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व्यापार मार्ग

व्यापार मार्ग
कई राजवंश आये व्यापार मार्ग और गये और हर नए राज में इस मार्ग में बदलाव किये गये लेकिन इस मार्ग का महत्व किसी भी शासन के लिए कम नहीं हुआ क्योंकि किसी भी शासक के पास ग्रैंड ट्रंक रोड के अलावा और कोई बेहतर विकल्प नहीं दिखा। उत्तरपथ और दक्षिणापथ का उल्लेख प्राचीन संस्कृत और प्राकृत ग्रंथों में किया गया था क्योंकि इस मार्ग का धार्मिक महत्व भी था। गौतम बुद्ध ने अपने पहले उपदेश के लिए सारनाथ स्थान को चुना था क्योंकि ये दोनों ही मार्गों का केंद्र बिंदु था। समृद्ध व्यापारियों, नौकरशाहों और शाही सदस्य अक्सर इस जगह पर जाते थे, इसलिए समाज के प्रभावशाली सदस्यों के बीच नए विचारों को लोकप्रिय बनाने के लिए ये सबसे अच्छी जगह थी। उत्तरापथ उत्तर-पश्चिम भारत में चला गया, भारत-गंगा मैदानों को पार कर बंगाल की खाड़ी में ताम्रलिप्ति बंदरगाह से जुड़ व्यापार मार्ग गया। यक्ष उत्तरापथ के व्यापारियों के लिए देवता था और इस मार्ग पर उनकी बड़ी मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।

उत्तरपथ भारत

चीनी पोत ने पाकिस्तानी ग्वादर बंदरगाह के रास्ते खोला नया व्यापार मार्ग

चीनी पोत ने पाकिस्तानी ग्वादर बंदरगाह के रास्ते खोला नया व्यापार मार्ग

कराची से लगभग 700 किमी दूर पश्चिम में बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह पर खड़ा पाकिस्तान नेवी का जहाज। (AP Photo/Anjum Naveed/11 April, 2016)

पाकिस्तान के शीर्ष असैन्य और सैन्य नेता रविवार (13 नवंबर) को नवनिर्मित ग्वादर बंदरगाह से पश्चिमी एशिया और अफ्रीका को निर्यात करने सामान ले जा रहे चीनी पोत को रवाना करने के व्यापार मार्ग लिए देश के दक्षिण पश्चिम में पहुंचे। सरकार ने एक बयान में कहा कि विदेशों में बेचे जाने वाले सामान को लेकर चीनी ट्रकों का पहला काफिला कड़ी सुरक्षा के बीच ग्वादर को चीन के उत्तरपश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र से जोड़ने वाली सड़क के रास्ते पहुंचा। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान विदेशी निवेशकों को हर संभव सुरक्षा मुहैया व्यापार मार्ग कराएगा ताकि वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए चीन द्वारा वित्तपोषित बंदरगाह का इस्तेमाल कर सकें।

उत्तरापथ और दक्षिणापथ: प्राचीन भारत का व्यापार मार्ग

ग्रैंड ट्रंक रोड

आजादी के बाद इतिहासकारों ने राजनीतिक और राजवंश में बदलाव से जुड़े इतिहास को बारीकी से नहीं खंगाला। बुनियादी ढांचे और राजनीतिक बदलावों के बीच के बिंदुओं को कभी जोड़ने की कोशिश नहीं की गयी। बिना किसी गहन जांच और तथ्यों की खोज की बजाय जोड़-तोड़ कर आंकलन करने पर जोर दिया गया। अपनी जरूरतों के मुताबिक राजनीतिक प्रतिष्ठान ने इतिहासकारों व्यापार मार्ग को इतिहास से जुड़े तथ्यों को ढूंढने और पेश करने के निर्देश दिए गये। मीडिया पर सरकारी नियंत्रण और अकादमिक पर इसके प्रभाव ने इतिहास के पन्नों को हर कोण से जांचने की अनुमति नहीं दी। बिना सरकारी समर्थन के निजी और व्यक्तिगत शोध की कमी की वजह से सरकार के मुताबिक मानव और समाज से जुड़े इतिहास के राज खुलकर सामने नहीं आ सके। अन्वेषण परियोजनाओं और अनुसंधान को बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जाता था ताकि राजनीतिक प्रतिष्ठानों का नियंत्रण इनपर बनी रहे।

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