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ईश्वर के दलाल

ईश्वर के दलाल

बांके बिहारी का मंदिर या फिर दलाल पंडितों का मंदिर

ईश्वर अपने भक्त से यही अपेक्षा रखता है कि भक्त के दिल में सच्ची श्रद्धा हो सच्चा भरोसा हो उसके प्रति | भगवान किसी के साथ भेदभाव नहीं रखता भक्त अमीर हो या गरीब हो उस से ईश्वर को कोई मतलब नहीं, जात-पात भी भगवान के आगे कुछ नहीं ईश्वर सबकी सुनते हैं | सच्ची श्रद्धा अगर आपके दिल में है लेकिन जेब में पैसा नहीं तो आप वृन्दावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में ईश्वर के दर्शन नहीं कर सकते | वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं की आस्था का श्रद्धालुओं की श्रद्धा का भक्तों की भक्ति का खुलेआम धंधा होता है | मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ही आपको पंडित मिलेंगे दलाल के रूप में आपको कहा जाएगा कि अगर आप बिहारी जी की मूर्ति के दर्शन करना चाहते हैं और माला पहन न चाहते हैं तो आपको 500 से 51000 रूपए तक देने होंगे नहीं तो आप मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकते आप वापस चले जाएँ | भक्त के दिल में भगवान के लिए अटूट विश्वास होता है अटूट प्रेम होता है लेकिन ज़रूरी नहीं की ईश्वर के हर भक्त के पास बेहिसाब दौलत हो बेहिसाब माया हो जिस से वह वृन्दवान के मंदिरों में जो दलाल पंडित बैठे हैं उनका पेट भर सके | भक्त के पास तो बेहिसाब श्रद्धा और आस्था होती है बस | सनातन धर्म हिन्दू धर्म सबसे पुराने धर्म हैं शर्म की बात है कि विश्व के सबसे पुराने धर्म में भक्तों की भक्ति का धंधा कर रहे हैं वृन्दावन के पंडित | ईश्वर के द्वार तक तो पहुंच गए लेकिन पैसा न होने कारण उनके दर्शन न हों दलाल वहां से जाने को कहें बहुत गंभीर बात है इसका संज्ञान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी को करना चाहिए | भागवत गीता के बोल खुद प्रभु श्री कृष्ण ने कहे हैं वहां भी ऐसा नहीं लिखा की उनके दर्शन के लिए भक्त की जेब में पैसा होना चाहिए | वृन्दावन के मंदिरों में सबसे ज़्यादा लोगों की जेब से पैसा निकलवाया जाता है लोग भी पैसा देते हैं सिर्फ ईश्वर के प्रति उनके विश्वास के कारण | हमारी सोच ऐसी है कि हम सोचते हैं कानून का ज्ञान वकील के पास है, चिक्तिसा का ज्ञान चिकित्सक के पास है, खेल का ज्ञान खिलाडी के पास है और भगवान का ज्ञान पंडितों और बाबाओं के पास है | यह सोच हमको बदलनी होगी इसी सोच के कारण कि पंडित के पास हमारी हर समस्या का हल है वो भगवान का ज्ञानी है वह लोग हम सबसे पैसा लूट ते हैं | जैसे एक खिलाडी अपने खेल के लिए दिन रात अभ्यास करता है वैसे ही पंडित और बाबा लोग संस्कृत में वेदों के 4-5 श्लोक और कुछ मंत्र याद कर लेते हैं लोगों को लूटने के लिए हम सोचते हैं कि यह पृथ्वी का भगवान है इनको सब आता है |

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वृन्दवान का बांके बिहारी मंदिर और मंदिर की पेड़े वाली गली ● ओम सेठी

वृन्दावन के मंदिरों के बहार और सभी मंदिरों के बहार करोड़ो बेसहारा गरीब लोग बैठे रहते हैं सिर्फ इसी आस में की ईश्वर के रूप में कोई आए उनके पास और कुछ खाने को देदे | अगर आप पैसा देकर दर्शन करते हैं तो आपसे विनती है न किया करें उन दर्शनों का क्या लाभ जो पैसा देकर किया जा रहा हो सोचिए उस गरीब का हाल जिसकी जेब में दर्शन के लिए आपकी तरह पैसे तो नहीं लेकिन आपसे कही अधिक सच्ची भक्ति और श्रद्धा है उसके पास आपसे कही अधिक साफ़ मन और भरोसा है ईश्वर के प्रति उसके पास बस वो पैसों के कारण दर्शन न कर सका तो अब क्या लगता है आपको ईश्वर उसकी भक्ति को नकार देंगे कि उसने उनकी मूर्ति के दर्शन क्यों नहीं करे | ईश्वर उसकी भक्ति के अधीन हो जाएंगे क्यों की वह गरीब मन ही मन मे प्रभु की छवि के दर्शन कर चुका होगा | जो कर्म आप पैसा देकर दर्शन करके करोगे उसकी जगह अगर वही पैसा आप मंदिर के बाहर बैठे किसी ज़रूरतमंद की मदद करने में दोगे तो दोगुना फल आपके कर्मों का आपको देगा ईश्वर क्यों की आप बस उस बेसहारा की मदद ही नहीं करोगे आप उस गरीब के चेहरे पर मुस्कान लाओगे आप उस बेसहारा का पेट भरोगे आप उस बेसहारा के काम आओगे मंदिर में पंडित दलाल को तो बहुत लोग मिलते हैं वो दलाल आपको नहीं याद रखेगा लेकिन जिसकी आपने मदद की वह ज़रूर आपको याद रखेगा उसके दिल से जो दुआ आपके लिए निकलेगी वह सीधा प्रभु के दरबार तक जायेगी | बाबा और पंडित लोग इतना हराम का लोगों का लूट कर खाते हैं इस बात का अंदाज़ा उनके चेहरे के रौनक से मोटे पेट से ही लगा सकते हैं | पंडितों और बाबाओं को सिखों से सीखने की ज़रूरत है जो करोड़ो लोगों का दिन – रात पेट भरते हैं जो करोड़ों लोगों के गंदे जूते चप्पलों को हाथों से उठाकर साफ़ करते हैं सिख किसी से लेते नहीं देते हैं पंडित और बाबा किसी को देते नहीं लेते हैं | वृन्दावन बांके बिहारी मंदिर के पंडितों पर जल्द से जल्द कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए जिस ढंग से वह चल रहे हैं उस हिसाब से वह बांके बिहारी मंदिर का नाम बदलकर पैसे वालों का बांके बिहारी मंदिर रख देंगे मंदिर के दलाल ( पंडित ) | भगवान का दरबार हर किसी के लिए खुला होना चाहिए वहां यह नहीं होना चाहिए कि जो पैदल चलकर मंदिर आया है उसको दर्शन नहीं मिलेंगे जो गाड़ी से आया है उसको दर्शन मिलेंगे, जो नंगे पाँव आया है उसको दर्शन नहीं मिलेंगे जो ब्रांडेड जूतों में आया है उसको दर्शन मिलेंगे | ईश्वर सबका है उसके दर्शन करना सबका अधिकार है दलाल पंडितों की बदौलत बहुत से लोगों का भगवान से भरोसा उठ सकता है कि दर्शन तो बस अमीरों को मिलते हैं गरीबों को नहीं | पंडितों का अपना धर्म निभाना चाहिए मंत्रों से डराकर लोगों का पैसा नहीं खाना चाहिए | बाबा लोगों की हिम्मत हम लोग ही बढ़ा देते हैं इसलिए अगर आप देखेंगे तो बलात्कार से लेकर नाजायज़ संबंधों तक यह दूसरों के साथ करते हैं व बनाते हैं | दुःखद बात तो यह है कि सिर्फ वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में ही नहीं बल्कि ज़्यादातर मंदिरों में दर्शन के लिए पैसा लिया जाता है जो कि एक सच्चे भक्त के लिए उसकी भक्ति और आस्था पर बहुत बड़ा तमाचा है | सरकार को जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाना चाहिए इन मंदिरों के नियमों पर हर व्यक्ति प्रभु के दर्शन करना चाहता है दौलत वाला हो या फिर बेसहारा | महामारी कोरोना के कारण भारत में लॉकडाउन चलरा है लेकिन मंदिर में कमाई न रुके इसके लिए ऑनलाइन आरती करवा रहे हैं बहुत से धार्मिक स्थान ऐसे समय पर भी जब इंसान अदृश्य दुश्मन से लड़ रहा है पंडितों ने लॉकडाउन में भी कमाई का जरिया ढूंढ निकाला है | गीता में प्रभु ने कहा है कि आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते आग नहीं जला सकती जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती और बाबाओं और दलाल पंडितों से मैं कहता हूँ तुम्हारे पास अधिकार नहीं है कि तुम श्रद्धालुओं की आस्था से खेलो, तुम गरीबी का मज़ाक उड़ाओ, तुम मंत्रों के नाम पर दूसरों को पागल बनाओ, तुम राधे – राधे बोल कर दूसरों की सीता के साथ संबंध बनाओ दूसरों को ज्ञान देते हो एक ज्ञान ये भी लेलो दर्शन के लिए पैसा लेना बंद नहीं करोगे तो अपनों को खोते चलोगे ईश्वर के नाम पर कमाया धन अपनों को कंधा देने के काम आता है |

भरतपुर : अवैध भूण लिंग परीक्षण करते दलाल सहित तीन अरेस्ट

जयपुर/भरतपुर। राज्य पीसीपीएनडीटी प्रकोष्ठ ने आज भरतपुर के भुसावर में स्थित शकुन्तला हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में डिकाय कार्यवाही कर भ्रूण लिंग परीक्षण में लिप्त दलाल सहित तीन लोगों को गिरफ्तार कर काम में ली गयी सोनोग्राफी मशीन को जब्त कर लिया।

अध्यक्ष राज्य समुचित प्राधिकारी, पीसीपीएनडीटी सुधीर शर्मा के निर्देशन में राज्य स्तरीय टीम के द्वारा यह कार्यवाही की गई है। कार्यवाही में दौसा पीसीपीएनडीटी समन्वयक भी शामिल थे।

शर्मा ने बताया कि मुखबिर के माध्यम से सूचना मिल रही थी कि दौसा, भरतपुर क्षेत्र में कुलदीप सिंह नामक एक दलाल भू्रण लिंग परीक्षण के कार्य में लिप्त है। टीम ने मुखबिर की सूचना की पुष्टि के बाद डिकाय कार्ययोजना तैयार की।

कार्ययोजना के अनुसार टीम ने दलाल कुलदीप से संपर्क किया। इस पर कुलदीप ने 55 हजार रूपये में भ्रूण लिंग परीक्षण करने पर सहमति जता और डिकाय गर्भवती महिला को हिंडौन सिटी में बुलाया।

उन्होंने बताया कि हिंडौन सिटी में कुलदीप ने एक अन्य दलाल अजीत को 22 हजार रुपए की राशि देकर डिकाय गर्भवती महिला को साथ में भिजवा दिया। वहां से अजीत पहाडी रास्तों से भरतपुर के भुसावर में शकुन्तला हास्पिटल लाया और वहां बिना फार्म एफ भरे गर्भवती महिला की ईश्वर सिंह ने सोनोग्राफी की। साथ ही दवाईयां भी लिखीं।

ईश्वर सिंह एक फीजियोथैरेपिस्ट है उसके पास सोनोग्राफी कार्य की अनुमति एवं योग्यता नहीं थी। इस पर डिकाय टीम ने कार्यवाही करते हुए दलाल कुलदीप गुर्जर, अजीत सिंह एवं ईश्वर सिंह को गिरफ्तार किया।

भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह बोले- डॉक्टर शैतान हैं और पत्रकार दलाल

भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह बोले- डॉक्टर शैतान हैं और पत्रकार दलाल

अपने विवादित बयानों के लिए प्रसिद्ध भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बलिया से विधायक सुरेंद्र सिंह ने अब डॉक्टरों को 'शैतान' और पत्रकारों को 'दलाल' कहा है। सोमवार को डॉक्टर दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए विधायक ने कहा कि सरकारी डॉक्टर शैतान की तरह होते हैं, जो गरीबों की सेवा नहीं करते।

उन्होंने कहा, "सरकारी अस्पतालों में ईश्वर के दलाल काम करने वाले डॉक्टर मरीजों से मोलभाव करते हैं और वे शैतान बन गए हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वे उन्हें सद्बुद्धि दें।" सुरेंद्र सिंह ने इसके बाद अपना गुस्सा पत्रकारों पर उतारा। ईश्वर के दलाल उन्होंने कहा कि ज्यादातर पत्रकार स्थानीय स्तर पर दलाल के तौर पर काम करते हैं।

उन्होंने कहा, "ये पत्रकार अच्छे लेख नहीं प्रकाशित करते और केवल भगवान ही जानता है कि वे समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं।" सिंह इससे पहले भी कई विवादित बयान दे चुके हैं। एक बार उन्होंने कहा था कि वेश्याएं सरकारी अधिकारियों से बेहतर होती हैं। एक और मौके पर उन्होंने कहा था कि भगवान राम भी दुष्कर्म की घटनाएं नहीं रोक सकते। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी तुलना लंकिनी से की थी।

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-36

कर्म के विषय में वैदिक सिद्घान्त यह है कि हर व्यक्ति को या प्राणधारी को उसका कर्मफल उसे जाति, आयु और भोग के रूप में प्राप्त होता है। इसे ऐसे कहा जा सकता है व्यक्ति को जाति, आयु और भोग उसके पूर्व कर्मों के आधार पर ही मिलते हैं। कर्म के विषय में वैदिक संस्कृति का यह पहला सिद्घान्त है। दूसरा है कि प्रत्येक जीव कर्म करने में स्वतंत्र है। वह जैसा चाहे कर्म कर सकता है, पर फल पाने में वह परतंत्र है। अर्थात फल को वह जैसा चाहे वैसा नहीं पा सकता। यदि जीव फल पाने में भी स्वतंत्र हो जाएगा तो फिर ईश्वरीय व्यवस्था भंग हो जाएगी तब न तो कोई ईश्वर होगा और न ईश्वरीय व्यवस्था होगी। तब सर्वत्र अराजकता होगी। अराजकता होने से सृष्टि क्रम आगे चल ही नहीं सकता। जिन घरों में वृद्घजनों की बात को टालने और काटने या न मानने की प्रवृत्ति लोगों में आ जाती है-उन घरों का विनाश हो जाता है।

तीसरा सिद्घांत है कि परमात्मा अपने आप में सर्वशक्तिमान सत्ता है और वह जीवों को उनका कर्मफल प्रदान करने में किसी की सहायता नहीं लेता। यदि ईश्वर को जीवों के कर्मफल प्रदान करने में किसी के सहाय की आवश्यकता पड़ेगी तो उसके न्याय में वैसे ही दलाल और बिचौलिये घुस जाएंगे जैसे कि सांसारिक न्यायाधीशों से न्याय खरीदवाने में दलाल या बिचौलिये घुस जाते हैं। संसार के न्यायाधीश दलालों और बिचौलियों से बिक सकते हैं पर ईश्वर किसी दलाल या बिचौलिए से काम नही लेता।

अत: ईश्वर से न्याय दिलाने के लिए या लोगों को उसकी कृपा का पात्र ईश्वर के दलाल बनाने के लिए संसार में जितने ढोंगी बाबा, पंडे-पुजारी, मुल्ले, मौलवी अपनी-अपनी दुकानें खोले बैठे हैं-वे सब झूठी हैं। ये सारी दुकानें दुनिया के बाजार की चीजें हैं, परमेश्वर के बाजार में इनका कोई मोल ईश्वर के दलाल नहीं है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि उस परमपिता परमेश्वर के दरबार में ऐसे किसी दुकानदार या तथाकथित धर्माधीश या मठाधीश की आवश्यकता उस परम न्यायकारी को न्याय करने के लिए नहीं पड़ती।

चौथा सिद्घांत है कि जीवों को कर्मफल प्रदान करने में ईश्वर उनके कर्मों को ही आधार बनाता है। वह कोई राग-द्वेष नही पालता। जीवों के कर्मों के अनुसार ही कर्मफल देता है, उसमें रंचमात्र भी न्यूनता या अधिकता नहीं होती। जीव द्वारा किये गये सभी शुभ या अशुभ कर्मों का फल उसे स्वयं को ही भोगना पड़ता है, उसके स्थान पर किसी अन्य को वह फल भोगना पड़ जाए-यह संभव नहीं है। ना ही किसी एक अपराधी के स्थान पर किसी दूसरे को बलात् फंसवाकर जेल में डालने की चेष्टा उसके दरबार में किसी की चल सकती है। ऐसे ओच्छे कार्यों को हम इस संसार के न्यायालयों में अक्सर होते देखते हैं कि वास्तविक दोषी को दंडित न करके उसके स्थान पर किसी अन्य को दंडित कर दिया जाता है। यह सारा खेल इस संसार के न्यायालयों का हो सकता है-पर उस विधाता के दरबार में ऐसे खेल नहीं खेले जाते। वहां तो जिसने जैसा कर्म किया है उसे वैसा ही फल देना ईश्वरीय व्यवस्था का एक नियम है। इस नियम का कोई भंग नहीं हो सकता। वेद का कर्म के विषय में चिन्तन है-

महर्षि दयानंद जी महाराज इस मंत्र की व्याख्या करते हुए कहते हैं-”हे मनुष्य! इस संसार में धर्मयुक्त वेदोक्त निष्काम कर्मों को करता हुआ ही सौ वर्ष जीवन की इच्छा कर।”

बस, वेद के इसी सिद्घांत को दृष्टिगत रखते हुए श्रीकृष्ण जी गीता का उपदेश कर रहे हैं। उन्होंने वेद के सनातन सत्य को आगे बढ़ाया है और उस सत्य को गीता के रूप में लोगों ने अपने लिए अमृतमयी दुग्ध समझकर सुरक्षित रखा है। इसलिए गीता एक मार्गदर्शक ग्रंथ बन गया। एक अमृतमयी भोजन बन गया, जिसे थोड़ा सा चखो और आनन्द के अनन्त कोषों के स्वामी बन जाओ। यद्यपि इससे वेद की महिमा ईश्वर के दलाल कम नहीं हो जाती है। समुद्र से कोई दो चार बूंद ले आए और फिर उन बूंदों से स्वकल्याण कर ले तो इसका अभिप्राय यह नहीं कि वे बूंद की सागर थीं। बूंद बूंद है और सागर सागर है। यह अंतर समझकर ही चलना चाहिए।

गीता की बूंदों से भटकती मानवता की छाती की जलन ठीक हो सकती है-इसमें दो मत नहीं। पर ध्यान रखना चाहिए कि गीता में जो कुछ भी तर्कसंगत, न्यायसंगत, बुद्घिसंगत और विज्ञान सम्मत है वह उसे वेद की ही देन है। वेद के कर्म सम्बन्धी सिद्घांत को गीताकार ने जितनी उत्तमता से हमारे सामने स्पष्ट किया है और संसार को निष्काम कर्म का जिस प्रकार उपदेश किया है -उससे सारी मानवता लाभान्वित हो सकती है।

अब गीता के छठे अध्याय पर आते हैं, गीता के कुल 18 अध्यायों में से पहले छह अध्यायों को गीताकार ने ‘कर्मयोग’ के लिए समर्पित किया है।

संसार में कुछ लोग कर्ममार्गी होते हैं उनके लिए कर्म ही पूजा होती है तो कुछ लोग भक्ति मार्गी होते हैं उनके लिए जीवन का कल्याण भक्ति मार्ग से ही हो पाना संभव है। जबकि कुछ लोग ज्ञानमार्गी होते हैं। उनके लिए जीवन का कल्याण ज्ञानमार्ग से ही हो पाना संभव है। गीता इन तीनों ही मार्गों को बताकर व समझाकर चलने वाला गं्रथ है।

छठे अध्याय का शुभारम्भ करते हुए श्रीकृष्णजी कहते हैं कि पार्थ! जो व्यक्ति अपने कत्र्तव्य कर्म को करते हुए कर्मफल पर आश्रित नहीं रहता अर्थात कर्म के फल की आसक्ति को त्यागकर कत्र्तव्यभाव से ही कर्म करता है-वह एक साथ संन्यासी भी है और योगी भी है। श्रीकृष्ण जी कह रहे हैं कि योगी होने के लिए संन्यस्त होने की या कपड़ा रंगने की आवश्यकता नहीं है, जिसका मन रंग गया वह योगी हो गया। बहुत ही छोटी सी बात में श्रीकृष्णजी बड़ी बात कह दी है कि जिसका मन रंग गया वह योगी हो गया। मन के रंगते ही जीवन पर रंगत आने लगती है।

यह समझना कि जिसने अग्निहोत्रादि कर्मों को छोड़ दिया या जिसने सारे ही कर्म छोड़ दिये वह संन्यासी हो गया-गलत है। संसार में लोगों ने स्वयं को संन्यासी दिखाने के लिए बड़े-बड़े ढोंग और बड़े-बड़े पाखण्ड रचे हैं। गीता के नाम पर ही निठल्लावाद और पाखण्डवाद बढ़ाने वालों की भी कमी नहीं रही है। बड़े-बड़े महल और राजभवनों को मात देने वाले ऐश्वर्य सम्पन्न दरबार इन लोगों ने खड़े किये बाग-बगीचे खड़े किये। इतना ऐश्वर्य इन तथाकथित बाबाओं, फकीरों, मुल्ला-मौलवियों, पादरियों व गुरूओं आदि ने खड़ा कर लिया कि उसे देखकर अच्छे-अच्छे बिजनैसमैन या उद्योगपति या धन्नासेठ भी स्वयं को लज्जित अनुभव करने लगे। लोगों का ध्यान वास्तविक तपस्वियों और मनस्वियों की ओर से हठ गया और उन्होंने इन ढोंगी लोगों को ही इनके कहे अनुसार भगवान मानना तक आरंभ कर दिया। क्रमश:

हिन्दू धर्म और अवतार-वाद

हिन्दू धर्म और अवतार-वाद हिन्दू् धर्म में हर कोई अपने आप में ईश्वरीय छवि का आभास कर सकता है तथा ईश्वर से बराबरी भी कर सकता है। इतने पर भी संतोष ना हो तो अपने आप को ही ईश्वर घोषित कर के अपने भक्तों का जमावड़ा भी इकठ्ठा कर सकता है। हिन्दू् धर्म में ईश्वर से सम्पर्क करने के लिये किसी दलाल, प्रतिनिधि या ईश्वर के किसी बेटे-बेटी की मार्फत से नहीं जाना पड़ता। ईश्वरीय-अपमान (ब्लासफेमी) का तो प्रश्न ही नहीं उठता क्यों कि हिन्दू धर्म में पूर्ण स्वतन्त्रता है। हिन्दू् धर्म में हर कोई अपने विचारों से अवतार-वाद की व्याख्या कर सकता है। कोई किसी को अवतार माने या ना माने इस से किसी को भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। सभी हिन्दू धर्म के मत की छत्र छाया तले समा जाते हैं। हिन्दू धर्माचार्यों ने अवतार वाद की कई व्याख्यायें प्रस्तुत की हैं। उन में समानतायें, विषमतायें तथा विरोधाभास भी है। सृष्टि की जन्म प्रक्रिया – एक मत के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतार सृष्टि की जन्म प्रक्रिया को दर्शाते हैं। इस मतानुसार जल से सभी जीवों की उत्पति हुई अतः भगवान विष्णु सर्व प्रथम जल के अन्दर मत्स्य रूप में प्रगट हुये। फिर कुर्मा बने। इस के पश्चात वराह, जो कि जल तथा पृथ्वी दोनो का जीव है। नरसिंह, आधा पशु – आधा मानव, पशु योनि से मानव योनि में परिवर्तन का जीव है। वामन अवतार बौना शरीर है तो परशुराम एक बलिष्ठ ब्रह्मचारी का स्वरूप है जो राम अवतार से गृहस्थ जीवन में स्थानांतरित हो जाता है। कृष्ण अवतार एक वानप्रस्थ योगी, और बुद्ध परियावरण का रक्षक हैं। परियावरण के मानवी हनन की दशा सृष्टि को विनाश की ओर धकेल देगी। अतः विनाश निवारण के लिये कलकी अवतार की भविष्यवाणी पौराणिक साहित्य में पहले से ही करी गयी है। मानव जीवन के विभन्न पड़ाव – एक अन्य मतानुसार दस अवतार मानव जीवन के विभन्न पड़ावों को दर्शाते हैं। मत्स्य अवतार शुक्राणु है, कुर्मा भ्रूण, वराह गर्भ स्थति में बच्चे का वातावरण, तथा नर-सिंह नवजात शिशु है। आरम्भ में मानव भी पशु जैसा ही होता है। वामन बचपन की अवस्था है, परशुराम ब्रह्मचारी, राम युवा गृहस्थी, कृष्ण वानप्रस्थ योगी तथा बुद्ध वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलकी मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म की अवस्था है। राजशक्ति के दैविक सिद्धान्त – कुछ विचारकों के मतानुसार राजशक्ति के दैविक सिद्धान्त को बल देने के लिये कुछ राजाओं ने अपने कृत्यों के आश्रचर्य चकित करने वाले वृतान्त लिखवाये और कुछ ने अपनी वंशावली को दैविक अवतारी चरित्रों के साथ जोड़ लिया ताकि वह प्रजा उन के दैविक अधिकारों को मानती रहे। अवतारों की कथाओं से एक और तथ्य भी उजागर होता है कि खलनायक भी भक्ति तथा साधना के मार्ग से दैविक शक्तियां प्राप्त कर सकते थे। किन्तु जब भी वह दैविक शक्ति का दुर्पयोग करते थे तो भगवान उन का दुर्पयोग रोकने के लिये अवतार ले कर शक्ति तथा खलनायक का विनाश भी करते थे। भूगोलिक घटनायें – एक प्राचीन यव (जावा) कथानुसार एक समय केवल आत्मायें ही यव दूइप पर निवास करती थीं। जावा निवासी विशवास करते हैं कि उन की सृष्टि स्थानांतरण से आरम्भ हुयी थी। वराह अवतार कथा में दैत्य हिरण्याक्ष धरती को चुरा कर समुद्र में छुप गया था तथा वराह भगवान धरती को अपने दाँतों के ऊपर समतुलित कर के सागर से बाहर निकाल कर लाये थे। कथा और यथार्थ में कितनी समानता और विषमता होती है इस का अंदाज़ा इस बात मे लगा सकते हैं कि जावा से ले कर आस्ट्रेलिया तक सागर के नीचे पठारी दूइप जल से उभरते और पुनः जलग्रस्त भी होते रहते हैं। आस्ट्रेलिया नाम आन्ध्रालय (आस्त्रालय) से परिवर्तित जान पडता है। यव दूइप पर ही संसार के सब से प्राचीन मानव अस्थि अवशेष मिले थे। पौराणिक कथाओं में भी कई बार दैत्यों ने देवों को स्वर्ग से निष्कासित किया था। इस प्रकार के कई रहस्य पौराणिक कथाओं में छिपे पड़े हैं। मानना, ना मानना – निजि निर्णय अवतारवाद का मानना या ना मानना प्रत्येक हिन्दू का निजि निर्णय है। कथाओं का सम्बन्ध किसी भूगौलिक, ऐतिहासिक घटना, अथवा किसी आदर्श के व्याखीकरण हेतु भी हो सकता है। हिन्दू धर्म किसी को भी किसी विशेष मत के प्रति बाध्य नहीं करता। जितने हिन्दू ईश्वर को साकार तथा अवतारवादी मानते हैं उतने ही हिन्दू ईश्वर को निराकार भी मानते हैं। कई हिन्दू अवतारवाद में आस्था नहीं रखते और अवतारी चरित्रों को महापुरुष ही मानते हैं। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि अवतारी कथाओं में मानवता का इतिहास छुपा है। कारण कुछ भी हो, निश्चित ही अवतारों की कथाओं में बहुत कुछ तथ्य छिपे हैं। अवश्य ही प्राचीन हिन्दू संस्कृति अति विकसित थी तथा पौराणिक कथायें इस का प्रमाण हैं। पौराणिक कथाओं का लेखान अतिश्योक्ति पूर्ण है अतः साहित्यक भाषा तथा यथार्थ का अन्तर विचारनीय अवश्य है। साधारण मानवी कृत्यों को महामानवी बनाना और ईश्वरीय शक्तियों को जनहित में मानवी रूप में प्रस्तुत करना हिन्दू धर्म की विशेषता रही है।

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