नुकसान के साथ 1,348.6 रुपये प्रति 10 किग्रा रह गया। इस अनुबंध में 8,640 लॉट के लिये सौदे किए गए।

सोयाबीन वायदा भी टूटा

कमजोर हाजिर मांग के कारण कारोबारियों ने अपने सौदों की कटान की, जिससे वायदा कारोबार में सोमवार को सोयाबीन की कीमत 53 रुपये की नुकसान के साथ 6,968 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई। एनसीडीईएक्स में सोयाबीन के जून माह में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 53 रुपये अथवा 0.75 फीसद की गिरावट के साथ 6,968 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई जिसमें 48,160 लॉट के लिए कारोबार हुआ। बाजार सूत्रों ने कहा कि कारोबारियों द्वारा अपने सौदों की कटान करने से मुख्यत: सोयाबीन की कीमतों में गिरावट आई। सोयाबीन के जुलाई माह में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 29 रुपये अथवा 0.43 फीसद की गिरावट के साथ 6,704 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई, जिसमें 18,810 लॉट के लिए कारोबार हुआ।

ताजा सौदों की लिवाली से बिनौलातेल खली वायदा कीमतों में तेजी

हाजिर बाजार की मजबूत मांग को देखते हुए सटोरियों ने ताजा सौदों की लिवाली की, जिससे वायदा कारोबार में सोमवार को बिनौलातेल खली की कीमत 90 रुपये की तेजी के साथ 2,762 रुपये प्रति क्विन्टल हो गई। एनसीडीईएक्स में बिनौलातेल खली के जून माह में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 90 रुपये अथवा 3.4 फीसद की तेजी के साथ 2,762 रुपये प्रति क्विन्टल हो गई जिसमें 87,810 लॉट के लिए कारोबार हुआ। बाजार सूत्रों ने कहा कि पशुचारा निर्माता कंपनियों की बढ़ती मांग के बीच कारोबारियों द्वारा अपने सौदों का आकार बढ़ाने से मुख्यत: बिनौलातेल खली वायदा कीमतों में लाभ दर्ज हुआ। बिनौलातेल खली के जुलाई माह में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 97 रुपये अथवा 3.52 फीसद की तेजी के साथ 2,855 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई जिसमें 28,940 लॉट के लिए कारोबार हुआ।

कमजोर मांग से धनिया वायदा कीमतों में गिरावट

हाजिर बाजार की कमजोर मांग के बीच सटोरियों ने अपने सौदों के आकार को घटाया, जिससे वायदा कारोबार में सोमवार को धनिया की कीमत 126 रुपये की गिरावट के साथ 6,934 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई।एनसीडीईएक्स में धनिया के जून माह में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 126 रुपये अथवा 1.78 फीसद की गिरावट के साथ 6,934 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई जिसमें 6,340 लॉट के लिए कारोबार हुआ। बाजार विश्लेषकों ने कहा कि हाजिर बाजार की कमजोर मांग के कारण मुख्य रूप से यहां धनिया वायदा भाव में गिरावट दर्ज हुई। धनिया के जुलाई माह में डिलीवरी वाले अनुबंध की कीमत 144 रुपये अथवा 2.02 फीसद की गिरावट के साथ 6,972 रुपये प्रति क्विन्टल रह गई, जिसमें 2,050 लॉट के लिए कारोबार हुआ।

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