शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख संकेतक

ताजा आंकड़े बताते हैं कि जुलाई-सितंबर तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े ने कोविड से पहले के अपने स्तर को छू लिया, बल्कि 2019-20 की इसी तिमाही के मुक़ाबले 0.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की. पहली तिमाही की जीडीपी से तुलना करें तो यह सुधार दर्शाता है. अप्रैल-जून में कोविड की दूसरी लहर और सरकार द्वारा लागू किए गए प्रतिबंधों के कारण जीडीपी कोविड से पहले के अपने स्तर से 9.2 प्रतिशत नीची थी. दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में निर्माण, व्यापार, होटल, परिवहन और वित्त सेक्टरों को छोड़कर दूसरे सेक्टरों में सुधार हुआ और वह कोविड से पहले के स्तर से ऊपर चला गया.
5 स्थूल संपदा निवेशकों के लिए यह महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक
व्यापक आर्थिक कारणों से गहराई से अचल संपत्ति की कीमतें प्रभावित होती हैं। यह विशेष रूप से नए आवासीय विकास की कीमत का सच है क्योंकि वे अक्सर अर्थव्यवस्था में घरों का अंश हैं जब ब्याज दरें घट जाती हैं या जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो लोगों को घर खरीदने की अधिक संभावना होती है, और यह नव निर्मित घरों की मांग को काफी बढ़ाता है। विपरीत सच है जब ब्याज दर और बेरोजगारी वृद्धि हालांकि, आवासीय संपत्ति बाजार अर्थव्यवस्था के सबसे जटिल क्षेत्रों में से एक है और यह व्यापक आर्थिक संकेतकों को एक कठिन नौकरी की व्याख्या करता है। यह अक्सर समझना मुश्किल है कि संपत्ति की कीमतें क्यों गिर रही हैं, बढ़ती हैं या स्थिर हैं? आइए पांच मैक्रोइकॉनॉमिक संकेतकों पर नजर डालें निवेशक निर्णय लेने के दौरान रियल एस्टेट निवेशकों को देखना चाहिए: सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सकल घरेलू उत्पाद एक विशिष्ट समय अवधि में देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का संचयी मौद्रिक मूल्य है। जीडीपी विकास आंकड़े एक देश की शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख संकेतक अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के सबसे विश्वसनीय उपाय हैं। जब ये आंकड़े विकास दिखाते हैं, यह संकेत है कि कंपनियां अपने संचालन का विस्तार कर रही हैं, अधिक कर्मचारियों की भर्ती कर रही हैं और बेहतर उत्पादन करती हैं। जब विकास संख्या गिरती है, तो यह संभावना है कि कंपनियां अनुबंध कर रही हैं, कर्मचारियों को बिछाने और कम उत्पादन करने के लिए यह अचल संपत्ति बाजार में निवेश में गिरावट को भी ट्रिगर कर सकता है। हाउसिंग मार्केट और जीडीपी विकास आंकड़े एक दूसरे से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं उन्नत बाजार अर्थव्यवस्थाओं में, घर की कीमतों में वृद्धि अक्सर जीडीपी संख्या में वृद्धि के लिए एक अग्रदूत साबित होती है। जब रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश गिरता है, तो यह सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को कम कर सकता है, क्योंकि निर्माण उद्योग के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान महत्वपूर्ण है। ब्याज दरें भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ा या कम कर सकती है। यह भी एक कारण है कि आवासीय संपत्ति बाजार में भारी उतार-चढ़ाव के अधीन हैं। जब केंद्रीय बैंक रेपो रेट में कटौती करता है, तो बैंक होम लोन की ब्याज दर कम कर सकते हैं। यह सस्ता उधार ले जाएगा। हालांकि, जब ब्याज दरों में कमी आती है, तो घरों की मांग बढ़ सकती है, लंबी अवधि में कीमतें बढ़ सकती हैं। मान लें कि नव निर्मित इकाइयां केवल देश में घरों में से एक प्रतिशत हैं यहां तक कि अगर एक प्रतिशत की ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से आवासीय रियल एस्टेट की खपत 1 फीसदी कम हो जाती है, तो इससे नव निर्मित इकाइयों की बिक्री 10 फीसदी कम हो सकती है। बेरोजगारी दर बेरोजगारी की दर प्रमुख कारकों में से एक है जो आवासीय संपत्ति बाजारों को प्रभावित करती है। एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था में, बेरोजगारी की दर तीन से पांच प्रतिशत की सीमा में होने की संभावना है। जब बेरोजगारी की दर अधिक होती है, तो लोगों को घर खरीदने की संभावना कम होती है क्योंकि उन्हें ऋण भुगतानों पर डिफॉल्ट करना पड़ सकता है इसके अलावा, जब बेरोजगारी दर अधिक होती है, तो सरकार अधिक उधार ले सकती है, जिससे उच्च राजकोषीय घाटे की ओर बढ़ सकता है। मुद्रास्फीति की मुद्रास्फीति एक और प्रमुख व्यापक आर्थिक कारक है जो कि रियल एस्टेट निवेशकों को देखना चाहिए जब मुद्रास्फीति अधिक होती है, तो इसका मतलब है कि घरों सहित अच्छे, शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख संकेतक अच्छे दाम बढ़ रहे हैं। इससे कम निवेश हो सकता है क्योंकि व्यापारियों को एक अर्थव्यवस्था में लंबे समय तक लाभ का अनुमान लगाने में अधिक मुश्किल लगता है जिसमें कीमतों में व्यापक रूप से उतार-चढ़ाव होता है। नतीजतन, आवासीय अचल संपत्ति और किराये के शेयर में निवेश गिरने की संभावना है। बढ़ती मुद्रास्फीति की संख्या भी केंद्रीय बैंक को ब्याज दर बढ़ाने के लिए दबाव डालने पर दबाव डालती है। इसके अलावा, जब मुद्रास्फीति अधिक होती है, अचल संपत्ति निवेश से वास्तविक उपज कम हो जाएगा। मुद्रा विनिमय अनुपात रुपये-डॉलर विनिमय दर बहुत ज्यादा भारत में अचल संपत्ति में निवेश को प्रभावित करता है। जब रुपया-डॉलर विनिमय दर गिरती है, भारतीय रियल एस्टेट की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कम हो जाती है इसका मतलब यह है कि भारत में रियल एस्टेट विदेशी निवेशकों के लिए सस्ता हो जाता है इससे भारत में अचल संपत्ति में विदेशी निवेश बढ़ सकता है। रिवर्स सच है जब रुपया-डॉलर विनिमय दर बढ़ जाती है। सभी चीजों ने कहा, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इन व्यापक आर्थिक संकेतकों में उतार-चढ़ाव संकेत मिलता है और अचल संपत्ति बाजार या अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन के बारे में निश्चित कुछ भी नहीं कहता।
सर्विस सेक्टर और उपभोक्ता मांग ने सुधारी अर्थव्यवस्था की रफ्तार
कोरोना महामारी के असर से भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बाहर निकलती दिख रही है। त्योहारी सीजन के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी बनी हुई और सेवा क्षेत्र, कारोबारी गतिविधि और निर्यात जैसे अहम संकेतक में लगातार विस्तार हो रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
ब्लूमबर्ग ने अपनी एनिमल स्प्रिट गेज संकेतक के आधार पर कहा है कि सेवा क्षेत्र और कारोबारी गतिवधियों में चार माह लगातार वृद्धि हुई है और पांचवें माह में तेजी के रास्ते पर बढ़ रहे हैं। इसमें कहा गया है कि कंपनियों द्वारा विस्तार पर जोर देने से तस्वीर बदली है। कंपनियां टीकाकरण में तेजी और सरकार की ओर से हर संभव मदद पर भरोसा जताते हुए निवेश और विस्तार के लिए काफी तेजी से बढ़ रही हैं। जबकि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान विस्तार की योजनाओं को रोक लिया गया था और नया निवेश करने का जोखिम कोई नहीं ले रहा था।
Stock Market: बाजार के लिए गतिविधियों से भरा रहेगा ये सप्ताह, बजट समेत कई फैक्टर का दिखेगा असर
By: पीटीआई, एजेंसी | Updated at : 30 Jan 2022 05:21 PM (IST)
Edited By: Shivani
शेयर मार्केट ट्रेडिंग (फाइल फोटो)
Stock Market Today: घरेलू शेयर बाजारों के लिए यह सप्ताह काफी घटनाक्रमों भरा रहेगा. सप्ताह के दौरान कई महत्वपूर्ण गतिविधियां होने वाली हैं, जो बाजार को दिशा देंगी. मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि इस सप्ताह आम बजट 2022-23, वृहद आर्थिक आंकड़े, कंपनियों के तिमाही नतीजे और ग्लोबल संकेतों से बाजार को दिशा मिलेगी.
1 फरवरी को आएगा आम बजट
रेलिगेयर ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष शोध अजित मिश्रा ने कहा, ‘‘यह सप्ताह न केवल शेयर बाजार के लिए, बल्कि व्यापक रूप से अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है. एक फरवरी को आम बजट पेश किया जाएगा. हमें उम्मीद है कि सरकार वृद्धि के एजेंडा पर आगे बढ़ेगी, लेकिन साथ ही राजकोषीय मजबूती के लिए रूपरेखा भी लाएगी. यह सप्ताह वाहन कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण होगा. एक फरवरी को वाहन कंपनियां अपने मासिक बिक्री के आंकड़े पेश करेंगी.’’
उपभोक्ताओं का भरोसा
भारत में व्यवसाय के माहौल में तेजी से सुधार हुआ है लेकिन उपभोक्ताओं का भरोसा कमजोर बना हुआ है. निवेश में और व्यवसाय जगत के आत्मविश्वास में वृद्धि का रोजगार, और घरेलू तथा उपभोक्ता के आत्मविश्वास पर असर पड़ने में वक़्त लगेगा. फिलहाल खर्चों में वृद्धि क्रेडिट कार्ड के बूते बढ़े खर्चों के कारण दिख रही है.
उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास को तब मजबूती मिलती है जब उन्हें आय और रोजगार की संभावना में वृद्धि का एहसास होता है. औद्योगिक माहौल के सर्वे बताते हैं कि रोजगार को लेकर उम्मीदें और धारणाएं बेहतर हो रही हैं. निवेश और रोजगार देने के मामलों में वृद्धि के साथ आगामी तिमाहियों में उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास मजबूती मिल सकती है. अगर ओमिक्रोन और अनिश्चितताएं पैदा करेगा तो इसकी गति सुस्त हो सकती है.
रिजर्व बैंक का ‘कंज़्यूमर कान्फ़िडेन्स सर्वे’ बताता है कि माहौल अभी महामारी से पहले वाली स्थिति में नहीं पहुंचा है. वर्तमान स्थिति का आकलन और भविष्य के बारे में अपेक्षाएं धीरे-धीरे बढ़ी हैं. लेकिन उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास को मजबूती मिलने में समय लगेगा.
आर्थिक बेहतरी को ओमिक्रोन से खतरा
नये वाइरस ओमिक्रॉन के सामने आने से चालू वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि का आंकड़ा दहाई अंक के करीब पहुंचने की उम्मीद को ग्रहण लगा है. इस वजह से कई एजेंसियों ने आर्थिक वृद्धि के बारे भविष्यवाणियों में कटौती की है. ‘फिच’ रेटिंग्स ने भारत की जीडीपी में वृद्धि का अनुमान 8.7 प्रतिशत से घटाकर 8.4 प्रतिशत का कर दिया है. एशियन डेवलपमेंट बैंक ने पहले अनुमान लगाया था कि यह 10 फीसदी रहेगी लेकिन अब वह इसे 9.7 फीसदी बता रहा है. भावी एशिया के बारे में भी उसने अपने अनुमान घटा दिए हैं.
ओमिक्रोन के कारण पैदा हो रही अनिश्चितताओं ने शेयर बाजार के माहौल को भी भारी बना दिया है. संभावना यह भी है कि हमारी वैक्सीनें आगे की स्थिति में निष्प्रभावी साबित हो सकती हैं. यह घरेलू उपभोग की मांग में वृद्धि की गति को धीमा कर सकता है.
वाइरस के संक्रमण में वृद्धि, या इसकी संभावना भर ही लोगों की गतिविधियों पर रोकथाम लगवा सकती है. इसके बाद यात्रा, पर्यटन, सत्कार जैसे सेक्टरों में शुरू हुए सुधार को बाधित कर सकता है. अगर नया वाइरस ज्यादा संक्रामक साबित हुआ तो कई देश फिर लॉकडाउन लगा सकते हैं। इससे सप्लाई की कड़ी में अड़चनें पैदा होंगी और प्रबंधन के लिए चुनौतियाँ बढ़ेंगी, साथ ही निर्यात भी प्रभावित होंगे.
अर्थात्: साहस का संकट
- नई दिल्ली,
- 10 सितंबर 2015,
- (अपडेटेड 11 सितंबर 2015, 6:05 PM IST)
भारत की दहलीज पर ग्लोबल संकट की एक और दस्तक को समझने के दो तरीके हो सकते हैं: एक कि हम रेत में सिर घुसा कर यह कामना करें कि यह दुनियावी मुसीबत है और हम किसी तरह बच ही जाएंगे. दूसरा यह कि इस संकट में अवसरों की तलाश शुरू करें. मोदी सरकार ने दूसरा रास्ता चुना है लेकिन जरा ठहरिए, इससे पहले कि आप सरकार की सकारात्मकता पर रीझ जाएं, हमें इस शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए प्रमुख संकेतक सरकार को मिले अवसरों के इस्तेमाल का रिकॉर्ड और जोखिम लेने की कुव्वत परख लेनी चाहिए, क्योंकि यह संकट अपने पूर्वजों की तुलना में अलग है और गहरा असर छोडऩे वाला है.
सिर्फ शेयर बाजार ही तो थे जो भारत में उम्मीदों की अगुआई कर रहे थे. चीन में मुसीबत के बाद, उभरती अर्थव्यवस्थाओं से निवेशकों की वापसी के साथ भारत को लेकर फील गुड का यह शिखर भी दरक गया है, जो सस्ती विदेशी पूंजी पर खड़ा था. पिछले दो साल में भारतीय अर्थव्यवस्था में बुनियादी तौर पर बहुत कुछ नहीं बदला. चुनाव की तैयारियों के साथ उम्मीदों की सीढिय़ों पर चढ़कर शेयर बाजारों ने ऊंचाई के शिखर बना दिए. भारत के आर्थिक संकेतक नरम-गरम ही हैं, मंदी है, ब्याज दरें ऊंची हैं, जरूरी चीजों की महंगाई मौजूद है, मांग नदारद है, मुनाफा और आय नहीं बढ़ रही जबकि मौसम की बेरुखी बढ़ गई है. लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार बेहतर है, कच्चा तेल सस्ता है और राजनैतिक स्थिरता है. दुनिया में संकट की हवाएं पहले से थीं. अपने विशाल प्रॉपर्टी निवेश, मंदी व अजीबोगरीब बैंकिंग के साथ, चीन 2013 से ही इस संकट की तरफ खिसक रहा था.