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एक विजेता व्यापार स्थापित करना

एक विजेता व्यापार स्थापित करना
अतिरिक्त जानकारी

यूपी में खिलाड़ियों के आड़े नहीं आएगी धन की कमी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में खिलाड़ियों के लिए उपकरण से लेकर उनकी तैयारियों, प्रशिक्षण, फिटनेस से लेकर डाइट तक के लिए राज्य सरकार की ओर से खजाना खोल दिया गया है। कमजोर तबके के उत्कृष्ट खिलाड़ियों को आर्थिक रूप से कोई समस्या न हो इसके लिए एकलव्य क्रीड़ा कोष की स्थापना की गई है। इसके तहत विभिन्न मदों में खिलाड़ियों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसमें खिलाड़ियों की डाइट से लेकर खेल के दौरान चोट लगने, उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन पर प्रोत्साहन धनराशि, खेल उपकरण के लिए अनुदान दिए जाने की व्यवस्था की गई है।

आधिकारिक सूत्रों ने शुक्रवार को बताया कि योगी सरकार के एकलव्य क्रीड़ा कोष के तहत पदक अर्जित करने वाले प्रदेश के 35 खिलाड़ियों को 31 लाख रुपये की आर्थिक सहायता खेल विभाग द्वारा उपलब्ध कराई जा चुकी है, वहीं एकलव्य कीड़ा कोष के तहत खेल संघों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में पदक विजेता खिलाड़ियों को अपने खेल विधा से संबंधित आवश्यक उपकरणों की खरीद के लिए पांच एक विजेता व्यापार स्थापित करना लाख रुपये तक अनुदान दिया जा रहा है। संबद्धता प्राप्त खेल संघों द्वारा 4 वर्षों में होने वाले एशियन चैम्पियनशिप, एशियन गेम्स, वर्ल्ड कप, विश्व चैम्पियनशिप तथा एशिया कप में पदक विजेता एवं प्रतिभागी खिलाड़ियों को शारीरिक विकास एवं संवर्धन के लिए डाइट मनी के रूप में तीन लाख रुपये की धनराशि प्रतिवर्ष देने का प्रावधान किया गया है।

इसी तरह जूनियर एशियन चैम्पियनशिप, जूनियर विश्व चैम्पियनशिप जूनियर वर्ल्ड कप एशियन कप, यूथ ओलम्पिक गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स, सैफ गेम्स पदक विजेता एवं प्रतिभागी खिलाड़ियों को 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है। इसके अलावा ओलम्पिक गेम्स के लिए क्वालिफाई व कोचिंग कैम्प के लिए खिलाड़ियों को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जा रही है।

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ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन के समय भारत का शासक कौन था?

प्रमुख बिंदु

  • ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन
    • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन 1599 में महारानी एलिजाबेथ द्वारा 1600 में दिए गए चार्टर के तहत किया गया था।
    • ब्रिटिश ज्वाइंट स्टॉक कंपनी, जैसा कि पहले जाना जाता था, की स्थापना जॉन वाट्स और जॉर्ज व्हाइट ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में एशियाई देशों के साथ व्यापार के लिए की थी।
    • इस संयुक्त स्टॉक कंपनी में ब्रिटिश व्यापारियों और अभिजात वर्ग के शेयर थे।
    • ब्रिटिश सरकार का कंपनी पर कोई नियंत्रण नहीं था और उनका कोई सीधा संबंध नहीं था।
    • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मसालों के व्यापारियों के रूप में भारत आई थी, जो उस समय यूरोप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु थी क्योंकि इसका उपयोग मांस को संरक्षित करने के लिए किया जाता था।
    • इसके अलावा, वे मुख्य रूप से रेशम, कपास, इंडिगो डाई, चाय और अफीम का व्यापार करते थे।
    • मुगल बादशाह जहांगीर ने कैप्टन विलियम हॉकिन्स को 1613 में सूरत में एक कारखाना लगाने की अनुमति देने के लिए एक फरमान दिया था। इसलिए, विकल्प 3 सही है।
    • 1615 में, जेम्स प्रथम के राजदूत थॉमस रो ने जहांगीर से मुगल साम्राज्य में व्यापार करने और कारखानों की स्थापना करने के लिए एक शाही फरमान प्राप्त किया।

    अतिरिक्त जानकारी

    • मुही-उद-दीन मुहम्मद, जिसे आमतौर पर औरंगजेब या उनके शासक शीर्षक आलमगीर द्वारा जाना जाता है , छठे मुगल सम्राट थे, जिन्होंने 49 वर्षों की अवधि के लिए लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया था।
    • नसीर-उद-दीन मुहम्मद, जिसे उनके शासक नाम, हुमायूँ से बेहतर जाना जाता है, मुगल साम्राज्य का दूसरा सम्राट था, जिसने 1530 से 1540 तक और फिर से 1555 से अफगानिस्तान, पाकिस्तान, उत्तरी भारत और बांग्लादेश में क्षेत्र पर शासन किया। 1556 तक।
    • नूर-उद-दीन मुहम्मद सलीम, जिसे उनके शाही नाम, जहाँगीर के नाम से जाना जाता है, चौथे मुगल सम्राट थे, जिन्होंने 1605 से 1627 में उनकी मृत्यु तक शासन किया। उनके शाही नाम का अर्थ है 'दुनिया का विजेता', 'विश्व विजेता' या 'विश्व विजेता'। सीज़र'।
    • शाहब-उद-दीन मुहम्मद खुर्रम, जिसे उनके शाही नाम, शाहजहाँ से बेहतर जाना जाता है , पांचवें मुगल सम्राट थे और उन्होंने 1628 से 1658 तक शासन किया। उनके शासनकाल में, मुगल साम्राज्य अपने सांस्कृतिक गौरव के चरम पर पहुंच गया। हालांकि एक सक्षम सैन्य कमांडर, शाहजहाँ को उनकी स्थापत्य उपलब्धियों के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है।

    सभी महत्वपूर्ण मुगल सम्राट:

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    Last updated on Oct 12, 2022

    OPSC OAS Answer Key, Cut Off released on 11th October 2022. This is for the Prelims examination of the 2020 cycle. The examination for the 2021 cycle is also ongoing, and the OPSC OAS Admit Card for the Prelims Exam 2021 was released recently. The exam will be held on 16th October 2022. The exam will will comprise of Paper 1 (GS) from 10 am to 12 noon for 100 questions and Paper 2 (GS) will be conducted from 1:30 pm to 3:30 pm for 80 questions. The overall selection process for OPSC OAS will include Prelims, Mains, and Interview.

    गुमशुदा नाटककार स्वदेश दीपक की स्मृति में एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन का शुभारंभ

    Swadesh-deepak

    नई दिल्ली, नवंबर 15: संगीत नाटक अवार्ड विजेता नाटककार स्वदेश दीपक (जिन्होंने कोर्ट मार्शल लिखा) , 7 जून 2006 से लापता हैं जब वो घर से टहलने के लिए निकले और कभी लौट कर नहीं आये। उनकी याद में आज कला प्रबंधन विशेषज्ञ नगीना बैंस और लेखक के बेटे, सुकान्त दीपक ने एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन की स्थापना करने की घोषणा की। चंडीगढ़ स्थित एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन किसी एक शहर तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका उद्देश्य देश भर में प्रदर्शनों, फिल्म स्क्रीनिंग, कला प्रदर्शनियों और कार्यशालाओं, व्याख्यानों, और पुस्तक वाचन संगोष्ठियों को संचालित करना और देश भर में विभिन्न कलाओं के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करना है।फाउंडेशन की पहली प्रस्तुति, महमूद फ़ारूक़ी की 'दास्ताँ-ए-कर्ण अज़ महाभारत' 16 नवंबर को चंडीगढ़ के रॉक गार्डन में होगी। इसमें योद्धा कर्ण की उस कहानी को फिर से सुनाने का प्रयास किया जायेगा जो उर्दू, फारसी, हिंदी और संस्कृत के उन स्रोतों पर आधारित है जिनमे कर्ण के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक उनके जीवन की पड़ताल की गयी है। मीडिया से बात करते हुए सुकान्त दीपक ने कहा -"कला के विभिन्न रूपों के बीच सहयोग और समकालीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर कला के माध्यम से बात रखने में मुझे हमेशा दिलचस्पी रही है। हालाँकि ये फाउंडेशन मेरे पिता की स्मृति में स्थापित किया गया है मगर इसका उद्देश्य उनके कामों का प्रचार करना नहीं है- वो ये बात कभी पसंद नहीं करते। सच कहूँ तो नगीना के प्रोत्साहन और प्रबंधन के क्षेत्र में उनकी महारत के बल पर ही ये विचार एक ठोस रूप ले पाया है। मुझे उम्मीद है की कलाकार और दर्शक हमारे प्रयास की सराहना करेंगे।" इस अवसर पर सह-संस्थापक नगीना बैंस ने कहा ,"आत्म-खोज की मेरी यात्रा में एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन मेरे मूल्यों के सबसे क़रीब है। हम एक क्षेत्र के कलाकारों के काम को दूसरे क्षेत्र के कलाकारों के सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं। और फाउंडेशन का उद्देश्य इन सब से कहीं ज़्यादा बड़ा है। कला शिक्षा, कलाकारों के साथ बातचीत, और कला परियोजनाओं के द्वारा सामाजिक विषयों पर काम करना हमारा प्रमुख एजेंडा है।"

    फाउंडेशन की सलाहकार समिति में पद्म भूषण पुरस्कार विजेता मल्लिका साराभाई (शास्त्रीय नर्तक और अभिनेत्री), पद्म श्री पुरस्कार विजेता नीलम मानसिंह चौधरी (रंगमंच निर्देशक), साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक और कवि जेरी पिंटो, पूजा सूद (निर्देशक, खोज), रवि सिंह (प्रकाशक, स्पीकिंग टाइगर), दीवान मन्ना (फोटोग्राफर), निरुपमा दत्त (कवि और आलोचक) और चंदर त्रिखा (निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी और हरियाणा उर्दू अकादमी) शामिल हैं। फाउंडेशन के बारे में बात करते हुए लेखक और कोच्ची बीएनेल फाउंडेशन के ट्रस्टी एन एस मादवन ने कहा -" मुझे एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन से बड़ी उम्मीदें हैं -ये एक ऐसा मंच है जो विभिन्न कलाओं और उनके संगम का स्वागत करता है। दुनिया भर में अलग-अलग प्रकार की कलाएं एक साथ जुड़ रही हैं और एकल कलाओं का जड़ स्वरुप अब बाक़ी नहीं रहा। हमें अब इस बाइनरी से बाहर आना होगा। यह बेहद ज़रूरी है एक क्षेत्र के दर्शकों को अन्य क्षेत्रों के विभिन्न कला रूपों से अवगत कराया जाए। कला का आदान-प्रदान एक बेहतरीन विचार है।" नीलम मानसिंह चौधरी ने कहा -"महमूद फ़ारूक़ी एक बेहतरीन दास्ताँगो हैं। ये एक बड़ी उपलब्धि है कि एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन ने उन्हें 16 नवंबर को चंडीगढ़ में दास्तानगोई के लिए आमंत्रित किया है। दर्शक एक लाजवाब कलाकार को देखेंगे, अनुभव करेंगे और उम्मीद है की कला पर दिलचस्प बातें की जाएँगी।" साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता कवी अरुंधति सुब्रमण्यम ने एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन के बारे में कहा -"एक ऐसे समय में जब हम सब ये समझने का प्रयास कर रहे हैं की कैसे अपनी जड़ों से जुड़े रह कर वैश्विक नजरिया अपनाया जाये, कैसे बिना अलग-थलग हुए स्थानीयता अपनायी जाये, कैसे बिना खुद को अलग किये अपनी अलग पहचान क़ायम रखी जाये, एल्सवेयर फ़ॉउंडेशन सही दिशा में एक बेहतरीन क़दम है। मुझे ये जानकार बेहद ख़ुशी हुई की ये पहल एक बेहतरीन लेखक की याद में की गई है और इसका उद्देश्य उन रूढ़िवादी विचारों की दीवारों को तोड़ कर संवाद स्थापित करना है जिसने इस दुनिया को बाँट रखा है।"

    राष्ट्रीय अवार्ड विजेता गीतकार, लेखक और फ़िल्म निर्माता वरुण ग्रोवर ने कहा -"यह देखते हुए कि हम भूल गए हैं कि यह देश कैसे जुड़ा हुआ है, इस तरह की एक स्वतंत्र पहल आज के समय में बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। किसी एक भौगोलिक क्षेत्र में सिमट कर नहीं रहने का एल्सवेयर फाउंडेशन का विचार लोगों को एक दूसरे के नज़दीक लाएगा। लोग कलाकारों के माध्यम से कला के उन रूपों से रूबरू होंगे जिन्हे आम तौर पर वे नहीं देख पाते हैं।" फ़िल्म निर्माता और मानव विज्ञानी आशीष अविकुंठक को लगता है -"स्वदेश दीपक की रचनाएँ उस एक विजेता व्यापार स्थापित करना शानदार गुण का प्रतीक हैं जिसके अनुसार एक व्यक्ति बाहरी दुनिया से रूबरू होते हुए भी अपनी अंतरात्मा से गहराई से जुड़ा होता है। उनकी रचनाओं के केंद्र में अंतरात्मा की यात्रा की एक भ्रमणशील कल्पना थी। एल्सवेयर फाउंडेशन इसी वैचारिक सार की अनंत संभावनाओं को लेकर आज के समय को अद्भुत कला-यात्राओं के माध्यम से समझना चाहता है। यह कला, प्रदर्शन, संगीत, फिल्मों और साहित्य के बीच आज की तारीख़ में ज़रूरी हो चुकी बहुआयामी बातचीत को बढ़ावा देने का प्रयास करता है ताकि हमारी दुनिया में नए और सफ़ल प्रयोग किये जा सकें।”

    संस्थापकों का परिचय

    नगीना बैंस- उन्हें मीडिया, कला प्रबंधन और मेहमान-नवाज़ी के क्षेत्र में शीर्ष कंपनियों के साथ काम करने का लम्बा और व्यापक अनुभव है। भारत के कुछ प्रमुख समाचार पत्रों के साथ उनके लेखन के अनुभव ने राजनीति, जीवन शैली, शिक्षा, भोजन, समाज और जीवन के बारे में उनकी समझ को समृद्ध किया है।

    सुकान्त दीपक- वो कला और साहित्य पर पिछले दो दशक से लिख रहे हैं। सुकांत का निबंध, 'पापा, एल्सवेयर' स्पीकिंग टाइगर द्वारा प्रकाशित संग्रह 'ए बुक ऑफ लाइट' का हिस्सा था। आजकल वो स्वदेश दीपक की कहानियों के संग्रह का अनुवाद कर रहे हैं जिसका 2023 में प्रकाशन होना है।

    पानीपत की दूसरी लड़ाई के नायक : सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य

    निःसंदेह हेमू अथवा सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य दिल्ली के सिंहासन पर बैठे अंतिम हिन्दू सम्राट थे । उन्होंने अति साधारण परिवार में जन्म लेकर भारत कौ स्वतंत्रता के लिए शानदार कार्य किया था । उन्होंने भारत को एक शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अत्यंत साहसी तथा पराक्रमपूर्ण विजय प्राप्त की थी। सम्राट हेमचन्द्र वह महान न्यायशील थे जिन्होंने भारत का भविष्य बदलने के लिए मृत्युपर्यत भरसक प्रयत्न किए।

    वे एक प्रतिभाशाली शासक, एक सफल सेनानायक, एक चतुर राजनीतिज्ञ तथा दूर-द्रष्ट कूटनीतिज्ञ थे । समस्त पठानों तथा तत्कालीन मुगल शासकों – बाबर तथा हुमायूं के काल तक, एक भी हिन्दू इतने ऊंचे पद पर नहीं पहुंचा था। हेमचन्द्र भारतीय इतिहास में सर्वश्रेष्ठ स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने विदेशी शासन के विरुद्ध देश के लिए अपना बलिदान दिया।

    वे अलवर क्षेत्र में राजगढ़ के निकट माछेरी ग्राम में 1501 ई. में जन्मे, धार्मिक संत पूरणदास के पुत्र थे, जो बाद में वृंदावन जाकर वल्‍लभ सम्प्रदाय के संत हरिवंश से जुड़ गए थे। उनका परिवार सुन्दर भविष्य की कामना से रिवाडी आ गया था तथा वहीं हेमचन्द्र ने शिक्षा प्राप्त की थी। शीघ्र ही उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, फारसी तथा अरबी सीख ली थी । साथ ही बचपन से उन्हें कुश्ती तथा घुड्सवारी का शौक था।

    उन दिनों ईरान-इराक से दिल्ली के मार्ग पर रिवाड़ी महत्वपूर्ण नगर था। उन्होंने शेरशाह सूरी की सेना को रसद तथा अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचानी शुरू कर दी थी तथा बाद में युद्ध में काम आने वाले शोरा भी बेचने लगे थे।

    शेरशाह सूरी की मृत्यु 22 मई, 1545 ई. को हुई थी । यह कहा जाता है कि शेरशाह के उत्तराधिकारी इस्लामशाह की नजर रिवाडी में हाथी की सवारी करते हुए, युवा, बलिष्ठ हेमचन्द्र पर पड़ी तथा वे उसे अपने साथ ले गए | उनकी प्रतिभा को देखकर इस्लामशाह ने उन्हें शानाये मण्डी, दरोगा-ए-डाक चौकी तथा प्रमुख सेनापति ही नहीं, बल्कि अपना निकटतम सलाहकार बना दिया । साथ में 1552 ई. में इस्लामशाह की मृत्यु पर उसके 2 वर्षीय पुत्र फिरोज खां को शासक बनाया गया, परन्तु तीन दिन के बाद आदिलशाह सूरी ने उसकी हत्या कर दी। नए शासक का मूलतः नाम मुवरेज खां या.मुबारकशाह था, जिसने ‘आदिलशाह ‘ की उपाधि धारण की थी। आदिलशाह एक विलासी, शराबी तथा निर्बल शासक था।
    उसके काल में चारों ओर भयंकर विद्रोह हुए। आदिलशाह ने व्यावहारिक रूप से हेमचन्द्र को शासन की समस्त जिम्मेदारी सौंपकर, प्रधानमंत्री तथा अफगान सेना का मुख्य सेनापति बना दिया।

    अधिकतकर अफगान शिविरों ने भी आदिलशाह के खिलाफ विद्रोह कर दिए थे। हेमचन्द्र ने अद्भुत शौर्य तथा वीरता का परिचय देते हुए एक-एक करके उनके विरुद्ध 22 युद्ध लड़े तथा सभी में महान सफलताएं प्राप्त की थी।

    यह भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ था, जहां हेमचन्द्र के कट्टर विरोधी अकबर के प्रसिद्ध चाटुकार अबुल फजूल तथा तत्कालीन इतिहासकार बदायूं ने उनके जीवन तथा व्यक्तित्व के सन्दर्भ में एक से बढ़कर एक अपमानजनक टिप्पणियां कीं, हां दोनों ने हेमचन्द्र की सैनिक प्रतिभा तथा विजयों की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की । उसने एक-एक करके आदिलशाह के सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया।

    1556 ई. में जब बाबर का ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं पुनः भारत लौटा तथा उसने खोये साम्राज्य पर अधिकार करना चाहा। आदिलशाह स्वयं तो चुनार भाग गया, और हेमचन्द्र को हुमायूं से लड़ने के लिए भेज दिया। इसी बीच 26 जनवरी, 1556 ई. को अफीमची हुमायूं की, जो जीवन भर इधर-उधर भटकता तथा लुढ़कता रहा, सीढ़ियों से लुढ़क कर कर मौत हो गई।

    हेमचन्द्र ने इस स्वर्णिम अवसर को न जाने दिया। उसने भारत में स्वदेशी राज्य की स्थापना के लिए अकबर की सेनाओ को आस-पास के क्षेत्रों से भगा दिया। हेमचन्द्र ने सेना को संगठित कर, ग्वालियर से आगरा की ओर प्रस्थान किया। उसकी विजयी सेनाओं ने आगरा के मुगल गवर्नर इस्केन्द्र खां उजबेग को पराजित किया। हेमचन्द्र ने अपार एक विजेता व्यापार स्थापित करना धनराशि के साथ आगरा पर कब्जा किया। और वह विशाल सेना के साथ अब दिल्ली की ओर बढ़ा। दिल्ली का मुगल गवर्नर तारीफ बेग खां अत्यधिक घबरा गया तथा भावी सम्राट अकबर तथा बैरमखां से एक विशाल सेना तुरन्त भेजने का आग्रह किया। बैरमखां की सेना , जो पंजाब के गुरुदासपुर के निकट कलानौर में डेरा डाले पड़ी थी। बैरमखां ने तुरन्त अपने योग्यतम सेनापति पीर मोहम्मद शेरवानी के नेतृत्व में एक विशाल सेना देकर भेजा। भारतीय इतिहास का एक महान निर्णायक युद्ध 6 अक्तूबर, 1556 ई. तुगलकाबाद में हुआ जिसमें मुगलों की भारत विजय हुई। लगभग 3000 मुगल सैनिक मारे गए।

    आखिर 7 अक्तूबर, 1556 को भारतीय इतिहास का वह विजय दिवस आया जब दिल्ली के सिंहासन पर सैकड़ों वर्षों की गुलामी तथा अधीनता के बाद हिन्दू साम्राज्य की स्थापना हुई। विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. आर.सी. मजूमदार ने इसे भारत के इतिहास के मुस्लिम शासन की अद्वितीय घटना बताया। वस्तुतः यह महान घटना, समूचे एशिया में दिल दहलाने वाली थी। आश्चर्य तो यह है कि मुस्लिम चाटुकार, दरबारी इतिहासकारों तथा लेखकों से न्योयाचित प्रशंसा की अपेक्षा तो नहीं थी, बल्कि विश्व में निष्पक्षता तथा नैतिकता का ढोल पीटने वाले, किसी भी ब्रिटिश इतिहासकार ने हेमचन्द्र की वीरता एवं शौर्य के बारे में एक भी शब्द नहीं लिखा। संभवत: इससे उनका भारत पर एक विजेता व्यापार स्थापित करना राज करने का भावी स्वप्न पूरा न होता। वस्तुतः यह किसी भी भारतीय के लिए, जो भारतभूमि को पुण्यभूमि मातृभूमि मानता हो, अत्यंत गौरव का दिवस था।

    हेमचन्द्र का राज्याभिषेक भी भारतीय इतिहास की अद्वितीय घटना थी। भारत के प्राचीन गौरवमय इतिहास से परिपूर्ण पुराने किले (पांडवों के किले) में हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार राज्याभिषेक था। अफगान तथा राजपूत सेना को सुसज्जित किया गया। सिंहासन पर एक सुन्दर छतरी लगाई गई। हेमचन्द्र ने भारत के शन्नुओं पर विजय के रूप में ‘शकारि’ विजेता की भांति “विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की । नए सिक्के गढ़े गए। राज्याभिषेक की सर्वोच्च विशेषता संम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य की घोषणाएं थीं जो आज भी किसी भी प्रबुद्ध शासक के लिए मर्गदर्शक हो सकती हैं।

    सम्राट ने पहली घोषणा की, कि भविष्य में गोहत्या पर प्रतिबंध होगा तथा आज्ञा न मानने वाले का सिर काट लिया जाएगा। सम्भवतः यह समूचे पठानों, मुगलों, अंग्रेजों तथा भारत की स्वतंत्रता के बाद तक की दृष्टि से पहली घोषणा थी । यदि हम समस्त मुगल काल को देखें तो केवल 857 के महासमर के समय बहादुरशाह जफर से तीन बार यह घोषणा जबरदस्ती करवाई गई थी। तथा इसका पालन एक बार भी न हुआ। देश की स्वतंत्रता के पश्चातू डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने ऐसे 3000 पत्रों व तारों को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को भेजते हुए आग्रह किया था कि भारत का पहला कानून 5 अगस्त, 947 को गोहत्या बन्दी के बारे में होना चाहिए। तत्कालीन प्रकाशित पत्र-व्यवहार से ज्ञात होता है कि मिश्रित संस्कृति का ढोंग पीटते हुए पं. नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया था।

    सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य की दूसरी घोषणा भ्रष्टाचारी कर्मचारियों को तुरन्त हटाने की थी। वे जानते थे कि भ्रष्टाचार को मौका देकर महान गलती होगी। एक अन्य घोषणा में सम्राट ने देश में तुरन्त व्यापार वाणिज्य में सुधारों की घोषणा।

    इस भांति अनेक राजपूतों की महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति की घोषणा की। जहां दिल्ली में यह विजय दिवस था, वहां बैरमखां के खेमे में यह शोक दिवस था। आगरा, दिल्ली सम्भलपुर तथा अन्य स्थानों के भगोड़े मुगल गवर्नर अपनी पराजित सेनाओं के साथ मुंह लटकाए खड़े थे। अनेक सेनानायकों ने हेमचन्द्र के विरुद्ध लड़ने से मना कर दिया था, वे बार-बार काबुल लौटने की बात कर रहे थे, परन्तु बैरमखां इस घोर पराजय के लिए तैयार न था।

    आखिर 5 नवम्बर, 1556 ई. को पानीपत में पुनः हेमचन्द्र व मुगलों की सेनाओं में टकराव हुआ। प्रत्यक्ष-द्रष्टओं का कथन है कि हेमचन्द्र के दाईं और बाईं ओर की सेनाएं विजय के साथ आगे बढ़ रही थीं। केन्द्र में स्वयं सम्राट सेना का संचालन कर रहे थे। परन्तु अचानक आंख में एक तीर लग जाने से, वे बेहोश हो गए। देश का भाग्य पुन: बदला गया।

    हेमचन्द्र को बेहोश हालत में ही सिर काट कर मार दिया गया। उनका मुख काबुल भेजा गया तथा शेष धड़ दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया गया। उससे भी उनकी जब तसल्ली न हुई उनके पुराने घर माछेरी पर आक्रमण किया गया। लूटमार की गई। उनके 80 वर्षीय पिता पूरनदास को धर्म परिवर्तन के लिए कहा गया। न मानने पर उनका भी कत्ल कर दिया गया।

    इस प्रकार सम्राट हेमचन्द्र का 29 दिन तक दिल्ली पर सुशासन का शानदार युग समाप्त हुआ। वस्तुतः सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य भारत के गगन में एक पुच्छल तारे की भांति थे जो चमके, दमके, धधके तथा बिलीन हो गए। उन्होंने तत्कालीन देश की युवा पीढ़ी का भी मार्गदर्शन किया, जिसे रानी दुर्गावती, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी तथा गुरु गोविन्द ने आगे बढ़ाया। आज महत्ती आवश्यकता है कि उस महापुरुष का जीवन भारतीय इतिहास की पाद्य पुस्तकों का अंग बने।

    एनटीपीसी लिमिटेड को दी “स्वर्ण शक्ति” विजेता ट्रॉफी

    बिहार के भागलपुर जिले में अवस्थित एनटीपीसी लिमिटेड के कहलगांव बिजली संयंत्र को “स्वर्ण शक्ति एवार्ड” कार्यक्रम के तहत सुरक्षा श्रेणी में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रतिष्ठित “स्वर्ण शक्ति” का विजेता ट्रॉफी प्रदान किया गया है।

    केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आर. के. सिंह ने नईदिल्ली में आयोजित एनटीपीसी के एक कार्यक्रम में पूर्वी क्षेत्र-एक के कार्यकारी निदेशक डीएस बाबजी एवं कहलगांव संयंत्र के मुख्य महाप्रबंधक अरिंदम सिन्हा को केन्द्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री कृष्ण पाल, केन्द्रीय ऊर्जा सचिव आलोक कुमार तथा एनटीपीसी के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक गुरुदेव सिंह की उपस्थिति में यह सम्मान दिया।

    एनटीपीसी विद्युम परियोजनाओं को, सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठता के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रयासरत रहते हुए कर्मचारियों को बेहतर प्रदर्शन करने के प्रति प्रोत्साहित करने के उददेश्य से “ स्वर्ण शक्ति पुरस्कार” उत्पादकता, सुरक्षा, कर्मचारी संबंध, पर्यावरण संरक्षण और सुधार, राजभाषा, सर्वोत्तम स्वास्थ्य सुविधाएं, सीएसआर और सामुदायिक विकास और परियोजना प्रबंध के क्षेत्रों में दिए जाते हैं।

    कहलगांव बिजली संयंत्र में मुख्य प्लांट प्रचालन शून्य दुर्घटना रहा तथा ओवर हालिंग कार्य भी दुर्घटना मुक्त रही है। कर्मचारियों एवं कार्यरत संविदाकर्मियों में सुरक्षा के प्रति संचेतना पैदा करने के लिए वर्ष भर सुरक्षा विभाग की ओर से सड़क सुरक्षा, विद्युत सुरक्षा, अग्नि सुरक्षा, गृह सुरक्षा आदि के बारे में कार्यक्रम चलाए गए। जिसमे कहलगांव बिजली संयंत्र को देश में एनटीपीसी के सभी बिजली संयंत्रों में से श्रेष्ठ घोषित किया गया है।

    इधर, एनटीपीसी के पूर्वी क्षेत्र-एक के कार्यकारी निदेशक डीएस बाबजी एवं कहलगांव संयंत्र के मुख्य महाप्रबंधक अरिंदम सिन्हा ने इस विशेष सम्मान पर कहलगांव संयंत्र के अधिकारियों तथा कर्मचारियों की टीम को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार और इस बिजली संयंत्र को एक सुरक्षित कार्यस्थल बनाने की उनकी निरंतर कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता के लिए बधाई दी है।

    इस बीच कहलगांव बिजली संयंत्र कर्मियों के बीच इस संयंत्र को सुरक्षा (ओ एंड एम) श्रेणी में प्रतिष्ठित “स्वर्ण शक्ति” के विजेता ट्रॉफी से सम्मानित होने से हर्ष का माहौल है। इस मौके पर सभी एनटीपीसी कर्मियों ने आत्मविश्वास एवं गौरव के साथ और भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए कहलगांव बिजली संयंत्र के लिए सम्मान अर्जित करने का संकल्प दोहराया है।

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