खरीदारी की मुद्रा

आभासी मुद्रा का मायाजाल, हो रहे कंगाल; जानिए क्या है क्रिप्टो करेंसी
भारत में क्रिप्टो करेंसी को अब तक अधिकृत नहीं किया गया है। बावजूद इसके लाखों की संख्या में लोग इस करेंसी के मायाजाल में फंसकर कंगाल हो रहे हैं। उत्तराखंड एसटीएफ ने साइबर ठगी के जिस मामले का पर्दाफाश किया है वह भी इस आभासी मुद्रा से जुड़ा हुआ है।
अंकुर अग्रवाल, देहरादून। क्रिप्टो करेंसी यानी आभासी मुद्रा या वर्चुअल मुद्रा। आम मुद्रा की तरह इसे न देख सकते हैं, और न ही छू सकते। क्रिप्टो करेंसी के लिए न कोई बैंक खरीदारी की मुद्रा है, न एटीएम। यह पूरी तरह आनलाइन है। यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है। वहीं, धोखाधड़ी के मामलों को देखते हुए भारत में इसे अब तक अधिकृत नहीं किया गया है। बावजूद इसके लाखों की संख्या में लोग इस करेंसी के मायाजाल में फंसकर कंगाल हो रहे हैं। उत्तराखंड एसटीएफ ने मंगलवार को साइबर ठगी के जिस मामले का पर्दाफाश किया है, वह भी इस आभासी मुद्रा से जुड़ा हुआ है। धोखाधड़ी के बाद भारतीयों की मुद्रा क्रिप्टो करेंसी में बदलकर चीन और थाईलैंड भेजी जा रही थी। फिर वहां इसे स्थानीय मुद्रा में बदलकर चलन में लाया जा रहा था।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) एसटीएफ अजय सिंह ने बताया कि क्रिप्टो करेंसी इस वक्त कई देश में चल रही है। इसमें एक देश से दूसरे देश में कोई भी रकम भेजने के लिए उस देश की करेंसी में बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। एक बैंक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में रकम ट्रांसफर होने में दस मिनट से भी कम समय लगता है। बैंक अकाउंट किसी भी देश में क्यों न हो। यदि आप क्रिप्टो करेंसी को किसी बैंक या फिर एटीएम से प्रचलित मुद्रा के समान निकालना चाहें तो यह संभव ही नहीं। यह आनलाइन मुद्रा है। आज के जमाने में बड़ी संख्या में लोग अपनी रकम को डिजिटल वालेट में रखते हैं। क्रिप्टो करेंसी उसी तरह डिजिटल वालेट में होती है और कई देशों में आनलाइन खरीदारी में यह इस्तेमाल हो रही है। एसएसपी एसटीएफ अजय सिंह के मुताबिक, बैंक के जो नियम-कायदे अवैध लेनदेन में आड़े आते हैं, उसे अपराधी क्रिप्टो करेंसी के जरिये अंजाम देते हैं।
2009 में हुई थी शुरुआत
साइबर एक्सपर्ट अंकुर चंद्रकांत के मुताबिक, क्रिप्टो करेंसी की शुरुआत 2009 में हुई थी। उस खरीदारी की मुद्रा समय इसे ‘बिटक्वाइन’ के नाम से जाना गया था। जापान के इंजीनियर सतोषी नाकमोतो ने इसे बनाया था।
यह हैं आभासी मुद्रा के नुकसान
- क्रिप्टो करेंसी खरीदारी की मुद्रा का लेन-देन एक कोड और पासवर्ड के जरिये किया जाता है। यदि कोई कोड या पासवर्ड भूल जाए तो उसकी पूरी रकम डूब जाती है।
- इसका इस्तेमाल अवैध तरीके से रकम एक जगह से दूसरी जगह भेजने में किया जा रहा है।
- इस पर नियंत्रण के लिए कोई संस्था नहीं है। ऐसे में इसकी कीमत पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। यह कभी काफी बढ़ जाती है तो कभी निचले स्तर पर आ जाती है।
- क्रिप्टो करेंसी को क्रिप्टो एक्सचेंज से या सीधे किसी व्यक्ति से आनलाइन भी खरीद सकते हैं। इसमें धोखाधड़ी का पूरा अंदेशा रहता है।
एक बिटक्वाइन 42 लाख का
साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक मौजूदा समय में एक बिटक्वाइन की कीमत भारत की मुद्रा में 42 लाख के करीब है। करीब डेढ़ साल पहले तक इसकी कीमत करीब साढ़े चार लाख रुपये थी, लेकिन लगातार इसका चलन बढ़ने से इसमें दस गुना तक उछाल आया है। बड़ी संख्या में लोग मोटी रकम के निवेश के लिए खरीद रहे हैं। यह ब्लाकचेन टेक्नोलाजी पर आधारित है। इसे हैक करना बेहद मुश्किल है। एक डिजिटल बही-खाता है, जिसमें सभी लेनदेन का पूरा रिकार्ड रहता है। एक बार किसी का लेनदेन इसमें दर्ज हो जाए तो उसे हटाना नामुमकिन होता है।
शुरुआत में मुनाफा भी दिया
पावर बैंक एप फरवरी में शुरू हुआ और 12 मई को बंद हो गया। इस दौरान इस एप के जरिये करोड़ों का कारोबार हुआ। उत्तराखंड पुलिस के अनुसार, यह एप इतनी कम अवधि में करीब 50 लाख लोग डाउनलोड कर चुके थे। जिन्होंने एप के जरिये निवेश किया। इस एप ने शुरुआत में निवेशकों को अच्छा खासा मुनाफा भी दिया। जिसके चलते इसमें निवेश की रकम बढ़ती गई, लेकिन आखिर में इस एप में निवेश की गई रकम की निकासी नहीं हो पा रही थी। इंटरनेट के माध्यम से कई निवेशकों ने यह सवाल उठाया था कि वे अपनी रकम नहीं निकाल पा रहे हैं। पुलिस का कहना है कि भारत के निवेशकों की रकम को विदेश में निकाला जा रहा था। भारत के बैंकों ने इस एप की रकम की निकासी पर रोक लगा दी थी। यही कारण है कि इससे कोई अपना पैसा वापस नहीं निकाल पाया।
ग्रेशम का नियम स्पष्ट करता है कि
Key Points ग्रेहम का नियम:
- ग्रेहम का नियम कहता है कि " बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है जब दोनों पूर्ण कानूनी निविदा होती हैं"।
- "बुरी मुद्रा" शब्द का अर्थ नकली सिक्के नहीं है। यह उन सिक्कों को संदर्भित करता है जो टूटे हुए, कटे हुए या कम भार के होते हैं।
- जब "अच्छी मुद्रा" और "बुरी मुद्रा" दोनों उपयोग में होती हैं, तो लोग "अच्छी मुद्रा" की जमाखोरी करते हुए "बुरी मुद्रा" का उपयोग खरीदारी के लिए करेंगे।
- मनुष्यों की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वे अच्छे सिक्के रखते हैं और कुछ पुराने और खराब हो चुके सिक्कों को त्याग देते हैं।
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Last updated on Sep 22, 2022
The Uttar Pradesh Secondary Education Service Selection Board (UPSESSB) has decided to extend the last date to submit online applications to conduct recruitment for the post of UP TGT (Trained Graduate Teacher). Now the applicants can submit their online application up to 16th July 2022. In this year's recruitment cycle the total vacancy of 3539 has been released. Willing candidates having the required UP TGT Eligibility Criteria can apply for the exam. This is a golden opportunity for candidates who want to get into the teaching profession in the state of Uttar Pradesh.
अब ऑनलाइन खरीदें विदेशी मुद्रा, करें मनचाही शॉपिंग
इस कार्ड के जरिए आप सीधे खरीदारी कर सकते हैं या फिर एटीएम से नकदी निकासी भी कर सकते हैं। आने वाले दिनों में बैंकिंग सेवा में डिजिटल माध्यम का बहुत बड़ा योगदान होगा।
Published: May 22, 2016 02:40:42 pm
जयपुर। देश में गर्मी की छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं। एेसे में लाखों भारतीय परिवार विदेश में छुट्टियां मनाने जा रहे हैं। इनके समक्ष सबसे बड़ी समस्या विदेशी मुद्रा विदेश ले जाने की होती है। कई बैंक विदेशी मुद्रा कार्ड की सुविधा देते हैं। विदेशी मुद्रा कार्ड के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। इसका भुगतान डेबिट के माध्यम से किया जा सकता है।
खरीदारी भी कर सकते हैं
कार्ड आवदेक के दिए गए पते पर भेजा जाता है। कार्ड में जरूरी विदेशी मुद्रा दुनिया के किसी भी हिस्से से भरी जा सकती है। साथ ही विश्व के 32 देशों से ग्राहक चाहें तो हेल्पालाइन नंबर पर फोन कर अपने कार्ड में उचित विदेशी मुद्रा डलवा सकते हैं।
इस कार्ड के जरिए आप सीधे खरीदारी कर सकते हैं या फिर एटीएम से नकदी निकासी भी कर सकते हैं। आने वाले दिनों में बैंकिंग सेवा में डिजिटल माध्यम का बहुत बड़ा योगदान होगा।
कार्ड की खासियत
कई विदेशी मुद्रा कार्ड बाजार में मौजूद हैं, जो दो दर्जन से ज्यादा विभिन्न मुद्राओं में डील करते हैं। कार्ड इस्तेमाल करने पर आकर्षक स्कीमों का फायदा उठाया जा सकता है। इससे विदेशी मुद्रा पर्स में ढोने और उसके गुम होने की चिंता से मुक्ति और कार्ड के साथ बीमा की सुविधा भी मिलती है।
आभासी मुद्रा का मायाजाल, हो रहे कंगाल; जानिए क्या है क्रिप्टो करेंसी
भारत में क्रिप्टो करेंसी को अब तक अधिकृत नहीं किया गया है। बावजूद इसके लाखों की संख्या में लोग इस करेंसी के मायाजाल में फंसकर कंगाल हो रहे हैं। उत्तराखंड एसटीएफ ने साइबर ठगी के जिस मामले का पर्दाफाश किया है वह भी इस आभासी मुद्रा से जुड़ा हुआ है।
अंकुर अग्रवाल, देहरादून। क्रिप्टो करेंसी यानी आभासी मुद्रा या वर्चुअल मुद्रा। आम मुद्रा की तरह इसे न देख सकते हैं, और न ही छू सकते। क्रिप्टो करेंसी के लिए न कोई बैंक खरीदारी की मुद्रा है, न एटीएम। यह पूरी तरह आनलाइन है। यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है। वहीं, धोखाधड़ी के मामलों को देखते हुए भारत में इसे अब तक अधिकृत नहीं किया गया है। बावजूद इसके लाखों की संख्या में लोग इस करेंसी के मायाजाल में फंसकर कंगाल हो रहे हैं। उत्तराखंड एसटीएफ ने मंगलवार को साइबर ठगी के जिस मामले का पर्दाफाश किया है, वह भी इस आभासी मुद्रा से जुड़ा हुआ है। धोखाधड़ी के बाद भारतीयों की मुद्रा क्रिप्टो करेंसी में बदलकर चीन और थाईलैंड भेजी जा रही थी। फिर वहां इसे स्थानीय मुद्रा में बदलकर चलन में लाया जा रहा था।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) एसटीएफ अजय सिंह ने बताया कि क्रिप्टो करेंसी इस वक्त कई देश में चल रही है। इसमें एक देश से दूसरे देश में कोई भी रकम भेजने के लिए उस देश की करेंसी में बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। एक बैंक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में रकम ट्रांसफर होने में दस मिनट से भी कम समय लगता है। बैंक अकाउंट किसी भी देश में क्यों न हो। यदि आप क्रिप्टो करेंसी को किसी बैंक या फिर एटीएम से प्रचलित मुद्रा के समान निकालना चाहें तो यह संभव ही नहीं। यह आनलाइन मुद्रा है। आज के जमाने में बड़ी संख्या में लोग अपनी रकम को डिजिटल वालेट में रखते हैं। क्रिप्टो करेंसी उसी तरह डिजिटल वालेट में होती है और कई देशों में आनलाइन खरीदारी में यह इस्तेमाल हो रही है। एसएसपी एसटीएफ अजय सिंह के मुताबिक, बैंक के जो नियम-कायदे अवैध लेनदेन में आड़े आते हैं, उसे अपराधी क्रिप्टो करेंसी के जरिये अंजाम देते हैं।
2009 में हुई थी शुरुआत
साइबर एक्सपर्ट अंकुर चंद्रकांत के मुताबिक, क्रिप्टो करेंसी की शुरुआत 2009 में हुई थी। उस समय इसे ‘बिटक्वाइन’ के नाम से जाना गया था। जापान के इंजीनियर सतोषी नाकमोतो ने इसे बनाया था।
यह हैं आभासी मुद्रा के नुकसान
- क्रिप्टो करेंसी का लेन-देन एक कोड और पासवर्ड के जरिये किया जाता है। यदि कोई कोड या पासवर्ड भूल जाए तो उसकी पूरी रकम डूब जाती है।
- इसका इस्तेमाल अवैध तरीके से रकम एक जगह से दूसरी जगह भेजने में किया जा रहा है।
- इस पर नियंत्रण के लिए कोई संस्था नहीं है। ऐसे में इसकी कीमत पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। यह कभी काफी बढ़ जाती है तो कभी निचले स्तर पर आ जाती है।
- क्रिप्टो करेंसी को क्रिप्टो एक्सचेंज से या सीधे किसी व्यक्ति से आनलाइन भी खरीद सकते हैं। इसमें धोखाधड़ी का पूरा अंदेशा रहता है।
एक बिटक्वाइन 42 लाख का
साइबर एक्सपर्ट्स के मुताबिक मौजूदा समय में एक बिटक्वाइन की कीमत भारत की मुद्रा में 42 लाख के करीब है। करीब डेढ़ साल पहले तक इसकी कीमत करीब साढ़े चार लाख रुपये थी, लेकिन लगातार इसका चलन बढ़ने से इसमें दस गुना तक उछाल आया है। बड़ी संख्या में लोग मोटी रकम के निवेश के लिए खरीद रहे हैं। यह ब्लाकचेन टेक्नोलाजी पर आधारित है। इसे हैक करना बेहद मुश्किल है। एक डिजिटल बही-खाता है, जिसमें सभी लेनदेन का पूरा रिकार्ड रहता है। एक बार किसी का लेनदेन इसमें दर्ज हो जाए तो उसे हटाना नामुमकिन होता है।
शुरुआत में मुनाफा भी दिया
पावर बैंक एप फरवरी में शुरू हुआ और 12 मई को बंद हो गया। इस दौरान इस एप के जरिये करोड़ों का कारोबार हुआ। उत्तराखंड पुलिस के अनुसार, यह एप इतनी कम अवधि में करीब 50 लाख लोग डाउनलोड कर चुके थे। जिन्होंने एप के जरिये निवेश किया। इस एप ने शुरुआत में निवेशकों को अच्छा खासा मुनाफा भी दिया। जिसके चलते इसमें निवेश की रकम बढ़ती गई, लेकिन आखिर में इस एप में निवेश की गई रकम की निकासी नहीं हो पा रही थी। इंटरनेट के माध्यम से कई निवेशकों ने यह सवाल उठाया था कि वे अपनी रकम नहीं निकाल पा रहे हैं। पुलिस का कहना है कि भारत के निवेशकों की रकम को विदेश में निकाला जा रहा था। भारत के बैंकों ने इस एप की रकम की निकासी पर रोक लगा दी थी। यही कारण है कि इससे कोई अपना पैसा वापस नहीं निकाल पाया।
गिरावट की मुद्रा
भारतीय रुपया एक बार फिर डालर के मुकाबले गिर कर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया।
सांकेतिक फोटो।
रुपया लगातार नीचे की तरफ रुख किए हुए है, इसलिए इसे लेकर अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावनाएं धुंधली होने लगी हैं। जब भी किसी मुद्रा में लगातार गिरावट का रुख बना रहता है, तो वहां मंदी की संभावना प्रबल होने लगती है। एक डालर की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में तिरासी रुपए एक पैसा आंकी गई।
हालांकि सरकार को उम्मीद है कि यह दौर जल्दी ही खत्म हो जाएगा और भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में पहुंच जाएगी। शायद इसी विश्वास के चलते वित्त मंत्री ने भी कह दिया कि रुपए की कीमत नहीं गिर रही, डालर मजबूत हो रहा है। रुपए की कमजोरी की बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को बताया जा रहा है। मगर केवल इन्हीं दो स्थितियों को रुपए के कमजोर होने का कारण नहीं माना जा सकता। किसी भी मुद्रा में गिरावट तब आनी शुरू होती है जब घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सिकुड़न आने लगती है यानी खरीदारी कम होने लगती है। लोगों की क्रयशक्ति घटने लगती है और लोग निवेश को लेकर हाथ रोक देते हैं।
पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है। विकसित देशों में भी खुदरा और थोक महंगाई चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। इसका असर यह हुआ है कि उत्पादन घट रहा है। भारत में भी औद्योगिक उत्पादन का खरीदारी की मुद्रा रुख नीचे की तरफ बना हुआ है। घरेलू बाजार में ही खपत ठहर गई है। विदेशी बाजारों में महंगाई बढ़ी होने की वजह से भारतीय वस्तुओं की पहुंच संतोषजनक नहीं हो पा रही।
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निर्यात के मामले में पहले ही लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाबी नहीं मिल पा रही थी, कोरोनाकाल के बाद स्थिति और खराब हुई है। निर्यात घटने से विदेशी मुद्रा भंडार में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हो पाती। फिर जब रुपए की कीमत गिरती है, तो बाहर से मंगाई जाने वाली वस्तुओं पर अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आती जाती है।
भारत डीजल और पेट्रोल के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर है, इसलिए उसे अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है। फिर घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें संतुलित नहीं हो पा रही हैं और उसका असर न सिर्फ माल ढुलाई और परिवहन पर पड़ता है, बल्कि औद्योगिक उत्पादन में भी लागत बढ़ जाती है। इस तरह एक ऐसा चक्र बनता है, जिसे सुधारने के लिए बुनियादी स्तर से काम करना जरूरी होता है।
रुपए की गिरती कीमत और बढ़ती महंगाई का सीधा असर रोजगार सृजन पर पड़ता है। उत्पादन घटता है, तो औद्योगिक इकाइयों की कमाई भी घट जाती है, जिसके चलते उन्हें अपने खर्च में कटौती करनी पड़ती है। स्वाभाविक ही वे छंटनी का फैसला करती हैं। रिजर्व बैंक रेपो दर में बढ़ोतरी कर महंगाई पर काबू पाने का प्रयास कर रहा है, मगर इसका भी औद्योगिक इकाइयों पर प्रतिकूल असर पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपने कर्ज पर अधिक ब्याज चुकाना पड़ता है। अगर ये स्थितियां लगातार बनी रहती हैं, तो देश मंदी की तरफ बढ़ना शुरू कर देता है। इसलिए सरकार को ऐसी योजनाओं पर विचार करने की जरूरत है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हों और लोगों के हाथ में कुछ पैसा आना शुरू हो। उन क्षेत्रों की तरफ ध्यान देना चाहिए, जिनमें छोटे स्तर के रोजगार की संभावनाएं अधिक हैं।