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क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है?

क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है?
रमनदीप कौर का चित्रण | दिप्रिंट

G-Sec: कम रिस्क के साथ मिलेगा बेहतर रिटर्न, समझें क्या है गवर्नमेंट बांड और कैसे कर सकते हैं निवेश

RBI ने हाल ही में बड़ा स्ट्रक्चरल बदलाव करते हुए यह सुविधा दी है कि अब रिटेल निवेशक सरकारी बॉन्ड में सीधे लेनदेन कर सकते हैं. इंडिया अब उन देशों की लिस्ट में शामिल हो चुका है जहां आम निवेशक सरकारी बॉन्ड में लेनदेन करते हैं.

RBI ने हाल ही में बड़ा स्ट्रक्चरल बदलाव करते हुए यह सुविधा दी है कि अब रिटेल निवेशक सरकारी बॉन्ड में सीधे लेनदेन कर सकते हैं. इंडिया अब उन देशों की लिस्ट में शामिल हो चुका है जहां आम निवेशक सरकारी बॉन्ड में लेनदेन करते हैं.

Government Bond: RBI ने हाल ही में बड़ा स्ट्रक्चरल बदलाव करते हुए यह सुविधा दी है कि अब रिटेल निवेशक सरकारी बॉन्ड में सीधे लेनदेन कर सकते हैं. आम निवेशक रिजर्व बैंक आफ इंडिया के जरिए प्राइमरी और सेकंडरी दोनों मार्केट में ट्रांजैक्शन कर सकते हैं. इस फैसले के साथ ही इंडिया अब उन देशों की लिस्ट में शामिल हो चुका है जहां आम निवेशक सरकारी बॉन्ड में लेनदेन करते हैं. इस फैसले के बाद से ही गवर्नमेंट बांड को लेकर चर्चा बढ़ी है. एक्सपर्ट मानते हैं कि मौजूदा समय में गवर्नमेंट बांड निवेश का एक सुरक्षित विकल्प बन सकता है, हां रिस्क कम है और रिटर्न स्टेबल. आरबीआई के एग्रेसिव तरीके से बांड खरीद से आगे बांड मार्केट में और तेजी आने की उम्मीद है.

GSAP 2.0: 1.2 लाख करोड़ के खरीदे जाएंगे बांड

4 जून को RBI ने क्रेडिट पॉलिसी का एलान करते समय कहा कि इसी महीने GSAP 1.0 के तहत क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? 40 हजार करोड़ के अतिरिक्त गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (G-sec) की खरीद की जाएगी. वहीं दूसरी तिमाही में GSAP 2.0 के तहत 1.2 लाख करोड़ के गवर्नमेंट सिक्योरिटीज की खरीद ओपेन मार्केट के जरिए क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? की जाएगी. माना जा रहा है कि सरकारी बांड की खरीद से बॉन्ड मार्केट में तेजी आएगी और बॉन्ड यील्ड को कम करने में मदद मिलेगी. इसके पहले GSAP के पहले चरण को बाजार का शानदार रिस्पांस मिला था.

क्या है गवर्नमेंट बांड?

गवर्नमेंट बांड डेट इंस्ट्रूमेंट है, जिसकी खरीद-फरोख्त होती है. केंद्र और राज्य सरकारें इन्हें जारी करती हैं. सरकार को कई बार फंड की जरूरत पड़ती है. ऐसे में बाजार से पैसा जुटाने के लिए इस तरह के बांड जारी किए जाते हैं. अगर सिक्योरिटी एक साल से अधिक की अवधि के लिए जारी की जाती है तो इसे गवर्नमेंट बांड कहते हैं. लिक्विडिटी क्राइसिस क स्थिति में भी ये बांड जारी किए जाते हैं. बॉन्ड की यील्ड और बॉन्ड की कीमत के बीच विपरीत संबंध होता है. RBI खरीदेगा 35000 करोड़ के सरकारी बांड, कोरोना से जंग में सेंट्रल बैंक के 10 बड़े एलान

किन निवेशकों को लगाना चाहिए पैसे

गवर्नमेंट बांड उनके लिए अच्छा विकल्प है, जो निवेशक बाजार का रिस्क लेने से बचते हैं. सुरक्षित विकल्पों में एफडी, आरडी, टैक्स फ्री बांड के साथ गवर्नमेंट सिक्युरिटीज (G-sec) भी शामिल हैं. सरकार द्वारा जारी होने की वजह से ये सुरक्षित विकल्प माने जाते हैं. ब्याज दरें अभी निचले स्तरों पर है. ऐसे में यह अभी निवेश के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है. यहां पिछले 5 साल के रिटर्न देखें तो कई गवर्नमेंट बांड ऐसे हैं, जिनमें एफडी से बेहतर रिटर्न मिला है. IDFC गवर्नमेंट सिक्योरिटीज कांसटेंट मेच्योरिटी, ABSL गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, DSP गवर्नमेंट सिक्योरिटीज और LIC MF गवर्नमेंट सिक्योरिटीज PF का पिछले 5 साल का रिटर्न 8 से 10 फीसदी तक रहा है.

सरकारी बांड में कैसे करें निवेश

ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म की मदद से इसमें निवेश किया जा सकता है. म्यूचुअल फंड के माध्यम से अप्रत्यक्ष तरीके से भी गवर्नमेंट बांड में निवेश कर सकते हैं. क्योंकि डेट फंड अपना पैसा इसमें लगाते हैं. अगर आप G-Sec में निवेश करते हैं और तीन साल से अधिक समय तक निवेश बनाये रखते हैं तो म्यूचुअल फंड के माध्यम से निवेश करने पर आप इनकम टैक्स में लाभ उठा सकते हैं.

सरकारी बॉन्ड मार्केट को खुदरा निवेशकों के लिए खोलना अच्छी पहल, मगर इसे सफल बनाना भी जरूरी

खुदरा निवेशकों की सीधी भागीदारी के बाद पूरे बॉन्ड मार्केट को भी शामिल किया जाना चाहिए, और डेट प्रबंधन के क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? काम को रिजर्व बैंक से अलग किया जाए.

रमनदीप कौर का चित्रण | दिप्रिंट

भारत ने सरकारी बॉन्ड मार्केट के द्वार खुदरा निवेशकों के लिए खोल दिए हैं ताकि सरकार की कर्जों की भारी जरूरत क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? की खातिर पैसे जुटाने के लिए निवेशकों का आधार बढ़ाया जा सके. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल फरवरी में अपने ‘स्टेटमेंट ऑन डेवलपमेंटल ऐंड रेगुलेटरी पॉलिसीज’ में घोषणा की थी कि वह खुदरा निवेशकों को ऑनलाइन सरकारी प्रतिभूति के प्राइमरी और सेकंडरी बाज़ारों में पहुंचने की अनुमति देगा. इसके साथ उन्हें रिजर्व बैंक में अपना सरकारी प्रतिभूति खाता (रिटेल डाइरेक्ट गिलट अकाउंट) खोलने और चलाने की सुविधा भी देगा.

यह स्वागतयोग्य कदम है क्योंकि यह खुदरा निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना और उनकी ट्रेडिंग करना अधिक आसान और सस्ता बनाएगा. अगला कदम एक स्वतंत्र पब्लिक डेट मैनेजमेंट एजेंसी (पीडीएमए) बनाने का होना चाहिए. इसके बाद सरकार और रिजर्व बैंक को बॉन्ड मार्केट रेगुलेशन और इन्फ्रास्ट्रक्चर को मुख्यधारा के वित्त बाज़ार और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए.

2016 में, नेशनल सिक्युरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) सर्विसेज़ और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज़ (इंडिया) लिमिटेड (सीएसडीएल) के डीमैट खाताधारकों को अपने डिपॉजिटरी भागीदारों के जरिए ‘एनडीएस-ओएम’ (निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम-ऑर्डर मैचिंग) प्लेटफॉर्म पर सरकारी प्रतिभूतियों की ट्रेडिंग करने की इजाजत दी क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? गई थी. इन भागीदारों का सब्सिडियरी जनरल लेजर (एसजीएल) खाता होना चाहिए था. 2018 में, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने अपने प्लेटफॉर्म पर प्राइमरी मार्केट में सरकारी बॉन्डों की खरीद की सुविधा दी थी.

लेकिन सेकेंडरी मार्केट में ट्रेडिंग और सेटलमेंट केवल रिजर्व बैंक द्वारा प्रबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर के जरिए ही संभव है. यह व्यवस्था सरकारी प्रतिभूतियों में सुगम ट्रेडिंग और निवेश की राह में रोड़ा डालती है.

बॉन्ड मार्केट का जुड़ाव

एक्सचेंज, क्लियरिंग हाउस और डिपॉजिटरी ही बॉन्ड मार्केट का इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इन तीनों का प्रबंधन रिजर्व बैंक के हाथ में है. 1990 के दशक के शुरू में हर्षद मेहता घोटाले के बाद रिजर्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों की होल्डिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक लेजर की स्थापना की. ‘एसजीएल’ नामक यह लेजर सरकारी प्रतिभूति अधिनियम 2006 के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की एकमात्र वैधानिक डिपॉजिटरी है. बैंक और वित्त संस्थान ‘एसजीएल’ के सदस्य होते हैं, जिनके खाते डिपॉजिटरी में होते हैं जिनमें वे सरकारी प्रतिभूतियों को जमा रखते हैं.

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वैधानिक फ्रेमवर्क ने रिजर्व बैंक को डिपॉजिटरी में भागीदारी की निगरानी, उसका प्रबंधन और नियमन करने का विशेष अधिकार दिया है. रिजर्व बैंक के पास ‘एनडीएस-ओएम’ सिस्टम है, जो सरकारी प्रतिभूतियों की ट्रेडिंग का केंद्र है. रिजर्व बैंक ने एक अनौपचारिक ‘क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ (सीसीआइएल) के गठन की प्रक्रिया शुरू की जिसका स्वामित्व बैंकों के हाथ में होगा. इस तरह, बॉन्ड मार्केट के लिए एक समानांतर केंद्र—क्लियरिंग हाउस—डिपॉजिटरी बनता है. यह व्यवस्था मुख्यधारा के वित्त बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर से अलग कोठले के रूप में काम करती है.

अंतरराष्ट्रीय अनुभव बताता है कि बॉन्ड मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर मुख्यधारा के वित्त बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर का ही एक हिस्सा होता है. अधिकतर देशों में सरकारी बॉन्डों की ट्रेडिंग शेयर बाज़ार द्वारा उपलब्ध कराए गए प्लेटफॉर्म पर होती है. सरकारी बॉन्डों के लिए डिपॉजिटरी इन्फ्रास्ट्रक्चर दूसरी प्रतिभूतियों के लिए संयुक्त इन्फ्रास्ट्रक्चर का हिस्सा होती है. प्रतिभूति बाज़ार का रेगुलेटर कुछ अपवादों को छोड़कर सरकारी प्रतिभूतियों के सेटलमेंट की निगरानी करता है. भारत एकमात्र देश है जहां बॉन्ड मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर के तीनों तत्वों का स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबंधन केंद्रीय बैंक के हाथ में है.

बॉन्ड बाज़ार का नियमन इसके बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर की तरह भारत के प्रतिभूति बाज़ार से अलग है. वैधानिक फ्रेमवर्क (खासकर आरबीआई एक्ट, 1934 और सरकारी प्रतिभूति अधिनियम, 2006) में संशोधन के जरिए बॉन्ड बाज़ार के नियमन अधिकार रिजर्व बैंक को दे दिए गए हैं. अधिकतर देशों में वित्त बाज़ार के एकीकृत रेगुलेटर ही सरकारी बॉन्ड बाज़ार के भी रेगुलेटर होते हैं.

भारत सरकार के प्रतिभूति बाज़ार में निवेशकों को ज्यादा भागीदारी के लिए प्रेरित करने वाली गहराई और तरलता का अभाव है. सेकेन्डरी मार्केट में कम ट्रेडिंग होती है. ज्यादा ट्रेडिंग कुछ ही प्रतिभूतियों और कुछ परिपक्व होने वाले ‘बकेट्स’ तक ही सीमित रहती है. बॉन्ड मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्रतिभूति बाज़ार इन्फ्रास्ट्रक्चर में सहज एकीकरण की कमी के चलते लागत बढ़ती है और खुदरा की व्यापक भागीदारी में बाधा पैदा होती है. हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कई कदमों की घोषणा की गई है लेकिन अलग-अलग मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर के कारण टकराव होता रहता है.

सरकारी प्रतिभूतियों के निर्गम और उनकी ट्रेडिंग को किसी अन्य प्रतिभूति की तरह खुदरा निवेशकों के डीमैट खाते में जारी करने की छूट देकर आसान बनाया जा सकता है. इससे सरकार को निवेशकों का व्यापक आधार बनाकर अपने उधार संबंधी कार्यक्रम को पूरा करने में मदद मिल क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? सकती है.

रिजर्व बैंक के लिए चुनौती

फिलहाल रिजर्व बैंक के सामने चुनौती यह है कि सरकार के विशाल उधार कार्यक्रम को कम लागत में कैसे पूरा किया जाए. कच्चे तेल और जींसों की अंतरराष्ट्रीय कीमत में वृद्धि के कारण इनपुट लागत ऊंची हो रही है और इससे कीमतों में व्यापक वृद्धि हो सकती है. रिजर्व बैंक जब आर्थिक वृद्धि में फिर जान डालने पर ज़ोर दे रहा है, आर्थिक सुधार की गति और मांग में तेजी के कारण उसे ब्याज दरों में वृद्धि का रास्ता चुनना होगा.

बढ़ती दरें रिजर्व बैंक के लिए सरकार के उधार कार्यक्रम को पूरा करना चुनौतीपूर्ण बना देंगी. इस पृष्ठभूमि के साथ, निवेशकों का आधार व्यापक बनाने के लिए खुदरा निवेशकों के लिए अधिक छूट देना स्वागत योग्य कदम है.

निकट अतीत में, रिजर्व बैंक ने सरकारी बॉन्डों में विदेशी निवेशकों को अधिक हिस्सेदारी की छूट देकर निवेशकों का आधार व्यापक करने की कोशिश की थी. विदेशी निवेशकों द्वारा निवेश के लिए ‘पूरी तरह आसान रास्ता’ खोला गया, जिसके तहत कुछ विशेष प्रतिभूतियों को उनके लिए बेरोकटोक उपलब्ध कराया गया.

अब तक, अधिकांश सरकारी प्रतिभूतियां बैंकों के हाथ में हैं. कर्ज की मांग जब बढ़ रही है, बैंक के कब्जे में सरकारी बॉन्डों का अनुपात घट सकता है. जब सरकारी प्रतिभूतियां विविधतापूर्ण निवेशाक आधार के साथ अधिक बाज़ार-केन्द्रित हो रही हैं, डेट का प्रबंधन अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा. तब सरकारी उधार कार्यक्रम को चलाने के लिए विशेष किस्म की एजेंसी की जरूरत होगी.

खुदरा की सीधी भागीदारी स्वागतयोग्य कदम है. इसके बाद एक ओर तो पूर्ण बॉन्ड बाज़ार का समावेश जरूरी है, दूसरी ओर डेट प्रबंधन को रिजर्व बैंक से अलग करने की जरूरत होगी. भारत को 10 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए निर्णायक कदम होगा वित्त क्षेत्र में सुधार.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

अगले हफ्ते मिलेगा सस्ती दरों पर सोना में निवेश का मौका, जानिए क्या है हर ग्राम के लिए कीमत

गोल्ड बॉन्ड के जरिए आम व्यक्ति 4 किलोग्राम, एचयूएफ 4 किलोग्राम ट्रस्ट और संस्थाएं 20 किलोग्राम प्रति वर्ष तक सोने में निवेश कर सकती हैं. बॉन्ड पर 2.5 प्रतिशत सालान का ब्याज भी मिलता है.

अगले हफ्ते मिलेगा सस्ती दरों पर सोना में निवेश का मौका, जानिए क्या है हर ग्राम के लिए कीमत

TV9 Bharatvarsh | Edited By: सौरभ शर्मा

Updated on: Aug 20, 2022 | 9:09 AM

सरकार आपको सस्ते में सोना पाने का एक और मौका देने जा रही है. सोमवार से गोल्ड बॉन्ड स्कीम का अगला इश्यू सब्सक्रिप्शन के लिए खुलने जा रहा है. सरकारी स्वर्ण बॉन्ड (एसजीबी) योजना में निवेशक 22 अगस्त से निवेश कर सकेंगे. योजना 5 दिन तक खुली रहेगी. सरकार ने इसके लिए इश्यू प्राइस का भी ऐलान कर दिया है. इश्यू प्राइस पिछले हफ्ते की बंद कीमतों का औसत होता है और साथ ही इसमें डिजिटल भुगतान करने वालों को छूट भी मिलती है. इसलिए मौजूदा दरों के मुकाबले आपको सस्ती दरों पर निवेश का मौका मिलता है.

अपने बच्चों के लिए या भविष्य के लिए सोने में निवेश करने वालों के लिए गोल्ड बॉन्ड स्कीम काफी फायदेमंद योजना है. इसके तहत न केवल निवेशक सोने में बढ़त का फायदा पाते हैं. साथ ही इस अवधि के दौरान उन्हें ब्याज आय भी होती है.

क्या है बॉन्ड का इश्यू प्राइस

भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि 2022-23 की दूसरी श्रृंखला के तहत स्वर्ण बॉन्ड योजना खरीद के लिये 22 अगस्त से 26 अगस्त के दौरान उपलब्ध होगी. इसके लिए इश्यू प्राइस 5,197 रुपये प्रति ग्राम रखा गया है. बयान के अनुसार, ऑनलाइन या डिजिटल माध्यम से बांड के लिये आवेदन और भुगतान करने वाले निवेशकों के लिये निर्गम मूल्य 50 रुपये प्रति ग्राम कम होगा. इस तरह के निवेशकों के लिए स्वर्ण बांड का निर्गम मूल्य 5,147 रुपये प्रति ग्राम है. केंद्रीय बैंक दरअसल भारत सरकार की तरफ से बॉन्ड जारी करता है. ये निवासी व्यक्तियों, अविभाजित हिंदू परिवार (एचयूएफ), न्यासों, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थाओं को ही बेचे जा सकते हैं. सब्सक्रिप्शन अधिकतम सीमा व्यक्तियों के लिए चार किलोग्राम, एचयूएफ के लिये चार किलोग्राम और ट्रस्ट तथा समान संस्थाओं के लिए 20 किलोग्राम प्रति वित्त वर्ष है. ठोस सोने की मांग को कम करने के इरादे से सबसे पहले गोल्ड बांड योजना नवंबर, 2015 में लाई गई थी.

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क्या है गोल्ड बॉन्ड स्कीम की विशेषताएं

गोल्ड बॉन्ड रिजर्व बैंक के द्वारा जारी किए जाते हैं, इसलिए इसमें निवेश पूरी तरह सुरक्षित होता है. बॉन्ड में निवेश सोने की मात्रा के आधार पर होता है. यानि आपको मैच्योरिटी पर सोने की मात्रा के आधार पर ही भुगतान होता है. ऐसे में आपको सोने की कीमतों में तेजी का पूरा फायदा मिलता है. वहीं बॉन्ड की सबसे खास बात इसपर होने वाला ब्याज का भुगतान है. बॉन्ड पर शुरुआती निवेश पर 2.5 प्रतिशत का ब्याज दिया जाता है. उदाहरण के लिए अगर आपने 10 ग्राम के गोल्ड बॉन्ड लिए हैं तो इनका निवेश मूल्य करीब 51 हजार रुपये होगा. मैच्योरिटी पर आपको भुगतान उस समय चल रहे 10 ग्राम गोल्ड की कीमत के आधार पर होगा, साथ ही आपको 51 हजार रुपये पर ब्याज आय होगी जो कि समय समय पर मिलती रहेगी.

कलेक्टर कोर्ट में भरा जाना वाला बॉन्ड क्या होता है?

कलेक्टर कोर्ट में भरा जाना वाला बॉन्ड क्या होता है?

हम कई दफा छोटे छोटे मामलों में कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड भरने के बारे में सुनते हैं। कॉलोनी मोहल्ले में आसपास के लोगों से किसी तरह का विवाद होने पर या छोटे मोटे धरने प्रदर्शन इत्यादि के मामलों में भी कलेक्टर कोर्ट में बॉन्ड जैसी चीज देखने को मिलती हैं।

कभी कभी थोड़ी मारपीट हो जाने पर पुलिस मारपीट का मुकदमा दर्ज नहीं करती है, अपितु शिकायतकर्ता की शिकायत पर आरोपी से बांड भरने को कहती है। ऐसा बॉन्ड कलेक्टर की कोर्ट में लिया जाता है।

हमारे देश में पुलिस का कर्तव्य अपराध होने पर प्रकरण दर्ज करना ही नहीं, बल्कि अपराधों को रोकना भी है। अपराधों को रोकने के लिए पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता में कुछ शक्तियां भी दी गई हैं और ये शक्तियां कलेक्टर और एस डी एम को भी उपलब्ध हैं। उन्हें भी यह शक्तियां है कि वह अपराध को रोकने का प्रयास करें।

थोड़ी बहुत मारपीट के मामलों में शिकायतकर्ता और आरोपी बाद में राजीनामा कर लेते हैं, क्योंकि लोग भी यह चाहते हैं कि बाद में कोई भी किसी तरह का विवाद बाकी नहीं रहे। इस वजह से छोटे मामलों में पुलिस सीधे प्रकरण दर्ज कर मुकदमा नहीं बनाती है, क्योंकि अगर पुलिस मुकदमा बनाएगी और बाद में पीड़ित और आरोपी आपस में राजीनामा कर लेंगे तो सरकार का धन भी बरबाद होगा और पुलिस का समय भी। इस लिहाज से पुलिस छोटे मामलों में सीधे मुकदमा दर्ज करने से गुरेज करती है।

कोई भी अपराध होने पर पुलिस भविष्य के लिए अपराध रोकने का प्रयास करती है। वह पीड़ित और आरोपी को समझाती है और आरोपी से कलेक्टर के समक्ष उपस्थित होकर बॉन्ड भरकर यह कहने को कहते हैं कि एक तय समय तक वह किसी भी तरह का कोई अपराध नहीं करेगा और अगर ऐसा अपराध करेगा तो उसे जुर्माना भरना होगा।

पुलिस एक इस्तगासा आवेदन एस डी एम की कोर्ट में प्रस्तुत करती है और वह एस डी एम को कहती है कि इस व्यक्ति को बॉन्ड भरने के लिए नोटिस जारी किया जाए। ऐसा नोटिस एस डी एम कोर्ट से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 111 के तहत जारी किया जाता है। इस नोटिस में एस डी एम साहब आरोपी व्यक्ति को एक बॉन्ड भरने के लिए कहते हैं।

ऐसा नोटिस मिलने के बाद अगर आरोपी चाहे तो एस डी एम को यह कह सकता है कि उसके खिलाफ पुलिस द्वारा झूठी शिकायत की गई है और उसने किसी तरह का कोई अपराध नहीं किया है और भविष्य में भी कोई अपराध नहीं करेगा और उससे किसी भी तरह का कोई बॉन्ड लिए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आरोपी के ऐसे अभिवचन पर कोर्ट जांच करती है और पुलिस से सबूत मांगती है कि वह बताए कि आरोपी से बॉन्ड लिया जाना क्यों जरूरी है।

अगर शिकायत झूठी पाई जाती है तो कोर्ट आरोपी से किसी तरह का बॉन्ड नहीं लेती है, लेकिन अगर आरोपी बॉन्ड भरने के लिए तैयार हो जाए तो अदालत फिर एक कागज पर उससे यह लिखवा कर लेती है कि अगर वह एक निश्चित समय के भीतर कोई अपराध करता है तो एक निश्चित धनराशि उससे जब्त की जा सकती है।

ऐसे बॉन्ड में अमूमन छः महीने या एक साल की समयावधि होती है और धनराशि दस हज़ार से पचास हज़ार रुपए तक तय की जाती है। अगर अदालत चाहे तो आरोपी से किसी तरह का कोई जमानतदार भी मांग सकती है, ऐसा जमानतदार अपनी ओर से आरोपी की जमानत लेता है और वह यह ग्यारंटी लेता है कि अगर आरोपी ने किसी तरह का कोई अपराध किया तो उस जमानतदार से ऐसी धनराशि ज़ब्त की जा सकती है।

हालांकि ऐसा बांड आरोपी को सरलता से नहीं भरना चाहिए क्योंकि इससे एक रिकॉर्ड बन जाता है। बाद में फिर आरोपी को एक बड़े अपराधी के रूप में भी पेश किया जा सकता है। अगर शिकायत झूठी की गई है तो आरोपी को कोर्ट से यह कहना चाहिए कि वह उचित जांच करे।

अगर जांच में यह तय हो गया कि शिकायत झूठी थी तब किसी तरह का कोई बॉन्ड नहीं भरना होगा। अगर शिकायत सही पाई जाती है तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 116 के तहत बॉन्ड भरना ही होता है।

सरकार की सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड से 16,000 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी

नई दिल्ली.
केंद्र सरकार जल्द ही सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड जारी कर सकती है. वित्त मंत्रालय ने ग्लोबल स्टैंडर्ड के हिसाब से सॉवरेन ग्रीन बांड जारी करने की रूपरेखा को अंतिम रूप दे दिया है. सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी है. सरकार चालू वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी छमाही यानी अक्टूबर से मार्च के बीच ग्रीन बांड जारी करके 16,000 करोड़ रुपये जुटाना चाहती है. यह दूसरी छमाही के लिए उधार कार्यक्रम का एक हिस्सा है.

सूत्रों ने कहा कि रूपरेखा तैयार है और इसे जल्द ही मंजूरी दी जाएगी. बजट में ऐसे बांड जारी करने की घोषणा की गई थी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि सरकार ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए संसाधन जुटाने की खातिर सॉवरेन ग्रीन बांड जारी करने का प्रस्ताव रखती है. उन्होंने बजट 2022-23 में कहा था, ”इस राशि को सार्वजनिक क्षेत्र की उन परियोजनाओं में लगाया जाएगा, जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती हैं.”

बजट में किया था ऐलान

सरकार की चालू वित्त वर्ष की अक्टूबर-मार्च अवधि के दौरान कुल 5.92 लाख करोड़ रुपये का उधार लेने की योजना है. 2022-23 के बजट में सरकार ने 14.31 लाख करोड़ रुपये के सकल बाजार लोन का अनुमान लगाया था. इसमें से उन्होंने इस वित्त वर्ष के दौरान 14.21 लाख करोड़ रुपये उधार लेने का फैसला किया है, जो बजट अनुमान से 10,000 करोड़ रुपये कम है.

विदेशी निवेशकों को लुभाना चाहती है सरकार

इस ग्रीन बॉन्ड के जरिए सरकार का मकसद विदेशी निवेशकों को लुभाने की है. अभी कई घरेलू निवेशक और विदेशी ऐसे हैं, जो बॉन्‍ड में पैसा लगाना चाहते हैं. ऐसे निवेशक खासतौर पर ग्रीन सिक्‍योरिटीज में पैसा लगाना चाहते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने ग्रीन बॉन्ड जारी करने के लिए विश्व बैंक और दानिश फर्म CICERO Shades of Green के साथ मिलकर काम पूरा कर लिया है. इस बॉन्‍ड को लेकर निवेशक भी खासा उत्‍साहित नजर आ रहे हैं.

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