आधुनिक बाजार

आधुनिक बाजार की चुनौतियों पर मंथन
कार्यशाला में डॉ. धर्मेंद्र लाटा ने कहा कि आधुनिक बाजार आधुनिक बाजार में कैशलेस का दौर चल रहा है, जिसमें बाजार के सामने बहुत सी चुनौतियां है। व्यापारियों को इन चुनौतियों को स्वीकार करना होगा। किशोर न्याय बोर्ड सदस्य एडवोकेट रामेश्वर प्रजापति ने कानूनी पहल पर प्रकाश डाला। निदेशक भंवरलाल रूयल ने मार्केटिंग की चुनौती के बारे में जानकारी दी। मानवाधिकार के जिलाध्यक्ष उत्तमसिंह राठौड़ ने युवाओं की भागीदारी पर बल दिया। कार्यशाला में प्रबंधक भूपेंद्र रूयल, मोहन आसेरी, विजेंद्र नायक, तुलसी, पुष्पा सैनी, सुमन, कमलेश, घनश्याम आदि ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में चूरू, तारानगर, सरदारशहर मलसीसर के करीब 30 युवाओं ने भाग लिया।
आधुनिक बाजार किन सामग्रियों से भरा पड़ा है? (क) विलासितापूर्ण (ख) सौन्दर्य (ग) खर्चीली (घ) सस्ती
यह प्रश्न उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ से लिया गया है | आज के समय में सब कुछ बादल गया है | बाज़ार में दिखावे की चीज़े भरी पड़ी हुई है | लोग की जरूरते उनकी आवश्यकता के अनुसार नहीं रही है | लोग दिखावे की चीज़े पसंद करने लगे है | सब कुह बदल रहा है , लोगों के रहन-सहन से लेकर , खान-पान तक सब बदल रहा है |
आधुनिक बाजार किन सामग्रियों से भरा पड़ा है? सौंदर्य
⏩ ‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ में लेखक ने बताया है कि आधुनिक बाजार विलासिता पूर्ण सामग्रियों से भरा पड़ा है। लेखक के अनुसार नई जीवनशैली उपभोक्तावाद भ्रमजाल में पढ़कर व्यक्ति अधिक से अधिक वस्तुएं खरीदने लगा है और उसकी इस प्रवृत्ति को भुनाते हुए बाजार भी विलासिता पूर्ण वस्तुओं से भर गया है। तरह-तरह की नई विलासिता पूर्ण वस्तुएं लोगों को लुभाती हैं। लेखक के अनुसार उपभोक्तावाद की संस्कृति आज की नई जीवनशैली बन गई है।
सदर को आधुनिक बाजार बनाने का खाका तैयार
जागरण संवाददाता, गुरुग्राम: सदर बाजार को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए खाका तैयार कर लिया गया है। मार्च में सदर को आधुनिक बाजार बनाया जाना था, लेकिन योजना सिरे नहीं चढ़ी। इस बार 15 अगस्त से सदर बाजार को नो-व्हीकल जोन बनाया जाएगा। बाजार में बड़े वाहनों के साथ ही दोपहिया वाहनों का प्रवेश पूरी तरह बंद किया जाएगा। दुकानदारों और ग्राहकों के लिए अलग से पार्किंग की व्यवस्था होगी और बाजार में आने वाले ग्राहकों को पैदल न चलना पड़े, इसके लिए ई-रिक्शा का इंतजाम किया जाएगा। अगर यह एक्शन प्लान सफल रहा तो बाजार की सूरत बदल जाएगी। तैयारियां पूरी करने के लिए महज चार दिन ही बाकी हैं। नगर निगम के संयुक्त आयुक्त जितेंद्र गर्ग के मुताबिक बाजार को आधुनिक बनाने के लिए तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं
फिलहाल ये है स्थिति
- बाजार की कई फुट चौड़ी गलियां अतिक्रमण के कारण संकरी हो गई हैं।
- दुकानों के आगे रेहड़ी-पटरी के कारण अतिक्रमण है।
- दुपहिया से लेकर बड़े वाहनों का बाजार में प्रवेश है और बाजार पैदल चलने योग्य नहीं है।
- पार्किंग की उचित व्यवस्था नहीं है।
- रेहड़ी वालों के बेतरतीब खड़े होने के कारण दिनभर परेशानी होती है।
- शौचालयों में सुविधा नहीं होने से यहां आने वाले लोग व दुकानदारों को समस्या है।
- बाजार में अतिक्रमण होने के आधुनिक बाजार कारण आगजनी जैसी घटना होने पर दमकल पहुंचने के लिए भी रास्ता नहीं है।
अधिकारियों का दावा, अब नया ये किया जाएगा
वेंडिग जोन: अव्यवस्थित रेहड़ियों को हटाकर एक जगह पर वेंडिग जोने बनाया जाएगा।
पार्किंग: दुकानदारों और ग्राहकों के लिए पार्किंग बनेगी।
बागवानी: बाजार की सुंदरता बढ़ाने के लिए फूल वाले पौधों के गमले लगाए जाएंगे।
शौचालय: एक कंपनी द्वारा सीएसआर के तहत शौचालयों की मरम्मत की जाएगी।
वाहन: वाहनों का प्रवेश बंद होगा। बैरिकेड्स लगाए जाएंगे। दुकानों में सामान लेकर आने वाले वाहनों के लिए बैरिकेड्स एक तय समय में ही खुलेंगे।
सफाई: सुबह बाजार खुलने से पहले और रात में बाजार बंद होने के बाद सफाई होगी।
क्या आधुनिक बाजार व्यवस्था जन-साधारण विरोधी नहीं है?
क्या आधुनिक बाज़ार व्यवस्था जनसाधारण की विरोधी नही है ?
हम आधुनिक युग में जी रहे है | आधुनिक युग की आधुनिक बाजार बाज़ार व्यवस्था में जी रहे है | क्योंकि हमारे भोजन – वस्त्र , घर – मकान , शिक्षा – इलाज़ की सभी बुनियादी जरूरते बाज़ार से जुड़ने पर ही मिल पाती है और फिर छोटे – बड़े लाभ – मुनाफे कमाना तो बाज़ार व्यवस्था का अपरिहार्य हिस्सा है और यही बाज़ार व्यवस्था का वास्तविक लक्ष्य भी है | वर्तमान सामाजिक – व्यवस्था को बाज़ार व्यवस्था क्यों कहा जा रहा है ? इसका एकदम सीधा जबाब है कि इस सामाजिक व्यवस्था में राष्ट्र व् समाज के सभी लोगो को खरीद – बिक्री की प्रक्रिया से जुड़ना लाजिमी है | कुछ भी पाने के लिए कुछ बेचना और खरीदना जरूरी है | कुछ बेचे बिना कोई भी कुछ खरीद नही सकता | उदाहरण के लिए मजदूर को अपना भोजन , कपड़ा खरीदने के लिए अपनी श्रमशक्ति को बेचना जरूरी है .अपरिहार्य है | किसानो को अपनी खेती के लिये तथा अपने कपड़े -लत्ते तथा दूसरी जरुरतो के लिए अपने कृषि उत्पाद को या अपने किसी सदस्य की श्रम शक्ति को बेचना जरूरी है | यही स्थिति तमाम छोटे उत्पादकों की है |
इसके अलावा, चिकित्सा , शिक्षा तथा कानून व न्याय के क्षेत्र के लोगो के लिए भी जरूरी है कि वे पहले अपनी बौद्धिक क्षमता को बेचने लायक बने| इसके लिए विभिन्न क्षेत्रो का शिक्षा ज्ञान हासिल करे | फिर अपने शिक्षा ज्ञान का बिक्री – व्यापार करे | चाहे उसका नौकरी के जरिये वेतन आदि के रूप में मूल्य पाए या फिर अपने निजी काम धंधे के जरिये उसका व्यापार करे| अपनी सेवा का कम या ज्यादा मूल्य पाए और फिर उससे अपने जीवन को संसाधनों , सुविधाओं को खरीदे | व्यापारियों , उद्योगपतियों के मालो , सामानों की बिक्री से लाभ – मुनाफे के लिए आवश्यक ही है की वे अपने मालो , सामानों की बिक्री बाज़ार बढाये | इसी लक्ष्य से उत्पादन विनिमय को संचालित करे| यही वह हिस्सा है , जो बाज़ार – व्यवस्था का प्रबल हिमायिती है | उसका संचालक है | इसे आप इस तरह भी कह सकते है कि जंहा व्यापारी , उद्योगपति नही है या छोटे स्तर के है तो वंहा बाज़ार व्यवस्था नही है | अगर कंही व्यापारी व उद्योगपति अत्यंत छोटे स्तर के है तो इस बात का सबूत है कि अभी वंहा छोटे – मोटे बाज़ार तो है , पर बाज़ार व्यवस्था भी नही है | उदाहरण —- आज से 100 – 200 साल पहले भारतीय समाज में खासकर ग्रामीण समाज में लोगो के आवश्यकताओ कि पूर्ति ग्रामीण समाज में मौजूद श्रम विभाजन से ही पूरी हो जाती थी | किसी ख़ास सामान के लिए ही उन्हें बाज़ार जाना पड़ता था |लेकिन आधुनिक बाज़ार व्यवस्था के आगमन के साथ बाज़ार का यानी खरीद – बिक्री केंद्र का विकास नगर , शहर , कस्बे से होता हुआ हर चट्टी – चौराहे तक फ़ैल गया है | हर आदमी खरीद – बिक्री कि प्रक्रिया से जुड़ गया है और अधिकाधिक जुड़ता जा रहा है |आधुनिक युग कि बाज़ार व्यवस्था ने हर किसी कि महत्ता महानता को चीन लिया है , कयोंकि हर तरह का हुनर , ज्ञान , अनुभव , बिकाऊ माल बन गया है | उसे पाने का लक्ष्य मालो , सामानों कि तरह ही उसकी खरीद आधुनिक बाजार – फरोख्त बन गया है |आज कोई आश्चर्य नही कि , मनुष्य का मूल्य उसके गुणों के आधार पर नही बल्कि खरीद – बिक्री की क्षमता के आधार पर किया जा रहा है |इस बाज़ार व्यवस्था का अनिवार्य पहलु यह भी है कि यदि किसी के पास बेचने के लिए कुछ भी नही है या जिसका श्रम – सामान बिकाऊ नही है तो उसके जीने का अधिकार भी नही है |फिर तो वह किसी के सहारे या फिर भीख – दान अथवा ठगी , चोरी के जरिये ही जीवन जी सकता है |बाज़ार व्यवस्था के वर्तमान दौर के विकास में यही हो रहा है |आधुनिक आर्थिक व तकनिकी विकास के दौर में साधारण श्रम और साधारण उत्पादन कि बाज़ार में मांग घटी जा रही है | या तो उनकी बिक्री ही नही हो पा रही है , या फिर उनका मूल्य इतना कम है कि उससे न तो उपभोग के सामानों को खरीदकर श्रम शक्ति का पुनरुत्पादन किया जा सकता है और न ही बढ़ते लागत के चलते उन साधारण मालो , सामानों का ही पुन: उत्पादन किया जा सकता है | साधारण मजदूरों , किसानो ,सीमांत व छोटे किसानो, दस्तकारो तथा छोटे कारोबारियों कि यही स्थिति है| वे बाज़ार में टूटते जा रहे है |
चूँकि वर्तमान दौर की बाज़ार व्यवस्था विश्व – बाज़ार व्यवस्था का एक अंग है | इसका संचालन व नियंत्रण देश – दुनिया के धनाढ्य एवं उच्च हिस्से कर रहे है | उसे वे अपने जैसे लोगो के लिए या फिर अपने सेवको के लिए बाज़ार व्यवस्था को बदल रहे है |आम आदमी को उससे बाहर करते जा रहे है |बेकार , बेरोजगार , संकटग्रस्त होकर जीने और मरने के लिए छोड़ते जा रहे है |क्या यह बाज़ार व्यवस्था जनसाधारण के जीवन- यापन कि उसके बुनियादी हितो कि विरोधी नही है ? क्या जनहित में देश व समाज कि व्यवस्था में जनसाधारण कि आवश्यकतानुसार बदलाव अनिवार्य , अपरिहार्य नही हो गया है ?
क्या इस देश के लोगो को इसपे सोचना नही चाहिए ………….