इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य

मेक इन इंडिया के तहत नौकरी व रोज़गार के अवसर कितने होंगे?
मेक इन इंडिया भारत सरकार का एक मुख्य राष्ट्रीय प्रोग्राम है। डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री और इंटरनल ट्रेड, मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्री द्वारा संचालित यह मेक इन इंडिया प्रोग्राम भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी लाएगा। भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर इस समय जीडीपी में 16 प्रतिशत की भागीदारी कर रहा है। साल 2025 तक उम्मीद है कि यह सेक्टर 25 प्रतिशत तक डिलीवर करेगा। आने वाले 5 सालों में भारत को मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में विश्व के सर्वाधिक प्रतियोगी देशों में गिने जाने की संभावना है।
क्या है उद्देश्य ?
मेक इन इंडिया का प्राथमिक उद्देश्य भारत में वैश्विक इन्वेस्टमेंट को बढ़ाकर मेन्यूफेक्चरिंग सेक्टर मज़बूत करना है। मौजूदा भारतीय टैलेंट बेस का इस्तेमाल करना, सेकेंडरी एवं टर्शियरी सेक्टर को मज़बूत करना और अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है।
"मेक इन इंडिया" और रोज़गार
मेक इन इंडिया प्रोग्राम ऑटोमोबाइल, बायोटेक्नोलॉजी , डिफेन्स , फ़ूड प्रोसेसिंग आदि जैसे 25 सेक्टरों पर फोकस इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य करता है। हालाँकि इस प्रोग्राम के लॉन्च के बाद से नौकरी व रोज़गार के अवसर कितने पैदा हो पाए यह पता कर पाना थोड़ा अस्पष्ट रहा है। साल 2022 तक मेक इन इंडिया प्रोग्राम से भारत सरकार 100 मिलियन नयी नौकरियों के अवसर तैयार कर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार के असीमित अवसर लाना चाहती है। सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम से मैन्युफैक्चरिंग पर दिए जा रहे ज़ोर के कारण आने वाले सालों में कई नयी नौकरियां निकलने की संभावना है।सरकार साल 2022 तक 100 मिलियन जॉब्स देने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
क्या है उम्मीदें ?
उम्मीद है कि अगले एक-आध साल में लगभग 8 लाख अस्थायी नौकरियां तैयार हो सकती हैं। जैसे जैसे मैन्युफैक्चरिंग, इंजीनियरिंग और सम्बंधित सेक्टर में इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा, वैसे वैसे मौजूदा नौकरियों में भी बढ़ोतरी की संभावनाएं हैं। मेक इन इंडिया की पहल से ई-कॉमर्स और अन्य इंटरनेट से जुड़े सेक्टर में भी नौकरियां बढ़ी हैं। मेक इन इंडिया प्रोग्राम से स्किल डेवलपमेंट ने भी काफी ज़ोर पकड़ा है। 100 स्मार्ट सिटी बनाने के लक्ष्य से भी जॉब्स बढ़ने के आसार हैं।
"मेक इन इंडिया" पर क्यों हैं चर्चा ?
दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों के लिए भारत सरकार का प्रगतिशील "मेक इन इंडिया " प्रोग्राम चर्चा का विषय बन गया है। इसके तहत देश को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की तैयारी की जा रही है। भारतीय मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में कुछ बुनियादी बदलाव करके मेक इन इंडिया प्रोग्राम इस सेक्टर को और मज़बूत करने का लक्ष्य रखता है। हालाँकि जैसे जैसे यह लक्ष्य तेज़ी पकड़ेगा, वैसे वैसे जॉब मार्किट में भी कई बदलाव आने की संभावना है।
भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेज़ी लाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए रोज़गार और उत्पादन दोनों में बढ़त आना ज़रूरी है। विशेषज्ञ अच्छी और बुरी दोनों संभावनाओं इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य से इंकार नहीं कर रहे हैं। हालाँकि उम्मीद की किरण 'मेक इन इंडिया' द्वारा जॉब्स क्रिएट किये जाने की तरफ ज़्यादा है।
मेक इन इंडिया कैंपेन से कैसे बढेंगी जॉब्स ?
इंडस्ट्री के लोगों में सरकार के इस कदम से काफी सकारात्मकता आई है। केंद्रीय सरकार मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत कई सेक्टरों में इन्वेस्ट कर रही है। जब इन्वेस्टमेंट बढ़ता है तो ग्रोथ भी बढ़ती है। ग्रोथ के कारण इन सेक्टर्स में जॉब की संख्या भी बढ़ेंगी। काफी लम्बे समय तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार के अवसरों के बढ़ते रहने के आसार लगाए जा रहे हैं।
बदलेगा "लेबर लॉ"
कैंपेन के तहत लेबर लॉ में होने वाले बदलावों के कारण अब मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कॉन्ट्रैक्ट लेबर रखने के लिए लगने वाले फ़िज़ूल के आबंध हट जाएंगे। इन रिफॉर्म्स के कारण अब यह सेक्टर और खुलेगा। लेबर लॉ रिफॉर्म्स के ज़रिये रोज़गार के अवसरों में भी तेज़ी आएगी। लेबर रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 10 जैसे कुछ लेबर कानून हैं जो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कॉन्ट्रैक्ट लेबर रखने पर बेवजह ही आबंध लगाते हैं। रिफॉर्म्स के बाद यह सब हट जाएगा। संभावनाएं है कि ऐसे क़दमों से यह सेक्टर पहले की तुलना में और भी तेज़ी से बढ़ेगा। जब लेबर काम पर रखने के लिए स्वतंत्रता होगी तो निश्चित रूप से अधिक जॉब्स के अवसर भी पैदा होंगे। घरेलू कंपनियां वैश्विक ब्रांड्स में तब्दील हो सकती हैं।
ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस इंडेक्स
सरकार ने “ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस इंडेक्स” पर भी ध्यान देना शुरू किया है। भारत फिलहाल 190 देशों में ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस के पैमाने पर 63वें स्थान पर काबिज़ है। मौजूदा कानून और पेचीदा प्रक्रियाओं के कारण भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ काफी धीमी रही है। इस मेक इन इंडिया कैंपेन के तहत जो नयी पॉलिसीस लागू की जा रही हैं , उनसे भूमि अधिग्रहण और निकासी सम्बन्धी प्रक्रियाएं पहले से अधिक आसान और तेज़ होंगी।
स्पेशल इकनोमिक ज़ोन्स
देश के अलग अलग हिस्सों में स्पेशल इकनोमिक ज़ोन्स और ऐसी इकाइयां बनाए जाने की तैयारी है जो बिज़नेस यूनिट्स की दिक्कतों को 72 घंटों के भीतर सॉल्व करेंगी। ऐसा करने से भारत दुनिया के लिए एक अनुकूल मैन्युफैक्चरिंग ठिकाना बन सकता है। भविष्य में इस अच्छी इमेज से भारत में इन्वेस्टमेंट के कई द्वार खुलेंगे। जब इन्वेस्टमेंट आती है तो मानव संसाधन की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। अतः यह इन्वेस्टमेंट अपने साथ में रोज़गार के कई अवसर भी लेकर आएगी।
अन्य सेक्टर्स पर प्रभाव
मेक इन इंडिया के तहत जो इन्वेस्टमेंट मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में होगा, उससे न सिर्फ उत्पादन बल्कि अन्य सेक्टर्स में भी तेज़ी आएगी। मूलभूत सुविधाओं और ऊर्जा के क्षेत्र में नयी कंपनियां स्थापित होने के बाद सर्विस सेक्टर में भी निश्चित ही नए रोज़गार बढ़ने की संभावना है।
आगे की राह
इस कैंपेन से यकीनन भारत की तरक्की को एक नयी और बेहतर दिशा मिली है। खासकर कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को इस दिशा की काफी आवश्यकता थी। अब सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि इन सब पॉलिसीस को कितना बेहतर ढंग से लागू किया जाता है। इन प्लान्स और स्कीमों का असर, आने वाले कुछ सालों में और भी साफ़ देखा जा सकेगा। विशेषज्ञों की मानें तो रोज़गार व नौकरियों के अवसरों में अच्छा उछाल आने की बहुत प्रबल संभावनाएं हैं , बशर्ते इन पॉलिसीस का, प्लान के हिसाब से ही क्रियान्वयन हो पाए।
LIC की माइक्रो इंश्योरेंस पॉलिसी इसके बारे में जानिए हर जरूरी बात
LIC Micro Insurance Plans: इसका मुख्य उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच बीमा कवरेज को बढ़ावा देना है.
- Rahul Chakraborty
- Updated On - September 20, 2021 / 04:11 PM IST
एलआईसी ने जिन 94 फर्मों मे अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है उनके शेयरों की कीमतों में भी 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है
LIC’s micro insurance policy: हम सभी जानते हैं कि आज के दौर में लाइफ इंश्योरेंस की जरूरतें क्या हैं. यह आपको लाइफ कवर की सुरक्षा के साथ एक वित्तीय कोष बनाने में मदद करता है. महामारी के इस दौर में, अगर आप कम प्रीमियम पर लाइफ इंश्योरेंस खरीदने की योजना बना रहे हैं तो माइक्रो इंश्योरेंस प्लान आपके लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं. ये IRDAI के तहत बनाई गई स्पेशल कैटेगरी है. इसका मुख्य उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच बीमा कवरेज को बढ़ावा देना है. इन पॉलिसियों का प्रीमियम तुलनात्मक रूप से कम होता है.
लोकप्रियता
मिलियन डॉलर राउंडटेबल क्लब से संबंधित एलआईसी एजेंट देबाशीष दत्ता ने बताया कि “”माइक्रो इंश्योरेंस प्लान काफी लोकप्रिय होते हैं. ज्यादा प्रीमियम के चलते समाज का कमजोर वर्ग परंपरागत इंश्योरेंस प्लान को नहीं खरीद पाता है.माइक्रो इंश्योरेंस प्लान मुख्य रूप से उन कम-आय वाले समूहों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, ताकि वह भी अपने जीवन को कवर कर सकें.”
एलआईसी माइक्रो प्लान
भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी), देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है. ये पब्लिक सेक्टर कंपनी आम लोगों के लिए जीवन बीमा पॉलिसियों का एक समूह प्रदान करता है. न्यू जीवन मंगल और माइक्रो बचत ये दोनों उसी तरह के हैं. ये दोनों माइक्रो इंश्योरेंस प्लान 1 फरवरी 2020 को लॉन्च हुआ था. आइए जानते हैं ऐसी पॉलिसियों के बारे में खास बातें.
1. न्यू जीवन मंगल
एलआईसी की न्यू जीवन मंगल प्लान एक नॉन-लिंक्ड प्लान है, नॉन-पार्टिसिपेटिंग, निजी, लाइफ इंश्योरेंस प्लान है, जो मैच्योरिटी पर प्रीमियम रिटर्न देता है. इस प्लान में एक्सीडेंट पर होने पर कवरेज मिलता है, जो एक्सीडेंट में मौत पर दोहरा रिस्क कवर हो जाता है.
योग्यता
कोई भी 18 साल से 55 साल तक का योग्य व्यक्ति इसको खरीद सकता है. इसकी अधिकतम मैच्योरिटी की उम्र 65 साल है.
बीमा राशि
इसमें न्यूनतम और अधिकतम बीमा राशि राशि 10 हजार रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक है.
पॉलिसी टर्म और प्रीमियम
रेगुलर प्रीमियम पॉलिसी में टर्म 10 से 15 साल होता है. प्रीमियम सालाना, अर्धवार्षिक, तिमाही और मासिक स्तर पर दिया जाता है. वैकल्पिक रूप से, एक सिंगल प्रीमियम पॉलिसी भी 5 से 10 साल की अवधि के लिए खरीदी जा सकती है.
दुर्घटना के अलावा किसी अन्य कारण से इंश्योर्ड व्यक्ति की मृत्यु होने की स्थिति में पॉलिसीधारक के नॉमिनी व्यक्ति को इंश्योरेंस राशि के बराबर मृत्यु लाभ का भुगतान किया जाएगा. यह राशि पॉलिसी के प्रकार और भुगतान किए गए प्रीमियम पर निर्भर करती है.
अचानक होने वाली मौत के केस में नॉमिनी व्यक्ति को बीमा राशि के बराबर अतिरिक्त राशि का भुगतान किया जाएगा.
2. माइक्रो बचत पॉलिसी
माइक्रो बचत भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा दी जाने वाली एक नियमित प्रीमियम, गैर-लिंक्ड, भाग लेने वाली, व्यक्तिगत, जीवन बीमा योजना है. ये सेविंग्स के साथ प्रोटेक्शन देती है. इस पॉलिसी में लोन सुविधा के माध्यम से लिक्विडिटी की जरूरत को भी पूरा कर सकती है.
योग्यता
कोई भी 18 साल से 55 साल तक का व्यक्ति इसे खरीद सकता है. इसकी अधिकतम मैच्योरिटी की उम्र 70 साल है.
बीमा की राशि
न्यूनतम और अधिकतम बीमा की राशि 50 हजार रुपए से 2 लाख रुपए तक हो सकती है.
पॉलिसी और प्रीमियम टर्म
इस पॉलिसी का टर्म 10 साल से 15 साल तक होता है. इसके प्रीमियम का सालाना, अर्धवार्षिक, तिमाही और मासिक रूप से भी भुगतान किया जा सकता है.
प्रीमियम
अगर 20 साल की उम्र में एक व्यक्ति ने 15 साल की अवधि के लिए पॉलिसी खरीदी और 2 लाख रुपये मूल बीमा राशि के विकल्प को चुना, तो उसे सालाना प्रीमियम के रूप में 9,904 रुपए का भुगतान करना होगा, जो कि लगभग 27 रुपये प्रति दिन है.
समय के साथ पॉलिसी जब भुगतान के लिए तैयार होगी तो आपको 2.30 लाख रुपए मिलेंगे. पॉलिसी शुरू होने के पांच साल के भीतर बीमित व्यक्ति की मृत्यु होने के केस में , इंश्योरेंस की राशि का भुगतान किया जाएगा. अगर मौत पांच साल के बाद होती है, तो सर्वाइवर को बीमा राशि और लॉयल्टी बोनस दोनों का भुगतान किया जाएगा.
एस आई पी कैलकुलेटर
म्यूचुअल फंड में एसआईपी पैसा बचाने और निवेश करने का एक तरीका है। यह आसान एसआईपी कैलकुलेटर आपको अपने एसआईपी निवेश की योजना बनाने में मदद करता है। SIP कैलकुलेटर ऐप से आप विभिन्न म्यूचुअल फंड श्रेणियों में अनुमानित लाभ देख सकते हैं। आप एसआईपी रिटर्न और साथ ही एकमुश्त (गांठ) रिटर्न देख सकते हैं।
SIP क्या है
SIP का अर्थ व्यवस्थित निवेश योजना है। एसआईपी के साथ आप मासिक आधार पर म्यूचुअल फंड में एक छोटी राशि का निवेश कर सकते हैं। यह विशेष रूप से वेतनभोगी लोगों के लिए निवेश का बेहतर तरीका है।
SIP के क्या लाभ हैं
एसआईपी म्यूचुअल फंड में निवेश करने का एक तरीका है क्योंकि आप कम राशि में निवेश शुरू कर सकते हैं। यह कम बाजार जोखिम को पूरा करता है क्योंकि यह रुपये की औसत लागत को सक्षम करता है। एसआईपी में गणना करने की शक्ति है और उच्च रिटर्न देने में सक्षम है
क्या मैं SIP ऑनलाइन शुरू कर सकता हूं?
आजकल, एसआईपी निवेश को पूरी तरह से ऑनलाइन शुरू करना संभव है। प्रक्रिया 100% पेपरलेस है। आपके पास लचीला एसआईपी भी है जहां आप अपने एसआईपी को कभी भी रोक सकते हैं।
भारत में अलग-अलग म्यूचुअल फंड कौन-कौन से हैं जो एसआईपी निवेश की पेशकश करते हैं?
लगभग सभी एसेट मैनेजमेंट कंपनियां SIP और एक समय के निवेश दोनों में निवेश इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य की पेशकश करती हैं। एसबीआई, एचडीएफसी
म्यूचुअल फंड में निवेश के विभिन्न तरीके क्या हैं
आप म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं-
1) निवेश करने के लिए आपके पास बड़ी राशि होने पर Lumsum Investment (वन-टाइम इन्वेस्टमेंट) पसंदीदा है
2) एसआईपी निवेश (प्रत्येक माह में छोटी राशि) - यह ज्यादातर लोगों के लिए आदर्श है, विशेष रूप से वेतनभोगी लोगों के लिए ——> म्यूचुअल फंड में निवेश के विभिन्न तरीके क्या हैं
आप म्युचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं लम्पसम इनवेस्टमेंट (वन-टाइम इन्वेस्टमेंट) यह मोड रेफरेबल है, जब आपके पास निवेश करने के लिए बड़ी राशि है। एक अन्य विकल्प एसआईपी इन्वेस्टमेंट (छोटी राशि प्रत्येक माह) यह ज्यादातर लोगों, विशेष रूप से वेतनभोगी लोगों के लिए आदर्श है।
क्या म्यूचुअल फंड और एसआईपी टैक्स सेविंग के लिए अच्छे हैं?
म्यूचुअल फंड और एसआईपी शायद टैक्स बचाने के तरीके हैं। आप सेक्शन 80 सी के तहत टैक्स बचा सकते हैं। म्यूचुअल फंड्स टैक्स सेविंग प्लान्स में केवल 3 साल का लॉक-इन पीरियड होता है जो एफडी में 5 साल से कम और पीपीएफ में 15 साल होता है। टैक्स सेविंग के अलावा, इन म्यूचुअल फंडों में एसआईपी आपको लंबी अवधि में धन बनाने में मदद करता है।
म्यूचुअल फंड में इक्विटी क्या है और डेट क्या है
शेयर बाजार में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड इक्विटी फंड और सरकार में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड हैं। बांड प्रतिभूतियों को डेट फंड कहा जाता है
म्यूचुअल फंड उद्योग में नियामक निकाय कौन से हैं?
म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री को एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स ऑफ इंडिया (AMFI) द्वारा पुनर्जीवित किया जाता है, जो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के दायरे में आता है।
भारत में अलग-अलग रजिस्ट्रार हैं
भारत में दो प्रमुख म्यूचुअल फंड रजिस्ट्रार CAMS और KARVY हैं
NFO क्या है?
एनएफओ का मतलब न्यू फंड ऑफर है। जब भी कोई नया म्यूचुअल फंड बाजार में जारी किया जाता है, तो इसकी शुरुआत 10 रुपये प्रति यूनिट के अंकित मूल्य से होती है। इसका मतलब है कि आप 10 रुपये / यूनिट के हिसाब से फंड खरीद सकते हैं। एनएफओ निवेश के लिए अच्छा है क्योंकि आपको प्रत्येक इकाई बहुत सस्ती कीमत पर मिलती है। लेकिन NFOs को ट्रैक करने का इतिहास नहीं है। इसलिए, किसी को केवल विशेषज्ञों द्वारा पुन: निर्धारित एनएफओ के लिए जाना चाहिए।
'म्यूचुअल फंड साही है' क्या है?
म्यूचुअल फंड साही है AMFI द्वारा एक निवेशक जागरूकता पहल है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गैर-वित्त लोगों को भी म्यूचुअल फंड के लाभों के बारे में जागरूक करना है।
क्या म्यूचुअल फंड सुरक्षित हैं?
इक्विटी फंड शेयर बाजार में निवेश करते हैं और इसलिए उनके पास बाजार जोखिम होता है। आम तौर पर उच्च लाभ प्रदान करते हैं लेकिन जोखिम भरा होता है। दूसरी ओर डेट फंड शेयर बाजार में निवेश नहीं करते हैं। इसलिए, उनके जोखिम कम होते हैं। लेकिन वे आम तौर पर निवेश पर कम रिटर्न देते हैं।
मेक इन इंडिया के तहत नौकरी व रोज़गार के अवसर कितने होंगे?
मेक इन इंडिया भारत सरकार का एक मुख्य राष्ट्रीय प्रोग्राम है। डिपार्टमेंट ऑफ़ प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री और इंटरनल ट्रेड, मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉमर्स एन्ड इंडस्ट्री द्वारा संचालित यह मेक इन इंडिया प्रोग्राम भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी लाएगा। भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर इस समय जीडीपी में 16 प्रतिशत की भागीदारी कर रहा है। साल 2025 तक उम्मीद है कि यह सेक्टर 25 प्रतिशत तक डिलीवर करेगा। आने वाले 5 सालों में भारत को मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में विश्व के सर्वाधिक प्रतियोगी देशों में गिने जाने की संभावना है।
क्या है उद्देश्य ?
मेक इन इंडिया का प्राथमिक उद्देश्य भारत में वैश्विक इन्वेस्टमेंट को बढ़ाकर मेन्यूफेक्चरिंग सेक्टर मज़बूत करना है। मौजूदा भारतीय टैलेंट बेस का इस्तेमाल करना, सेकेंडरी एवं टर्शियरी सेक्टर को मज़बूत करना और अधिक रोज़गार के अवसर पैदा करना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है।
"मेक इन इंडिया" और रोज़गार
मेक इन इंडिया प्रोग्राम ऑटोमोबाइल, बायोटेक्नोलॉजी , डिफेन्स , फ़ूड प्रोसेसिंग आदि जैसे 25 सेक्टरों पर फोकस करता है। हालाँकि इस प्रोग्राम के लॉन्च के बाद से नौकरी व रोज़गार के अवसर कितने पैदा हो पाए यह पता कर पाना थोड़ा अस्पष्ट रहा है। साल 2022 तक मेक इन इंडिया प्रोग्राम से भारत सरकार 100 मिलियन नयी नौकरियों के अवसर तैयार कर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार के असीमित अवसर लाना चाहती है। सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम से मैन्युफैक्चरिंग पर दिए जा रहे ज़ोर के कारण आने वाले सालों में कई नयी नौकरियां निकलने की संभावना है।सरकार साल 2022 तक 100 मिलियन जॉब्स देने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
क्या है उम्मीदें ?
उम्मीद है कि अगले एक-आध इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य साल में लगभग 8 लाख अस्थायी नौकरियां तैयार हो सकती हैं। जैसे जैसे मैन्युफैक्चरिंग, इंजीनियरिंग और सम्बंधित सेक्टर में इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा, वैसे वैसे मौजूदा नौकरियों में भी बढ़ोतरी की संभावनाएं हैं। मेक इन इंडिया की पहल से ई-कॉमर्स और अन्य इंटरनेट से जुड़े सेक्टर में भी नौकरियां बढ़ी हैं। मेक इन इंडिया प्रोग्राम से स्किल डेवलपमेंट ने भी काफी ज़ोर पकड़ा है। 100 स्मार्ट सिटी बनाने के लक्ष्य से भी जॉब्स बढ़ने के आसार हैं।
"मेक इन इंडिया" पर क्यों हैं चर्चा ?
दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों के लिए भारत सरकार का प्रगतिशील "मेक इन इंडिया " प्रोग्राम चर्चा का विषय बन गया है। इसके तहत देश को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की तैयारी की जा रही है। भारतीय मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में कुछ बुनियादी बदलाव इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य करके मेक इन इंडिया प्रोग्राम इस सेक्टर को और मज़बूत करने का लक्ष्य रखता है। हालाँकि जैसे जैसे यह लक्ष्य तेज़ी पकड़ेगा, वैसे वैसे जॉब मार्किट में भी कई बदलाव आने की संभावना है।
भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेज़ी लाने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए रोज़गार और उत्पादन दोनों में बढ़त आना ज़रूरी है। विशेषज्ञ अच्छी और बुरी दोनों संभावनाओं से इंकार नहीं कर रहे हैं। हालाँकि उम्मीद की किरण 'मेक इन इंडिया' द्वारा जॉब्स क्रिएट किये जाने की तरफ ज़्यादा है।
मेक इन इंडिया कैंपेन से कैसे बढेंगी जॉब्स ?
इंडस्ट्री के लोगों में सरकार के इस कदम से काफी सकारात्मकता आई है। केंद्रीय सरकार मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत कई सेक्टरों में इन्वेस्ट कर रही है। जब इन्वेस्टमेंट बढ़ता है तो ग्रोथ भी बढ़ती है। ग्रोथ के कारण इन सेक्टर्स में जॉब की संख्या भी बढ़ेंगी। काफी लम्बे समय तक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार के अवसरों के बढ़ते रहने के आसार लगाए जा रहे हैं।
बदलेगा "लेबर लॉ"
कैंपेन के तहत लेबर लॉ में होने वाले बदलावों के कारण अब मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कॉन्ट्रैक्ट लेबर रखने के लिए लगने वाले फ़िज़ूल के आबंध हट जाएंगे। इन रिफॉर्म्स के कारण अब यह सेक्टर और खुलेगा। लेबर लॉ रिफॉर्म्स के ज़रिये रोज़गार के अवसरों में भी तेज़ी आएगी। लेबर रेगुलेशन एक्ट के सेक्शन 10 जैसे कुछ लेबर कानून हैं जो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कॉन्ट्रैक्ट लेबर रखने पर बेवजह ही आबंध लगाते हैं। रिफॉर्म्स के बाद यह सब हट जाएगा। संभावनाएं है कि ऐसे क़दमों से यह सेक्टर पहले की तुलना में और भी तेज़ी से बढ़ेगा। जब लेबर काम पर रखने के लिए स्वतंत्रता होगी तो निश्चित रूप से अधिक जॉब्स के अवसर भी पैदा होंगे। घरेलू कंपनियां वैश्विक ब्रांड्स में तब्दील हो सकती हैं।
ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस इंडेक्स
सरकार ने “ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस इंडेक्स” पर भी ध्यान देना शुरू किया है। भारत फिलहाल 190 देशों में ईज़ ऑफ़ डूईंग बिज़नेस के पैमाने पर 63वें स्थान पर काबिज़ है। मौजूदा कानून और पेचीदा प्रक्रियाओं के कारण भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ काफी धीमी रही है। इस मेक इन इंडिया कैंपेन के तहत जो नयी पॉलिसीस लागू की जा रही हैं , उनसे भूमि अधिग्रहण और निकासी सम्बन्धी प्रक्रियाएं पहले से अधिक आसान और तेज़ होंगी।
स्पेशल इकनोमिक ज़ोन्स
देश के अलग अलग हिस्सों में इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य स्पेशल इकनोमिक ज़ोन्स और ऐसी इकाइयां बनाए जाने की तैयारी है जो बिज़नेस यूनिट्स की दिक्कतों को 72 घंटों के भीतर सॉल्व करेंगी। ऐसा करने से भारत दुनिया के लिए एक अनुकूल मैन्युफैक्चरिंग ठिकाना बन सकता है। भविष्य में इस अच्छी इमेज से भारत में इन्वेस्टमेंट के कई द्वार खुलेंगे। जब इन्वेस्टमेंट आती है तो मानव संसाधन की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। अतः यह इन्वेस्टमेंट अपने साथ में रोज़गार के कई अवसर भी लेकर आएगी।
अन्य सेक्टर्स पर प्रभाव
मेक इन इंडिया के तहत जो इन्वेस्टमेंट मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में होगा, उससे न सिर्फ उत्पादन बल्कि अन्य सेक्टर्स में भी तेज़ी आएगी। मूलभूत सुविधाओं और ऊर्जा के क्षेत्र में नयी कंपनियां स्थापित होने के बाद सर्विस सेक्टर में भी निश्चित ही नए रोज़गार बढ़ने की संभावना है।
आगे की राह
इस कैंपेन से यकीनन भारत की तरक्की को एक नयी और बेहतर दिशा मिली है। खासकर कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को इस दिशा की काफी आवश्यकता थी। अब सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि इन सब इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य पॉलिसीस को कितना बेहतर ढंग से लागू किया जाता है। इन प्लान्स और स्कीमों का असर, आने वाले कुछ सालों में और भी साफ़ देखा जा सकेगा। विशेषज्ञों की मानें तो रोज़गार व नौकरियों के अवसरों में अच्छा उछाल आने की बहुत प्रबल संभावनाएं हैं , बशर्ते इन पॉलिसीस का, प्लान के हिसाब से ही क्रियान्वयन हो पाए।
LIC की माइक्रो इंश्योरेंस पॉलिसी इसके बारे में जानिए हर जरूरी बात
LIC Micro Insurance Plans: इसका मुख्य उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच बीमा कवरेज को बढ़ावा देना है.
- Rahul Chakraborty
- Updated On - September 20, 2021 / 04:11 PM IST
एलआईसी ने जिन 94 फर्मों मे अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है उनके शेयरों की कीमतों में भी 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है
LIC’s micro insurance policy: हम सभी जानते हैं कि आज के दौर में लाइफ इंश्योरेंस की जरूरतें क्या हैं. यह आपको लाइफ कवर की सुरक्षा के साथ एक वित्तीय कोष बनाने में मदद करता है. महामारी के इस दौर में, अगर आप कम प्रीमियम पर लाइफ इंश्योरेंस खरीदने की योजना बना रहे हैं तो माइक्रो इंश्योरेंस प्लान आपके लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकते हैं. ये IRDAI के तहत बनाई गई स्पेशल कैटेगरी है. इसका मुख्य उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच बीमा कवरेज को बढ़ावा देना है. इन पॉलिसियों का प्रीमियम तुलनात्मक रूप से कम होता है.
लोकप्रियता
मिलियन डॉलर राउंडटेबल क्लब से संबंधित एलआईसी एजेंट देबाशीष दत्ता ने बताया कि “”माइक्रो इंश्योरेंस प्लान काफी लोकप्रिय होते हैं. ज्यादा प्रीमियम के चलते समाज का कमजोर वर्ग परंपरागत इंश्योरेंस प्लान को नहीं खरीद पाता है.माइक्रो इंश्योरेंस प्लान मुख्य रूप से उन कम-आय वाले समूहों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, ताकि वह भी अपने जीवन को कवर कर सकें.”
एलआईसी माइक्रो प्लान
भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी), देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है. ये पब्लिक सेक्टर कंपनी आम लोगों के लिए जीवन बीमा पॉलिसियों का एक समूह प्रदान करता है. न्यू जीवन मंगल और माइक्रो बचत ये दोनों उसी तरह के हैं. ये दोनों माइक्रो इंश्योरेंस प्लान 1 फरवरी 2020 को लॉन्च हुआ था. आइए जानते हैं ऐसी पॉलिसियों के बारे में खास बातें.
1. न्यू जीवन मंगल
एलआईसी की न्यू जीवन मंगल प्लान एक नॉन-लिंक्ड प्लान है, नॉन-पार्टिसिपेटिंग, निजी, लाइफ इंश्योरेंस प्लान है, जो मैच्योरिटी पर प्रीमियम रिटर्न देता है. इस प्लान में एक्सीडेंट पर होने पर कवरेज मिलता है, जो एक्सीडेंट में मौत पर दोहरा रिस्क कवर हो जाता है.
योग्यता
कोई भी 18 साल से 55 साल तक का योग्य व्यक्ति इसको खरीद सकता है. इसकी अधिकतम मैच्योरिटी की उम्र 65 साल है.
बीमा राशि
इसमें न्यूनतम और अधिकतम बीमा राशि राशि 10 हजार रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक है.
पॉलिसी टर्म और प्रीमियम
रेगुलर प्रीमियम पॉलिसी में टर्म 10 से 15 साल होता है. प्रीमियम सालाना, अर्धवार्षिक, तिमाही और मासिक स्तर पर दिया जाता है. वैकल्पिक रूप से, एक सिंगल प्रीमियम पॉलिसी भी 5 से 10 साल की अवधि के लिए खरीदी जा सकती है.
दुर्घटना के अलावा किसी अन्य कारण से इंश्योर्ड व्यक्ति की मृत्यु होने की स्थिति में पॉलिसीधारक के नॉमिनी व्यक्ति को इंश्योरेंस राशि के बराबर मृत्यु लाभ का भुगतान किया जाएगा. यह राशि पॉलिसी के प्रकार और भुगतान किए गए प्रीमियम पर निर्भर करती है.
अचानक होने वाली मौत के केस में नॉमिनी व्यक्ति को बीमा राशि के बराबर अतिरिक्त राशि का भुगतान किया जाएगा.
2. माइक्रो बचत पॉलिसी
माइक्रो बचत भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा दी जाने वाली एक नियमित प्रीमियम, गैर-लिंक्ड, भाग लेने वाली, व्यक्तिगत, जीवन बीमा योजना है. ये सेविंग्स के साथ प्रोटेक्शन देती है. इस पॉलिसी में लोन सुविधा के माध्यम से लिक्विडिटी की जरूरत को भी पूरा कर सकती है.
योग्यता
कोई भी 18 साल से 55 साल तक का व्यक्ति इसे खरीद सकता है. इसकी अधिकतम मैच्योरिटी की उम्र 70 साल है.
बीमा की राशि
न्यूनतम और अधिकतम बीमा की राशि 50 हजार रुपए से 2 लाख रुपए तक हो सकती है.
पॉलिसी और प्रीमियम टर्म
इस पॉलिसी का टर्म 10 साल से 15 साल तक होता है. इसके प्रीमियम का सालाना, अर्धवार्षिक, तिमाही और मासिक रूप से भी भुगतान किया जा सकता है.
प्रीमियम
अगर 20 साल की उम्र में एक व्यक्ति ने 15 साल की अवधि के लिए पॉलिसी खरीदी और 2 लाख रुपये मूल बीमा राशि के विकल्प को चुना, तो उसे सालाना प्रीमियम के रूप में 9,904 रुपए का भुगतान करना होगा, जो कि लगभग 27 रुपये प्रति दिन है.
समय के साथ पॉलिसी जब भुगतान के लिए तैयार होगी तो आपको 2.30 लाख रुपए मिलेंगे. पॉलिसी शुरू इन्वेस्टमेंट प्लान्स के उद्देश्य होने के पांच साल के भीतर बीमित व्यक्ति की मृत्यु होने के केस में , इंश्योरेंस की राशि का भुगतान किया जाएगा. अगर मौत पांच साल के बाद होती है, तो सर्वाइवर को बीमा राशि और लॉयल्टी बोनस दोनों का भुगतान किया जाएगा.